इकनाॅमिक टाइम्स के अनुसार देश में प्रतिदिन 244 करोड़ रु मूल्य का भोजन बरबाद कर दिया जाता है और देश 19.4 करोड़ लोग भूखे या भूखग्रस्त रह जाते हैं...
मुनीष कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। देश की राजधानी दिल्ली में भूख से तीन बच्चियों की मौत से देश सदमें में है। पर देश को सचाई जाननी चाहिए और समस्या की वजह समझनी चाहिए कि समस्या खाने की उपलब्धता की नहीं, बल्कि वितरण और व्यवस्था की है।
सूचना के अधिकार में खुलाासा हुआ है एफसीआई के गोदामों में वर्ष 2011-12 से 2016-17 के दौरान 62 हजार टन गेहूं, चावल जैसे अनाज सरकारी लापरवाही के कारण सड़कर बर्बाद हो गया।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 55वां स्थान रखने वाले भारत में सिर्फ फूड कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया के गोदामों में पिछले पांच वर्षों में केवल 62 हजार टन चावल और गेहूं सड़ गया।
एक अनुमान के मुताबिक इस सड़े अनाज से देश के करीब 8 लाख लोगों को पूरे साल भरपेट खाना खिलाया जा सकता था।
देश के कृषि मंत्री ने शरद पंवार ने 2013 में संसद में स्वीकार किया था कि देश का 40 प्रतिशत उत्पाद हर वर्ष देश में बरबाद हो जाता है। 10 लाख टन प्याज, 22 लाख टन टमाटर व 50 लाख अंडे हर वर्ष उपभोक्ता तक पहंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं।
इकनाॅमिक टाइम्स के अनुसार देश में प्रतिदिन 244 करोड़ रु मूल्य का भोजन बरबाद कर दिया जाता है और देश 19.4 करोड़ लोग भूख सोते हैं।
हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार देश में 670 लाख टन भोजन बरबाद कर दिया जाता है जिससे इंग्लैंड जैसे मुल्क बराबर आबादी का पेट भर सकता है। इस भोजन को बनाने में जितना पानी खर्च होता है उसमें देश के 10 करोड़ लोगों को वर्ष भर पीने का साफ पानी मिल सकता है।
और उस देश में ये मौतें होती हैं जहां का प्रधानमंत्री बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ की बात करता है। देेश के लिए ये बेहद शर्मनाक है।
देश में शादी व अन्य समारोह में पके हुए भोजन का 20 प्रतिशत हिस्सा फेंक दिया जाता है। उस देश की दिल्ली में 3 बच्चियों की भूख से मौत हो जाती है और जिस प्रदेश में इन बच्चियों की मौत होती है वहां पर आंदोलनकारी अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी वाली सरकार है।