रामपाल की कहानी सरकारी नौकरी से शुरू हुई और वो संत बन गया और खुद को भगवान घोषित कर दिया, मगर कानून के आगे न रामपाल की बाबागिरी काम आई, न स्वयंभू भगवान का दावा...
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट
कानून के राज में कानून बड़ा है या स्वयंभू भगवान इसका खुलासा एक बार फिर हो गया जब हिसार की एक अदालत ने सतलोक आश्रम प्रकरण में स्वयंभू संत रामपाल को हत्या के दोनों मामले में आज 16 अक्टूबर को आजीवन कारावास की सजा सुना दी। रामपाल के साथ उसके 26 अनुयायियों को भी गुरुवार 11 अक्टूबर को दोषी करार दिया गया था।
हिसार के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश डी.आर.चालिया ने हत्या के दोनों मामलों और अन्य अपराधों में रामपाल और उसके अनुयायियों को दोषी ठहराया था। इन हत्या के मामलों की सुनवाई लगभग चार साल तक चली है। 67 वर्षीय रामपाल और उसके अनुयायी नवम्बर, 2014 में गिरफ्तारी के बाद से जेल में बंद थे। रामपाल और उसके अनुयायियों के खिलाफ बरवाला पुलिस थाने में 19 नवम्बर, 2014 को दो मामले दर्ज किए गए थे।
सतलोक आश्रम चलाने वाले रामपाल को आज 4 महिलाओं और एक बच्चे की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। हिसार कोर्ट ने आज सजा सुनाई। रामपाल को अब जिंदगीभर सलाखों के भीतर रहना होगा। इसके साथ ही रामपाल पर एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। पिछले दिनों हिसार कोर्ट ने रामपाल को इस मामले में दोषी करार दिया था। इसके साथ ही एक और महिला की हत्या के मामले में रामपाल के साथ 14 दोषियों को 17 अक्टूबर को सजा सुनाई जाएगी।
कानून के आगे रामपाल की न बाबागिरी काम आई न स्वयंभू भगवान का दावा काम आया। इसके पहले आसाराम और राम रहीम के मामलों में भी अदालत से सज़ा मिलने के बाद बाबागिरी पर कानून का वर्चस्व प्रमाणित हुआ था।
सतलोक आश्रम प्रकरण में स्वयंभू संत रामपाल को हत्या के दोनों मामले में कोर्ट ने दोषी करार दे दिया है। फैसले के लिए सेंट्रल जेल में ही कोर्ट बनाया गया और अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश डी. आर. चालिया ने मामले की सुनवाई की।
मामला 2014 का है जब रामपाल के आश्रम में भड़की हिंसा में 7 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें 5 महिलाएं और 1 बच्चा भी शामिल था। फैसले के बाद रामपाल के समर्थकों द्वारा उपद्रव होने की आशंका के चलते जेल के ही अंदर वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए रामपाल की पेशी हुई।
जिन मामलों में रामपाल को सजा सुनाई गई है, उनमें पहला केस महिला भक्त की संदिग्ध मौत का है, जिसकी लाश उनके सतलोक आश्रम से 18 नवंबर 2014 को बरामद की गई थी। जबकि दूसरा मामला उस हिंसा से जुड़ा है जिसमें रामपाल के भक्त पुलिस के साथ भिड़ गये थे। इस दौरान करीब 10 दिन चली हिंसा में 4 महिलाएं और 1 बच्चे की मौत हो गई थी। इन दोनों मामलों में सजा का ऐलान 16 और 17 अक्टूबर को किया जाएगा।
गौरतलब है कि 18 नवंबर 2014 को सतलोक आश्रम के संचालक रामपाल को बरवाला स्थित उसके आश्रम से बाहर निकालने के लिए पुलिस ने अभियान चलाया था। कार्रवाई के पहले दिन काफी लोग घायल हुए, लेकिन रामपाल के समर्थक डटे रहे।
रामपाल के बाहर निकलने तक काफी हिंसा हुई और इस दौरान पांच महिलाओं समेत एक बच्चे की मौत हुई थी। पुलिस ने हिंसा के एक मामले में रामपाल के अलावा 15 लोगों पर और एक अन्य मामले में रामपाल समेत 14 लोगों पर केस दर्ज किया था।इन मामलों में रामपाल समेत कुल 15 लोगों को दोषी करार दिया गया है।
हिंसा में मारे गए थे 6 लोग
नवंबर 2014 को सतलोक आश्रम में पुलिस और रामपाल समर्थकों में टकराव हुआ था। इस दौरान 5 महिलाओं और एक बच्चे की मौत हो गई थी। इसके बाद आश्रम संचालक रामपाल पर हत्या के दो केस दर्ज किए गए केस नंबर-429 (4 महिलाओं व एक बच्चे की मौत) में रामपाल सहित कुल 15 आरोपी थे। वहीं, केस नंबर-430 (एक महिला की मौत) में रामपाल सहित 13 आरोपी थे. इनमें 6 लोग दोनों मामलों में आरोपी थे।
अपने को कबीर का अवतार बताता था रामपाल
ख़ुद को संत कबीर का अवतार और भगवान घोषित करने वाले रामपाल की कहानी हिंदी फिल्मों की कहानी सरीखी है। रामपाल की कहानी सरकारी नौकरी से शुरू हुई और वो संत बन गया और खुद को भगवान घोषित कर दिया। सोनीपत की गोहाना तहसील के धनाणा गांव में 8 सितंबर 1951 को जन्मा रामपाल दास हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की नौकरी किया करता था।
इसी दौरान उसकी मुलाकात कबीरपंथी स्वामी रामदेवानंद महाराज से हुई। रामपाल उनका शिष्य बना और नौकरी के दौरान ही सत्संग करने लगा। देखते-देखते उसके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी।
आर्यसमाज के समर्थकों से हुआ झगड़ा
1999 में हिसार के पास बरवाला के करौंथा गांव में उसने सतलोक आश्रम का निर्माण किया।आश्रम बनाने के लिए उसे जमीन कमला देवी नाम की महिला ने दे दी। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कुछ सालों बाद आसपास के गांव के लोगों ने रामपाल के प्रवचनों का विरोध करना शुरू कर दिया। विरोध करने वालों में ज्यादातर लोग आर्यसमाज के थे।
2006 में रामपाल ने आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद की किताब को लेकर टिप्पणी की, जिससे आर्यसमाज के समर्थक बेहद नाराज हो गए। इसके बाद आर्यसमाज और रामपाल के समर्थकों के बीच हिंसक झड़प हुई और हालात काबू से बाहर हो गए। इस हिंसा में एक महिला की मौत हो गई।
पुलिस ने रामपाल को हत्या के मामले में हिरासत में लिया जिसके बाद रामपाल को करीब 22 महीने जेल में काटने पड़े।लेकिन 30 अप्रैल 2008 को वह जमानत पर रिहा हो गया। 2009 में रामपाल को आश्रम वापस मिल गया, जिसके खिलाफ आर्यसमाज के समर्थकों ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया मगर न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
हाईकोर्ट ने लिया स्वत:संज्ञान
अगस्त 2014 में हिसार ज़िला अदालत में उसके समर्थकों ने हुड़दंग मचाया था, जिसके बाद पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए उसे अदालत में पेश होने को कहा। रामपाल मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट में पेश नहीं हुआ, जिसके बाद हाईकोर्ट ने उसकी गिरफ्तारी के आदेश दे दिए।
पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों ने 12 दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद उसे गिरफ्तार किया। पुलिस और रामपाल के समर्थकों के बीच हुई इस हिंसक झड़प में करीब 120 लोग घायल हो गए थे, जिनमें कई पुलिसकर्मी भी थे। सतलोक आश्रम से पांच महिलाओं और एक बच्चे की लाश भी मिली थी। आखिरकार 18 नवंबर 2014 में रामपाल को गिरफ्तार कर लिया गया। रामपाल तब से जेल की सलाखों के पीछे कैद है।