2जी घोटाले का फैसला क्या आप को बीजेपी की 'बी' टीम साबित नहीं करता

Update: 2017-12-21 16:26 GMT

क्या अरविंद केजरीवाल को कांग्रेसमुक्त भारत बनाने के लिए आरएसएस ने पैदा किया, उनको ताकत दी और जनसमर्थन दिलवाया। आदर्शवादी राजनीति के आग्रही योगेंद्र यादव और सेकूलर छवि वाले प्रशांत भूषण को भी संघ की चाहत मुताबिक इसलिए निकाल फेंका गया कि वोटरों को आप के कांग्रेस की बी टीम होने का कोई मुगालता न रह जाए...

राग दरबारी

जिस घोटाले ने देश में ईमानदारी के आदोलन की आंधी ला दी हो, एक अधिकारी को राज्य की सत्ता के सर्वोच्च पर बैठा दिया हो और एक मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बना दिया हो, उसमें जांच एजेंसियों को अदालत में पेश करने के लिए इतना भी तथ्य नहीं मिल पाया कि किसी आरोपी को एक दिन की भी सजा हो सके, फिर हम उन संदेहों पर बात क्यों न करें जो 2011 में फरवरी में उठने लगे थे।

हम उन सिलसिलों की बात क्यों न करें जिसने इस देश में कांग्रेस को फर्श पर ला पटका और उनको अर्श पर बैठा दिया, जो इस देश की न सिर्फ आर्थिकी बल्कि सामाजिक सौहार्द भी फर्श पर पटक देने को ही राजनीति कहते हैं।

यूपीए के दूसरे टर्म में 2जी घोटाला एक ऐसा राजनीतिक नुस्खा साबित हुआ कि भाजपा और आप देश को बताने में सफल रहे कि कांग्रेस की सरकार देश को चला नहीं, लूट रही है। नुस्खा इतना कारगर साबित हुआ कि मोदी और अरविंद केजरीवाल दोनों ने ऐसी राजनीतिक जीत हासिल की, जिसके उदाहरण खोजे नहीं मिलते।

पर आज जब 2जी घोटाले के मामले के मुख्य आरोपियों समेत सभी बरी हो चुके हैं तो सवाल यह उठता है कि आखिर एक ऐसे घोटाले की जद में देश का मीडिया, जनांदोलन और बुद्धिजीवी कैसे आ गए, जिसने देश में न सिर्फ लूट की छूट को बढ़ावा दिया, बल्कि देश की विविधता को खतरे में डाल दिया है, सांप्रदायिकता राजनीति का मुख्य हथियार बन चुकी है।

जाहिर है कई बार राजनीतिक परिघटनाएं और उसके निकले परिणाम संदेहों और संभावनाओं को बदल देते हैं। 2011 में जब अन्ना आंदोलन का उभार हुआ और कांग्रेस नेतृत्व लगातार अलोकप्रिय होता जा रहा था तब विश्लेषकों का एक तबका खुले तौर पर यह लिख और बोल रहा था कि अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक भूमिका बीजेपी की बी टीम की है।

कई लोग अरविंद केजरीवाल की और उनके सहयोगियों की दलित, अल्पसंख्यक और गरीब विरोधी बयानों को और भागीदारियों को भी अपने तर्कों को पुष्ट करने के लिए सामने लाते रहे थे। वे कई बार विस्तार से बताने की कोशिश करते थे कि कैसे अरविंद केजरीवाल के समर्थकों का बड़ा हिस्सा हिंदूवादी उन्माद का शिकार है और वह बुनियादी तौर पर भाजपा के लिए काम कर रहा है।

अरविंद केजरीवाल का आरक्षण विरोधी आंदोलन, जातिवादी हिंसा पर चुप रह जाने की प्रवृत्ति और देशप्रेम को लेकर व्याख्यायित किए जाने वाले हिंदूवादी अप्रोच को आम आदमी पार्टी के नेताओं द्वारा समर्थन किए जाने को लेकर भी सवाल उठते रहे। पर इसकी सुनवाई नहीं हुई, किसी ने इन बहसों को तवज्जो नहीं दी, वे लोग अन्ना आंदोलन के दौर में हाशिए पर ठेल दिए गए जिन्होंने केजरीवाल एंड कंपनी की राजनीतिक नियत पर सवाल उठाया। यहां तक कि अंध समर्थकों के एक बड़े तबके ने अरविंद केजरीवाल द्वारा आप के संस्थापक सदस्य योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को भी निकाले जाने को सही ठहरा दिया।

खैर! अब जबकि अरविंद केजरीवाल को आम आदमी से खास आदमी बनाने वाले 2जी स्कैम का सच सामने आ चुका है, वैसे में सवाल अब बदल जाएंगे, क्योंकि परिणाम बदल गया है। अब वह आंदोलनकारी की भूमिका से अलग एक मुख्यमंत्री और सत्ताधारी होने का आनंद भोग रहे हैं। उन्हें न अब सर्दियों में मफलर लपेटना पड़ रहा है और न ही वह पिछले तीन वर्षों में कांग्रेस की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जेल भेजने की कसमें खा रहे हैं।

इसलिए अब सवाल तो उठेगा और वहीं से जहां उसका सिरा छूटा था कि क्या अरविंद केजरीवाल को कांग्रेसमुक्त भारत बनाने के लिए आरएसएस ने पैदा किया, उनको ताकत दी और जनसमर्थन दिलवाया। इतना ही नहीं आदर्शवादी राजनीति के आग्रही योगेंद्र यादव और सेकूलर छवि वाले प्रशांत भूषण को भी संघ की चाहत मुताबिक इसलिए निकाल फेंका गया कि वोटरों को आप के कांग्रेस की बी टीम होने का कोई मुगालता न रह जाए।

वैसे अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने 2जी पर आए फैसले पर बीसूरने लगी है। कहने लगी है कि ठीक से जांच नहीं हुई, जबकि 2जी के जानकार हमेशा से मानते रहे हैं कि इस पर कोई आरोप तय ही नहीं हो सकता था, क्योंकि यह संभावना आधारित घोटाला था। दूसरी बात रही बात जांच प्रक्रिया कि तो उस पर सवाल इसलिए बहुत देर नहीं टिकेगा क्योंकि आरोप की जांच कांग्रेस ने नहीं बल्कि कांग्रेस मुक्त भारत का कसम खाने वाले प्रधानमंत्री के अधीनस्थों ने किया है।

हां, एक बात और! क्या आपको नहीं लगता कि प्रशांत भूषण को भी इस पर जवाब देना चाहिए क्योंकि वही वह सूत्रधार हैं, जिनकी बदौलत 2जी घोटाले पर जाल कहें या भ्रमजाल, पूरे देश में फैला, जन—जन की जुबान पर 2जी घोटाले की चर्चा आई और उन्हीं की बदौलत सुप्रीम कोर्ट ने 2जी घोटाले पर इतनी गंभीरता दिखाई।

जवाब और भी बहुत से लोगों को देना होगा, पर असल बात देखिए कि प्रशांत भूषण जैसे जनपक्षधर वकील की मेहनत, नाम और रसूख का इस्तेमाल उन लोगों के पक्ष में हुआ जिनके खिलाफ प्रशांत भूषण और उनके समर्थक रातों—दिन 'खिलाफत' आंदोलन चलाते रहते हैं। फिर वह चाहें केजरीवाल हों या फिर मोदी।

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