उपचुनावों में अपने मूल मिजाज में लौटी है यूपी की जनता

Update: 2018-06-05 18:04 GMT

हमें इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि यूपी में बना गठबंधन किसी पार्टी ने बनाया या बनवाया है, बल्कि सच्चाई यह है कि गठबंधन जनता ने बनाया है

विधान परिषद सदस्य शशांक यादव का विश्लेषण

हाल के यूपी उपचुनावों के परिणामों से अकबकाई भाजपा ने गठबंधन को सांप—छुछुंदर की दोस्ती, कुत्ते —बिल्ली का साथ और आतंकवादी सांठगांठ सरीखे आरोप लगाए हैं। इसे बौखलाहट ही कहेंगे कि भाजपा को समझ नहीं आ रहा है कि वह अब कौन सा पैंतरा चले जो वोटरों को सांप्रदायिक तौर पर बांटे।

उपचुनावों में भाजपा की लगातार हार को मीडिया का बहुतायत हिस्सा स्थानीय कारक बता रहा है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी के आकर्षण को आज भी चुनौती रहित मानकर विपक्षी एकता और गठजोड़ की खिल्ली ही उड़ा रहा है। जान—बूझकर 2019 की लड़ाई को मादी बनाम राहुल बनाने की साजिश हो रही है।

फूलपुर और नूरपुर में मुझे निरन्तर फरवरी से मई तक जनता के ही बीच रहने का मौका मिला। जनता के अंदर भाजपा सरकार की अहंकारी भाषा, विकास के नाम पर मजाक, हर प्रकरण में हिन्दू—मुस्लिम विवाद खोजना, सीमा पर जवानों की लगातार शहादत, सीमा उल्लंघन, छुट्टा पशुओं का आतंक, गन्ना भुगतान नहीं, महिलाओं से छेडछाड़, विधायकों का बलात्कारी होना, पाकिस्तान पर आंखें तरेरना और चीन के सामने दुम हिलाना सबकुछ चर्चा का विषय बन चुका है।

शुरू में कहा गया कि मोदी के डर से राजनीतिक दलों का वजूद ही खतरे में इसलिये वे एक हो रहे हैं, लेकिन एक चीज महसूस की गई जनता में निरन्तर आक्रोश बढ़ रहा है। उसे जमीन पर न तो विकास दिख रहा है और न ही थाने तहसील की रिश्वत में कोई कमी दिखती है, बल्कि रेट और बढ़ गये हैं। भाजपा विधायक भी रेट लिस्ट जारी कर रहे हैं। बहुप्रचारित खनन पर नियंत्रण के दावे के बाद भी मौरंग बालू के रेट बढ़ गये हैं और उज्जवला में बंटे सिलेंडर खाली पड़े हैं क्योंकि लाभार्थी उसे भरवा नहीं पा रहे हैं।

पढ़ा—लिखा मध्य वर्ग और इलाहाबाद महानगर जैसे शहरों का निवासी भाजपा का परम्परागत वोटर होने के बाद भी आज अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। उसे लग रहा है कि केन्द्र में अति मजबूत सरकार भी जनता के लिये ठीक नहीं है, क्योंकि पेट्रोलियम पदार्थों में सरकारी लूट जारी है। स्वास्थ्य शिक्षा लगातार महंगे हो रहे हैं।

जनता मानकर चल रही है कि अमीर—गरीब की खाई बढ़ रही है और नतीजे सामने हैं। बैंक कर्मचारी वेतन को रो रहे। पेंशन बहाली फंसी है, शिक्षामित्र बर्बाद हैं। सबसे बड़ी बात भाजपा विधायक और कार्यकर्ता भी मानकर चल रहे हैं उनका सरकार पर दबाव नहीं है। मोदी और योगी को चुनौती देने की पार्टी में किसी की हिम्मत नहीं है। भाजपा मानकर चल रही है कि हिन्दुत्व की अफीम में मदहोश कार्यकर्ता और पैसों के बल पर प्रचार और वोटों की खरीद तथा अंध राष्ट्रभक्ति का उसका अचूक फार्मूला लाजवाब है, जवाबदेही की कोई जरूरत नहीं।

पूर्वांचल में भाजपा नेताओं की अहंकारी भाषा और मजाक उड़ाने के अंदाज ने सबसे पहले दलितों में बैचेनी पैदा की। रोहित वेमुला, ऊना कांड, भीमा कोरेगांव फिर भागवत का आरक्षण समाप्त करने और अनंत हेगड़े का संविधान बदलने की राय के बाद जैसे ही एससी/एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप आया और दलित उबाल पर आया।

अल्पसंख्यक डरा महसूस कर रहा था और अभी कर भी रहा है। बार—बार पाकिस्तानी और आतंकवादी होने का उलाहना और पिछड़ी जातियों के आरक्षण को लगातार बेकार बनाने की साजिश ने समाज के इन वंचित वर्गों को एक प्लेटफार्म पर आने पर मजबूर किया।

संवैधानिक संस्थाओं के साथ खिलवाड़ को शिक्षित मध्यम वर्ग ने लोकतंत्र के लिये खतरा माना। परिणाम निकला कि छिटका हुआ गैर भाजपाई वोट स्वप्रेरणा से एक मंच पर आया। इस बार राजनीतिक दल जनता का मूड समझकर बाद में एक हुये हैं। अब कोई राजनीतिक दल साथ रहे या गठबंधन से बाहर जाये, जनता भाजपा हटाने का मन बना चुकी है।

इसलिए बहुत ज्यादा विश्लेषण की जरूरत नहीं है और न ही उपचुनावों में भाजपा की हार कोई रॉकेट विज्ञान है। भाजपा का कट्टरपंथी वोट अंध राष्ट्रभक्ति और हिंदुत्व के नारे पर जितना एक होगा, समाज का पिछड़ा, अल्पसंख्यक और वंचित तबका उतनी ताकत से एक साथ आयेगा। जनता मन बना चुकी है कि समाज के अंदर बाटो और राज करो की भाजपा की रीति—नीति खारिज करनी है।

मोदी शासन की बढ़ रही फासिस्ट प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिये खतरा है। जनता अब प्रचार प्रसार भय आतंक से दूर रोजी रोटी रोजगार के मुद्दे पर हल चाहती है और जानती है हम किसी की प्रजा नहीं। हमें भागीदारी की सरकार चाहिये जिसके लिये गठबंधन ठीक है। देश को किसी भी रूप में अतिवाद पसंद नहीं है, क्योंकि मध्यमार्ग और सद्भाव ही गरीबों की सुनवाई कर सकता है।

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