उत्तराखण्ड हाईकोर्ट का आदेश, किसानों को 3 गुना अधिक समर्थन मूल्य दे सरकार

Update: 2018-04-27 18:18 GMT

किसान आत्महत्या की खबरें पहले उत्तराखण्ड में नहीं आती थीं, मगर पिछले साल सात सितंबर तक 7 किसानों ने कर्ज के बोझ तले दबे होने के कारण आत्महत्या की...

देहरादून, जनज्वार। तमाम किसान विरोधी खबरों और उनकी बदहाली की खबरों के बीच एक खबर राहत देने वाली भी है। उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने किसान बदहाली और बर्बादी के कारण आत्महत्या को मजबूर किसानों के मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि उन्हें पूरी लागत के तीन गुना अधिक समर्थन मूल्य दिया जाए।

उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने किसानों की दिन—ब—दिन खराब होती जा रही हालत और आत्महत्या के मामलों पर गंभीर चिंता जताते हुए उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव को तीन माह के भीतर किसान आयोग का गठन करने का ऐतिहासिक आदेश दिया। साथ ही राज्य की त्रिवेंद्र सरकार के साथ साथ केंद्र की मोदी सरकार को 2004 में गठित एमए स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुसार फसलों के औसत मूल्य का तीन गुना अधिक समर्थन मूल्य घोषित करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य का व्यापक प्रचार प्रसार करने करने का आदेश भी पारित किया है।

गौरतलब है कि कल 26 अप्रैल को किसान नेता गणेश उपाध्याय द्वारा दर्ज की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद शर्मा की संयुक्त खंडपीठ ने किसानों को फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य, गोदामों की सुविधा के साथ खेती के लिए मोबाइल एप बनाने के भी आदेश दिए। इतना ही नहीं कोर्ट ने सरकार को आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार को आर्थिक मदद देने के भी आदेश दिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि सरकार फसलों के भंडारण के लिए पर्याप्त व्यवस्था करे, ताकि किसानों को सस्ते में अपनी फसल बेचने की लिए मजबूर ना होना पड़े।

कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार 50 हजार रुपए तक के कर्ज वाले किसानों का ऋण माफ करे। राज्य में फसल बीमा लागू होने से पारंपरिक फसलों के अलावा किसानों को कॉमर्शियल फसलों के लिए भी कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध हो सकेगा।

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड के ऊधमसिंह नगर जिले के शांतिपुरी निवासी किसान नेता गणेश उपाध्याय ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने कहा था कि कर्ज के बोझ तले दबे होने की वजह से पहाड़ के किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। किसान आत्महत्या की खबरें पहले उत्तराखण्ड में नहीं आती थीं, मगर पिछले साल सात सितंबर तक सात किसानों ने कर्ज के बोझ तले दबे होने के कारण आत्महत्या कर ली थी।

याचिकाकर्ता गणेश उपाध्याय ने याचिका में कहा था कि किसानों की स्थिति ब्लूव्हेल गेम से अधिक खतरनाक हो गई है। बैंकों के कृषि ऋणों की ब्याज दरें इतनी अधिक हैं कि किसान उसे चुकाने के लिए साहूकारों से अधिक दरों पर पैसा ब्याज पर उठा रहे हैं, मगर सरकार है कि किसानों की फसल खरीदने के दस-दस माह तक भुगतान नहीं करती। उधमसिंहनगर में 75 करोड़ का धान किसानों ने बेचा था, लेकिन सरकार द्वारा इसका भुगतान दस माह तक नहीं किया गया, आखिर किस बिना पर किसान खेती करेंगे। दूसरी तरफ किसानों को इसी धान की फसल के कारण लिया गया बैंक ऋण पांच करोड़ रुपये हो चुका था, आखिर कहां से चुकाएंगे वो रकम किसान।

इस आदेश का स्वागत करते हुए किसान नेता और स्वराज अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने ट्वीट किया, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने किसानों की पूरी लागत के तीन गुना पर MSP घोषित करने के आदेश दिए, सिर्फ कृषि फसलों के नहीं, इस आदेश में फल, सब्जी, वन उपज, दूध, अंडा, मछली, शहद आदि सब शामिल होंगे। हर राज्य में ऐसा क्यों ना हो?

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