शाहीनबाग के आंदोलनकारियों को भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी की चेतावनी के मायने जेएनयू-जामिया दोहराने की धमकी तो नहीं!

Update: 2020-01-14 10:41 GMT

भाजपा के छुटभैय्ये नेताओं की तुलना में मीनाक्षी लेखी एक बड़ी नेता हैं और दिल्ली से सांसद भी हैं, इसलिए उनकी चेतावनी का मतलब तो निकलता ही है...

पीयूष पंत का विश्लेषण

ख़िरकार एक माह पूरा होते-होते दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में नागरिकता संशोधन क़ानून यानी CAA को वापिस लेने की मांग को लेकर शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन कर रहे नागरिकों को नई दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी की सांसद मीनाक्षी लेखी की चेतावनी मिल ही गयी।

मीनाक्षी लेखी ने दोटूक शब्दों में शाहीनबाग में आंदोलनरत लोगों को चेताया है कि वे खुद ही घर चलें जाएं तो बेहतर होगा। मीनाक्षी लेखी ने कहा कि प्रदर्शन की वजह से लोगों की परेशानी बढ़ रही है और वे नाराज़ हो रहे हैं, इसलिए अच्छा होगा कि प्रदर्शनकारी अब घर चले जाएँ।

लेखी ने ये बात रविवार 12 जनवरी को शाहीन बाग़ से सटे सरिता विहार और आसपास के इलाकों के लोगों द्वारा धरने को हटाने के लिए किये गए प्रदर्शन के बाद कही। प्रदर्शनकारी सरिता विहार से कालिंदी कुंज के बीच यातायात बंद करने से हो रही रोज़मर्रा की परेशानियों को लेकर सड़क पर उतरे थे।

समें कोई दो राय नहीं कि नोएडा से दिल्ली और दिल्ली से नोएडा जाने वाले लोगों को और साथ ही आसपास रहने वाले लोगों को भी परेशानी हो रही है, लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखने के लिए जुटे भारतीय नागरिकों को मीनाक्षी लेखी द्वारा धमकाना क्या उचित है? उनका ये कहना कि लोग खुद ही घर चले जाएँ तो बेहतर है क्या किसी धमकी से कम नहीं लगता? उनका लहज़ा कुछ इस तरह दिखाई देता है मानो कह रही हों -लोग खुद ही घर चले जाएँ तो बेहतर है वरना परिणाम भुगतने को तैयार रहें।

तो क्या भाजपा सांसद शाहीन बाग़ में महीनेभर से जुटीं महिलाओं, युवाओं, बच्चों और बूढ़ों को जामिया और जेएनयू में हुए तांडव की याद दिलाना चाह रहीं थीं? वैसे चेतावनी भरे वक्तव्य जारी करना मीनाक्षी लेखी की आदत में शुमार है। पहले भी वो नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शित कर रहे शाहीन बाग़ के लोगों को चेता चुकी हैं कि बेहतर होगा वे अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ पकिस्तान में हो रहे अमानवीय उत्पीड़न का विरोध करें।

दीगर है कि लेखी के पहली भी कुछ भाजपा नेता शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को धरना ख़त्म करने की चेतावनी दे चुके हैं। लेकिन छुटभैय्ये नेताओं की तुलना में मीनाक्षी लेखी एक बड़ी नेता हैं और दिल्ली से सांसद भी हैं, इसलिए उनकी चेतावनी का मतलब तो निकलता ही है। तो क्या माना जाए कि केंद्र की भाजपा सरकार ने धरना ख़त्म करवाने का मन बना लिया है, जबकि कुछ जानकारों का कहना था कि भारतीय जनता पार्टी एक रणनीति के तहत शाहीन बाग़ के धरने को दिल्ली के चुनाव तक खत्म नहीं कराना चाहती है, ताकि हिन्दू-मुसलमान के विमर्श को चुनावी प्रचार में हवा देकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का फायदा मिल सके।

वैसे भी दिल्ली में आम आदमी की तुलना में भाजपा खुद को कहीं कमज़ोर पा रही है। दिल्ली इकाई से भी इसे इसी तरह का फीडबैक मिल रहा है, शायद यही कारण है कि सोमवार 13 जनवरी की शाम दिल्ली चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन करने के लिए बुलाई गयी भाजपा कार्यकारिणी की बैठक अचानक रद्द कर दी गयी।

रअसल शाहीन बाग़ को लेकर भाजपा का दांव उल्टा पड़ गया है। जिस धरने से उसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की उम्मीद थी वो पिछले एक माह में सम्प्रदाय, जाति, वर्ग और उम्र की दहलीज़ पार कर व्यापक लोकप्रियता और धर्म-निर्पेक्ष चरित्र हासिल कर चुका है। मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी का काम शायद रविवार 12 जनवरी को शाहीन बाग़ में हुए उस आयोजन ने भी किया है, जिसमें सभी धर्मों की प्रार्थनाओं का पाठ किया गया।

सिक्ख समुदाय के लोगों ने शबद-कीर्तन किया, मुसलमानों ने नमाज़ अता की और हिंदुओं ने हवन किया और इस तरह सर्व धर्म सम भाव का सन्देश पुरज़ोर तरीक़े से दिया गया। निस्संदेह इस तरह के सन्देश का जन विमर्श में समाहित हो जाना भाजपा के वजूद के लिए किसी ख़तरे से कम नहीं हो सकता। लाजिम है कि वो भी देखेंगी।

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