'मर्दों' को आईना दिखाता नाटक 'गर्भ'

Update: 2017-11-18 18:54 GMT

थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस का 3 दिवसीय मुंबई नाट्योत्सव

मुंबई। प्रसिद्ध नाटक 'गर्भ', 'अनहद नाद अनहर्ड साउंड्स ऑफ़ यूनिवर्स' और 'न्याय के भंवर में भंवरी' का मंचन किया गया थिएटर आॅफ रेलेवेंस के मुंबई नाट्योत्सव में। 'थिएटर ऑफ़ रेलेवंस' ने अपनी 25 वर्षीय यात्रा पूरी होने के अवसर पर देशभर में अनेक शहरों में नाट्योत्सव आयोजित कर रहा है। इससे पहले दिल्ली में तीन दिवसीय नाट्योत्सव आयोजित किया जा चुका है।

थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस ने सृजन के समय से ही देश और विदेश, जहां भी इस नाट्य दर्शन की प्रस्तुति हुई, न सिर्फ दर्शकों के बीच अपनी उपादेयता साबित की, बल्कि रंगकर्मियों के बीच भी अपनी विलक्षणता स्थापित की।

इन वर्षों में इस नाट्य दर्शन ने न सिर्फ नाट्य कला की प्रासंगिकता को रंगकर्मी की तरह पुनः रेखांकित किया, बल्कि एक्टिविस्ट की तरह जनसरोकारों को भी बार बार संबोधित किया। दर्शकों को झकझोरा और उसकी चेतना को नया सोच और नई दृष्टि दी।

थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस के सृजनकार मंजुल भारद्वाज ने भारत से लेकर यूरोप तक में अपने नाट्य दर्शन के बिरवे बोये, जो अब वृक्ष बनने की प्रक्रिया में हैं। मंजुल ने यह भी साबित किया कि बिना किसी सरकारी अनुदान और कॉरपोरेट प्रायोजित आर्थिक सहयोग के बिना भी सिर्फ जन सहयोग से रंगकर्म किया जा सकता है और बिना किसी हस्तक्षेप के पूरी उनमुक्तता के साथ किया जा सकता है।

15, 16, 17 नवम्बर, 2017 श्री शिवाजी नाट्य मंदिर ,मुंबई में तीन दिवसीय नाट्य उत्सव का आयोजन किया गया।

नाट्योत्सव की शुरुआत 15 नवम्बर को 'गर्भ' नामक नाटक से हुई। कलाकार थे अश्विनी नांदेडकर, सायली पावसकर, कोमल खामकर, योगिनी चौंक और तुषार म्हस्के। इस नाटक के जरिए विश्व भर में नस्लवाद, धर्म, जाति और राष्ट्रवाद के बीच हो रही खींचतान में फंसी या गुम होती मानवता को बचाने के संघर्ष की गाथा को बड़ी खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया गया।

अभिनय के स्तर पर वैसे तो सभी कलाकारों ने बढ़िया काम किया, लेकिन मुख्य भूमिका निभा रही अश्वनी नांदेड़कर का अभिनय अद्भुत था। हर भाव, चाहे वह 'डर' हो, 'दर्द' हो या खुशी हो, जिस आवेग और सहजता के साथ मंच पर प्रकट हुआ, वह अभूतपूर्व था।

16, नवम्बर, ‘अनहद नाद : unheared sounds of universe’ का मंचन हुआ। इस नाटक में इंसान को उन अनसुनी आवाजों को सुनाने का प्रयास था, जो उसकी अपनी आवाज़ है, पर जिसे वह खुद कभी सुन नहीं पाता, क्योंकि उसे आवाज़ नहीं शोर सुनने की आदत हो गई है। वह शोर जो कला को उत्पाद और कलाकार को उत्पादक समझता है। जो जीवन प्रकृति की अनमोल भेंट की जगह नफे और नुकसान का व्यवसाय बना देता है। कलाकार मंच पर चरित्रों को साकार कर रहे थे। लग रहा था मानो हम स्वयं अपने शरीर से बाहर निकल आये हों।

तीसरे दिन, 17 नवम्बर को ‘न्याय के भंवर में भंवरी’ का मंचन देखने को मिला। इस नाटक की एक और विशेषता थी, इसमें एक ही कलाकार बबली रावत का एकल अभिनय था। मानव सभ्यता के उदय से लेकर आज तक जिस प्रकार पितृसत्ता से उपजी शोषण और दमनकारी वृति ने नारी के लिए सामाजिक न्याय और समता का गला घोंटा है और कैसे इस पुरुष प्रधान समाज में परंपरा और संस्कृति के नाम पर महिलाओं को गुलामी की बेड़ियों में कैद करने की साजिश रची गई, इसका मजबूत विवरण और विश्लेषण मिलता है।

बबली ने बड़ी परिपक्वता के साथ नारी के दर्द को उजागर किया और पूरे नाटक के दौरान दर्शकों की सांस को अपनी लयताल से बांधे रखा। जिस दृढ़ता से उन्होंने अपने आप को 'मर्द' कहकर सीना चौड़ा करने वाले पुरुषों को आईना दिखाया, उस अनुभूति को शब्द में बयान करना मुश्किल है।

रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज ने अपने तीन क्लासिक नाटकों से हिंदी रंगकर्म को नए आयम दिए हैं। वरिष्ठ पत्रकार गोपाल शर्मा कहते हैं, ऐसी लेखन, निर्देशन और अभिनय शैली उन्होंने इससे पहले कभी नहीं देखी ये मंजुल भारद्वाज का अपना आविष्कार है।

थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस के नाटकों को देखने के बाद प्रसिद्ध मराठी नाटककार प्रेमानंद गज्वी ने कहा “मैंने मराठी , कन्नड़ ,बंगला के नाटकों और रंगकर्म को देखा है पर ‘मंजुल भारद्वाज’ जैसा नहीं। मंजुल का रंग सिद्धांत मराठी रंगकर्म और देश के रंगकर्म को नयी दिशा दे रहा है!

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