रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से घटती खेतों की उर्वरा शक्ति और बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग

Update: 2020-01-25 16:45 GMT

इफको के प्रबंध निदेशक ने दी जानकारी 500 मिलीलीटर की बोतल नैनो यूरिया होगी 45 किलो यूरिया के बराबर, इस नए उत्पाद से यूरिया के प्रयोग से देश में 50 प्रतिशत तक खपत कम होगी और फसलों का उत्पादन भी बढ़ेगा...

जेपी सिंह

जनज्वार। इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) अगले वित्त वर्ष से नई नैनो प्रौद्योगिकी आधारित नाइट्रोजन उर्वरक का उत्पादन शुरू कर देगा, जिसके बाजार में उपलब्ध हो जाने से एक बोरी यूरिया की जगह एक बोतल नैनो उत्पाद से काम चल जाएगा। यह जानकारी देते हुए इफको के प्रबंध निदेशक डॉ उदय शंकर अवस्थी ने फूलपुर में आयोजित​ कार्यक्रम में कहा कि मानव जीवन बचाने के लिए पर्यावरण में सुधार बहुत जरूरी है और इफको सहित पूरे विश्व में रासायनिक उर्वरकों के विकल्प खोजने पर काम हो रहा है।

1960 के बाद रासायनिक उर्वरकों से देश में हरित क्रांति आ गयी थी, लेकिन 50 वर्षों बाद यह गम्भीरता से महसूस किया जाने लगा कि रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोगों से खेतों की उर्वर शक्ति घट रही है और ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ रही है। डॉ अवस्थी ने बताया कि इफको स्पेन के सहयोग से पंजाब के रोपड़ में वेजिटेबिल प्रोसेसिंग यूनिट और सिक्किम में सिक्किम सरकार के सहयोग से आर्गेनिक प्रशंसकरण यूनिट स्थापित कर रहा है।

क बोतल नैनो यूरिया का मूल्य लगभग 240 रुपए होगा। इसका मूल्य परम्परागत यूरिया के एक बैग की तुलना में दस प्रतिशत कम होगा। यानी इसके इस्तेमाल से किसानों को धन की बचत होगी। डॉ अवस्थी ने बताया कि गुजरात के अहमदाबाद स्थित कलोल कारखाने में नाइट्रोजन आधारित उर्वरक का उत्पादन किया जाएगा। यह पूरी तरह से मेक इन इंडिया के तहत होगा, जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी। कम्पनी की योजना सालाना ढाई करोड़ बोतल उत्पादन की है।

500 मिलीलीटर की बोतल नैनो यूरिया 45 किलो यूरिया के बराबर होगा। इस नए उत्पाद से यूरिया के प्रयोग से देश में 50 प्रतिशत तक खपत कम होगी और फसलों का उत्पादन भी बढ़ेगा। देश में वर्तमान में तीन करोड़ टन यूरिया की खपत है और किसान इसका अधिक इस्तेमाल करते हैं। नए उर्वरक के प्रयोग से अब उसके खर्च में कमी आएगी। अभी प्रति एकड़ 100 किलोग्राम यूरिया की जरुरत होती है। इस नए मामले में प्रति एकड़ एक बोतल नैनो उर्वरक या एक बैग यूरिया की जरुरत होगी।

फको, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सहायता से देश में लगभग 15000 स्थानों पर इसका ट्रायल चल रहा है और अभी तक परिणाम उत्साहवर्धक रहा है। नैनो नाइट्रोजन उर्वरक का हरेक जलवायु क्षेत्र और मिट्टी में जांच की जाएगी। इस नई तकनीक से उर्वरक पर सब्सिडी आधी रह जाएगी।

देश की सबसे बड़ी फर्टिलाइजर कंपनी इफको ने रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने के प्रयासों के तहत पहली बार 'नैनो-प्रौद्योगिकी' आधारित फर्टिलाइजर के तहत नैनो नाइट्रोजन, नैनो जिंक और नैनो कॉपर नाम से ये उत्पाद लॉन्च करने की तैयारी कर रही है। ये पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद भारत में पहली बार पेश किए गए हैं। इफको का कहना है कि कि ये उत्पाद पारंपरिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को 50 फीसदी तक कम करेंगे। इसके अलावा फसल उत्पादन को 15-30 फीसदी तक बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। इन उत्पादों को इफको के कलोल स्थिति नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में देसी तकनीक से विकसित किया गया है।

डॉ अवस्थी के मुतातिबक इस फर्टिलाइजर के इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत में सुधार होगा। ग्रीन हाउस गैस गैसों के उत्सर्जन में कमी के साथ पर्यावरण के अनुकूल होगा। पूरे एक हेक्टेयर खेत में नैनो जिंक केवल 10 ग्राम पर्याप्त होगा। डॉ अवस्थी ने बताया कि पंजाब और पश्चिमी यूपी में मिटटी में जिंक लगभग शून्य पर पहुंच गया है। उन्होंने बताया कि नैनो टेक्नोलॉजी से एनपीके खादों की खपत घटकर आधी रह जाएगी। नैनो कापर के इस्तेमाल से आलू, गाज़र, मूली, सुरन, जैसी जड़ीय फसलों को बहुत लाभ होगा और पैदावार बढ़ेगी।

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