कानपुर के टिकरा गांव को गोद लिए भाजपा सांसद को हो चुके 9 महीने लेकिन ग्रामीणों को नहीं कोई खबर

Update: 2020-02-12 11:34 GMT

गांव के निवासियों को उनके गांव को गोद लेने वाले सांसद का पता ही नहीं है और तो और गांव को गोद लेने वाले सांसद दिखते कैसे हैं ये भी गांववालों को नहीं पता...

कानपुर से मनीष दुबे की रिपोर्ट

जनज्वार। साल 2014 में बनी पूर्ण बहुमत की नरेंद्र मोदी सरकार में सभी सांसदों को उनके संसदीय छेत्र में एक एक गाँव गोद लेकर विकास कराने को कहा गया था। 2014 में कानपुर से सांसद बने मुरली मनोहर जोशी ने बिठूर का एक गांव गोद तो लिया पर जब सांसद जी अपने संसदीय क्षेत्र मे ही नहीं आते थे तो गांव का विकास दूर की कौड़ी है।

स बार के लोकसभा चुनावों में मुरली मनोहर जोशी के बाद टिकट लेकर सांसद बने सत्यदेव पचौरी ने कल्याणपुर ग्रामीण का टिकरा गांव गोद लिया। हमने गोद लिए गांव का रियलिटी चेक किया तो हालात बदतर ही मिले। गांव के निवासी तो ही नहीं, गांव की प्रधान रही महिला तक को ये पता नहीं था कि उनके गांव-इलाके के सांसद कौन हैं और किसने उनके गांव को गोद लिया है। हमारे पूछने के बाद उन्होंने अपने एक प्रतिनिधि को फोनकर जानकारी ली।

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ही हाल सांसद सत्यदेव पचौरी का भी रहा। सांसद जी से जब हमने फोन कर उनके द्वारा गोद लिए गांव के बारे में जानकारी मांगी तो एकाएक अकबकाए सांसद जी ने हमसे दस मिनट का समय मांगा और अपने पीआरओ से जानकारी लेने के बाद हमे मुहैया कराई। सांसद जी इससे पहले वो, यार, एक, है जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते सुने गए। इसके अलावा सांसद जी ने हमसे गांव जाने से पहले उनसे एक बार मिल लेने की बात भी कही जिसपर जनज्वार ने गांव होने के बाद उनसे मिलने का अश्वासन दिया।

Full View बाद जब हम गांव पहुंचे तो वहां के हालात हमें कतई खराब दिखे। गांव के प्रधान ने हमें मैनेज करने की कोशिश की लेकिन गांव के अन्य लोगों ने सारे कार्यकलाप उजागर करते हुए उनकी सभी समस्याओं से हमें अवगत कराया। गांव में बिजली, पानी, गंदगी, विकास इत्यादि की तमाम समस्याएं बदस्तूर होती चलती दिखीं। सुरसा के मुंह की तरह विकराल समस्याएं हमें बताई दिखाई गईं।

गाव के लोगों ने सरकार की ओर से लगे पाइप का पानी निकालकर दिखाया जिसमे गंदगी के साथ-साथ कचरा भी निकला दिखा। तो गांव में महिला सीट होने पर प्रधान बनी अंगाना पर भी आरोप लगाए गए कि वो काम सिर्फ वही कराती हैं जिसमे उन्हें कमीशन मिलने की गुंजाइश होती है। गांव की प्रधान अंगाना से जब हमने पूछा कि उनके गांव के सांसद कौन हैं तो अंगाना को इस एक सवाल के लिए अपने प्रतिनिधि को फोन करना पड़ा जो उनकी मौजूदगी में उनका काम देखता है।

गांव के निवासियों को उनके गांव को गोद लेने वाले सांसद का पता ही नहीं है और तो और गांव को गोद लेने वाले सांसद दिखते कैसे हैं ये भी गांववालों को नहीं पता। पूछने पर वो बताते हैं कि हमारे गांव के सांसद देवेंद्र सिंह भोले है और हमारे गांव को गोद लेने वाले सांसद को हमने आज तक देखा ही नहीं कि वो दिखते कैसे हैं तथा किसलिए गांव को गोद लिया है।

गांव में रहने वाले पुरुषों के अलावा कई महिलाओं ने भी सांसद सत्यदेव पचौरी द्वारा उनके गांव को गोद लिए जाने की बात हमसे ही जानी। इसके पहले उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं थी कि उनके गांव को गोद भी लिया गया है। गांव की पूर्व प्रधान रहीं कुसुम ने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना किया। साथ ही उन्होंने मौजूदा प्रधान अंगाना के कार्यों पर उंगली उठाई। पूर्व प्रधान ने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधान ने अब तक विकास का कोई भी काम नहीं कराया है।

Full View बाबत जब हमने सांसद सत्यदेव पचौरी से जाकर बात की तो हमें एक घण्टे बिठाने के बाद जब सांसद ने गांव संबंधित सभी कागजो का अध्ययन कर लिया तब हमसे बात की। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि माननीय सांसद पचौरी किस तरह से 3 कागज देख देख कर हमें जानकारी दे रहे हैं। इससे पहले सांसद जी को ये तक पता नही था कि जिस गांव को कागजों में गोद लिया वहां के लोगों की हालिया हालात क्या हैं।

सांसद सत्यदेव पचौरी ने हमें गोद लिए गांव में कई कामो की योजनाएं गिनाई लेकिन वो अभी वो सिर्फ कागजो में ही कैद हैं। सांसद ने हमें यह भी बताया कि अभी महज एक ही महीना पहले उन्होंने गांव गोद लिया है जबकि उन्होंने लोकसभा चुनाव 11 माह पहले जीता था। जबकि उनके पीआरओ ने बताया कि गांव गोद लिए आठ महीने हुए हैं। गांववालों ने 10 महीने बताए तो क्या दिल्ली से एक दिन पहले लौटे सांसद पचौरी अपनी याददाश्त वहीं छोड़ आये हों ऐसा तो हो नहीं सकता।

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चौरी इससे पहले सत्ताधारी पार्टी भाजपा के विधायक थे जिसके फलस्वरूप उन्हें 2019 के हुए चुनाव में लोकसभा का टिकट थमाकर जिताया गया। उनका पुराना आफिस अब आलीशान रूप ले चुका है और वक्त रहते नौकर चाकर सिक्योरिटी भी बढ़ा दी गई। विधायक से सांसद बने पचौरी को अब अपनी कोई भी बात कहने बताने के लिए कागजों का सहारा लेना पड़ता है।

हीं गांव में रहने वाले भोले भाले निवासी अपनी तकदीर का लेखा जोखा सांसद देवेंद्र भोले की कुंडली में कैद कर चुके हैं जिनको हर बजट में उनके गांव के विकास की उम्मीद दिखती तो है पर समय दर समय वो उम्मीद मायूसी में बदल जाती है।

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