ग्राउंड रिपोर्ट : 3 साल पहले पुलिसवालों ने गांव को लिया था गोद, कितने बदले हालात ?

Update: 2020-02-17 08:43 GMT

आजादी के 7 दशक बाद भी बदहाली में जीने को मजबूर मर्रापी गांव के आदिवासी, तीन साल पहले पुलिस गोद लिया गांव, लेकिन स्वास्थ्य, चिकित्सा, शिक्षा आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं लोग....

मर्रापी गांव से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट

जनज्वार। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर सुंदर वादियों और पहाड़ो में बसा गांव मर्रापी। जहाँ आजादी के सात दशक बाद भी आदिवासी बदहाली में जी रहे हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल जैसे मूलभूत सुविधाओं से अब भी वंचित है।

साल 2018 में कांकेर जिला पुलिस द्वारा 'मोर मितान कांकेर पुलिस' कार्यक्रम के तहत इस गांव को गोद लिया गया तमाम पुलिस के बड़े अधिकारी से लेकर प्रशासन के अफसरों की गाड़ियां इन पहाड़ी गांवो में दौड़ने लगी। वादे के अनुरूप पुलिस ने सड़क निर्माण की पहल भी की लेकिन आदिवासी ग्रामीणों को क्या पता था जो पुलिस उनके गांव को गोद ले कर संवारने की बात कह रही हो वो अचानक साल भर में फिर अनाथ छोड़ देगी।

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लम यह है कि स्कूली बच्चे अभी भी 5 किमी पहाड़ी उतर कर स्कूल जाते है, गर्भवती महिलाओं को चार कांधे में ढो कर 5 किमी नीचे उतारा जाता है। ग्रामीण हताश परेशान होकर अपने श्रमदान से एक काम चलाऊ सड़क का निर्माण कर आवागमन कर रहे है। इन पहाड़ो में बसे आदिवासियों की आजादी के सात दशक बाद भी बदहाली के आलम में जीवन गुजर बसर कर रहे है।

गांव की एक महिला रुपवती मंडावी ने बताया कि बरसात के दिनों में यह सड़क चलने लायक भी नहीं होती है। जब कांकेर पुलिस ने कच्ची सड़क बना ली थी लेकिन बारिश में पूरी सड़क बह गयी। अब तो पैदल चलने लायक भी नहीं है। हमारे गांव में कोई महिला बीमार पड़ती है तो तकलीफ होती है। जब हम महिलाएं नहीं इस सड़क पर नहीं चल पाती हैं तो गर्भवती महिलाएं कहां से चल पाएंगी। उसकी वजह से गांव के चार लोग कंधे पर उठाकर चलते हैं। तब अस्पताल पहुंचाते हैं। हमारे गांव में आवागमन के लिए कोई रास्ता भी ठीक नहीं है।

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र्रापी गांव के एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि हमारे गांव में स्कूल भवन है। इसकी बाउंड्री नहीं है। स्कूल में गंदगी रहती है। कोई बीमार पड़ते हैं तो हम कंधे पर ले जाते हैं। कक्षा 9वीं तक की पढ़ाई के लिए हमारे गांव से स्कूल छह किलोमीटर दूर है। मांग करते-करते हम थक गए हैं।

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