चंदोला जी को मस्तिष्काघात के कारण दून अस्पताल के आईसीयू में एक हफ्ते पहले भर्ती कराया गया था, जहां उपचार के दौरान कल देर रात उनका निधन हो गया...
पत्रकारों के बीच मामू के नाम से प्रसिद्ध पत्रकार और कवि चारुचंद्र चंदोला के साथ काम कर चुके उत्तराखण्ड के जनसरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला कर रहे हैं उन्हें याद....
प्रसिद्ध पत्रकार व कवि चारुचन्द्र चंदोला का कल 18 अगस्त 2018 को देर रात देहरादून के दून अस्पताल में निधन हो गया है। चंदोला जी को मस्तिष्काघात के कारण दून अस्पताल के आईसीयू में एक हफ्ते पहले भर्ती कराया गया था, जहां उपचार के दौरान कल देर रात उनका निधन हो गया। चंदोला जी अपने पीछे पत्नी, एक अविवाहिता व एक विवाहिता बेटी को शोकाकुल छोड़ गए हैं।
अपनी पत्रकारिता व कविताओं के माध्यम से व्यवस्था की कमियों पर तीखा व सीधा हमला करने वाले चंदोला जी का जन्म 22 सितम्बर 1938 को दि पाइन्स, लॉज रोड, मेमयोनगर, म्यॉमार (पहले का नाम बर्मा) में हुआ। वे मूल रूप से पौड़ी के कपोलस्यूँ पट्टी के थापली गांव के थे और पिछले लगभग पांच दशकों के देहरादून के गढ़वालायन, 18/12 - पटेल मार्ग नजदीक पंचायती मंदिर में अपने पैत्रिक आवास में रह रहे थे।
उनकी मां का नाम राजेश्वरी चंदोला व पिता का नाम रत्नाम्बर दत्त चंदोला था। पिता के बाहर नौकरी में होने के कारण ही उनका जन्म म्यांमार में हुआ और उनका बचपन मामकोट सुमाड़ी में व्यतीत हुआ। इसी कारण उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सुमाड़ी (पौड़ी गढ़वाल) के प्राथमिक विद्यालय में हुई। उनके बाद उन्होंने हाईस्कूल पौड़ी के डीएवी कॉलेज से किया। इंटर इलाहाबाद के क्रिश्चियन स्कूल से और स्नातक पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से किया।
चंदोला जी ने अपनी पत्रकारिता का सफर टाइम्स ऑफ इंडिया मुम्बई से शुरू किया। वे बतौर प्रशिक्षु पत्रकार टाइम्स ऑफ इंडिया में भर्ती हुए। उसके बाद मुम्बई के फ्री प्रेस जर्नल, पूना हेरल्ड (पूना), पायनियर, स्वतंत्र भारत, नेशनल हेरल्ड, अमर उजाला (मेरठ), युगवाणी आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए पत्रकारिता की।
वे 1966 में देहरादून आ गए थे और पिछले पांच दशकों से युगवाणी अखबार व पत्रिका के समन्वय संपादक थे। देहरादून में कविता और साहित्य के पक्ष में एक वातावरण बनाने के लिए उन्होंने कुछ साथियों के साथ मिलकर पूर्वान्त नाम की एक संस्था भी बनाई।
उनकी हिन्दी में लिखी गई कविताओं का पहला प्रकाशन हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका धर्मयुग में हुआ था। उनकी कविताएँ साप्ताहिक हिन्दुस्तान व जनसत्ता में भी प्रकाशित हुई। चंदोला जी ने कुछ समय तक पौड़ी से हिमवन्त साप्ताहिक का सम्पादन व प्रकाशन भी किया। उन्होंने एक स्तम्भकार के तौर पर विभिन्न नामों मन्जुल - मयंक, मनभावन,यात्रीमित्र,कालारक्त,अग्निबाण,त्रिच और सर्गदिदा उपनामों से तीखे राजनीतिक व सामाजिक व्यंग्य भी लिखे।
युगवाणी में सर्गदिदा के नाम से लिखे जाने वाला उनका स्तम्भ बहुत ही चर्चित व प्रसिद्ध था। हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल) के बीए के पाठ्यक्रम में उनकी कविताएँ शामिल हैं। उनकी प्रकाशित कविता की पुस्तकों में कुछ नहीं होगा, अच्छी सॉस,पौ, पहाड़ में कविता, उगने दो दूब शामिल हैं।
उनका गढ़वाली में भी एक कविता संग्रह बिन्सरि के नाम से प्रकाशित हुआ। उन्हें पत्रकारिता व कविता में उल्लेखनीय योगदान के लिए उमेश डोभाल स्मृति सम्मान, आदि शंकाराचार्य पत्रकारिता सम्मान, जयश्री सम्मान व वसन्तश्री सम्मान भी मिले। पत्रकारिता सम्मान से उन्हें द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती जी ने सम्मानित किया था।
चंदोला जी की कविताएँ जनसरोकारों से जुड़ी कविताएँ हैं , जिनमें वे सीधे व्यवस्था को ललकारने से भी नहीं हिचके। अपनी कई कविताओं में तो उन्होंने जन से सड़ी-गली व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करने तक का आह्वान किया। चंदोला जी ने युगवाणी के माध्यम से गढ़वाल में अनेक नवोदित पत्रकारों व कवि को सँवारने और उन्हें एक दिशा देने का काम किया।
आधुनिक नई कविताओं को प्रारम्भिक दौर में उन्होंने युगवाणी के माध्यम से ही पाठकों के सामने रखा। तब उनकी इस हिमाकत के लिए हिन्दी साहित्य जगत में उनकी तीखी आलोचना भी हुई। चंदोला जी पर परम्परागत कविता लेखन के स्वरूप को बिगाड़ने के आरोप भी तत्कालीन हिन्दी कवियों ने लगाए, पर हिन्दी कविता को कुछ नया देने की ठान चुके चंदोला जी अपनी आलोचनाओं से विचलित नहीं हुए और उन्होंने युगवाणी में आधुनिक हिन्दी कविताओं का प्रकाशन व कवियों का प्रोत्साहन जारी रखा।
हिन्दी की आधुनिक कविताओं के प्रसिद्ध कवि लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल, राजेश सकलानी जैसे बहुत से कवियों को तराशने का काम पहले पहल चंदोला जी ने ही युगवाणी के माध्यम से किया।
वे एक तरह से नए पत्रकारों, लेखकोंं व कवियों के लिए एक प्रारम्भिक पाठशाला की तरह थे। जहां उनके साथ कुछ समय व्यतीत करने वाला नया पत्रकार, रचनाकार कुछ व कुछ सीखकर अवश्य जाता था। अनेक पत्रकार, लेखकों व कवियों के पहले संपादक चंदोला जी ही थे जिनकी रचनाओं, रिपोर्टों, कविताओं, लेखों को सुधार कर उन्होंने छपने लायक बनाया और उन्हें पत्रकारिता व लेखन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए युगवाणी में प्रकाशित भी किया।
युगवाणी से जुड़े हुए अधिकतर पत्रकार व रचनाकार उन्हें मामू कहते थे। मुझे भी युगवाणी में मामू के साथ लगभग डेढ़ दशक तक काम करने का अवसर मिला। पत्रकारिता में स्टोरी कैसी लिखी जानी चाहिए? और क्यों लिखी जानी चाहिए? किसी आधार के साथ लिखी जानी चाहिए? एक स्टोरी को जनसरोकारों से कैसे जोड़ा जा सकता है? इस पर बहुत कुछ मामू से सीखने का अवसर मिला। अब मामू हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी यादें व उनका महत्वपूर्ण मार्गदर्शन हमेशा हमारे बीच रहेगा।