चमगादड़ से मनुष्य तक कोरोना वायरस के संक्रमण का जरिया आखिर कौन

Update: 2020-04-01 03:00 GMT

पूरी दुनिया में कोरोना महामारी फ़ैलाने के बाद भी और चीन के प्रशासन द्वारा दुनियाभर को यह बताये जाने के बाद भी कि अब वहां जानवरों की तस्करी और खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी गयी है, कुछ नहीं बदला है...

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका नेचर के नवीनतम अंक में यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग के वैज्ञानिकों के अध्ययन के हवाले से बताया गया है कि पैन्गोलिन नामक स्तनपायी जानवर में कोरोना वायरस के दो वर्ग पाए गए हैं। पंगोलिन दुनिया में सबसे अधिक तस्करी किये जाने वाले जीवों में से एक है, और चीन इसका सबसे बड़ा बाज़ार है। वहां इसका उपयोग मांस खाने में और अनेक परम्परागत दवाओं में किया जाता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग के वैज्ञानिकों ने जिस पैन्गोलिन का परीक्षण किया वह भी इंडोनेशिया से तस्करी के बाद चीन ले जाया जा रहा था। पैन्गोलिन की दुनिया में 8 प्रजातियां हैं, इनमें से 4 अफ्रीका में और 4 एशिया में पाई जाती हैं। हमारे देश में भी पैन्गोलिन मिलते हैं। अधिकतर पैन्गोलिन प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं, विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ रही हैं, इसलिए इनके व्यापार पर प्रतिबंध है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग के वैज्ञानिक डॉ. टॉमी लिम के अनुसार इनके व्यापार पर प्रतिबंध के कारण ही इस पैन्गोलिन को चीन पहुंचाने से पहले ही हांगकांग के हवाई अड्डे पर उतार दिया गया था। इससे इतना तो स्पष्ट है कि पूरी दुनिया में कोरोना महामारी फ़ैलाने के बाद भी और चीन के प्रशासन द्वारा दुनियाभर को यह बताये जाने के बाद भी कि अब वहां जानवरों की तस्करी और खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी गयी है, कुछ नहीं बदला है।

डॉ. टॉमी लिम के अनुसार इस अध्ययन से कोरोना वायरस से सम्बंधित दुनियाभर में जितने अनुसंधान किये जा रहे हैं, उसमें मदद मिलेगी। सबको यह पता है कि यह वायरस प्राथमिक तौर पर चमगादड़ में मिलता है, पर इसकी चमगादड़ से सीधे मनुष्यों तक पहुँचाने की संभावना लगभग नगण्य है।

पूरा वैज्ञानिक जगत उस जानवर की तलाश कर रहा है, जिससे चमगादड़ के बाद यह वायरस पहुंचा और फिर उस जानवर से मनुष्यों तक पहुंचा। इस अध्ययन के बाद शायद यह इस प्रश्न का उत्तर मिल जाए, क्योंकि अब पैन्गोलिन पर इस दृष्टिकोण से बड़े पैमाने पर अध्ययन किया जा सकेगा। यदि पैन्गोलिन ही चमगादड़ और मनुष्य के बीच की कड़ी है, तो यह भी समझाने में मदद मिलेगी कि उसमें ऐसा क्या विशेष है जिस कारण यह वायरस उसपर असर नहीं करता। फिर इसकी दवा या टीके का मनुष्य पर इस्तेमाल के पहले पैन्गोलिन पर भी परीक्षण किया जा सकेगा।

नेचर के इसी अंक में अनेक वैज्ञानिकों का एक पत्र भी प्रकाशित किया गया है, जिसमें ग्रेट एप्स, यानि बड़े बंदरों की प्रजाति – चिम्पैंजी, गोरिल्ला, बोनोबोस और ओरंगुटन को इस महामारी से बचाने की अपील की गयी है। ओरंगुटन एशिया में मुख्यतः इंडोनेशिया में मिलते हैं, जबकि शेष अफ्रीका तक सीमित हैं। इन वैज्ञानिकों के अनुसार ये ग्रेट एप्स हरेक स्तर पर मनुष्यों के सबसे नजदीकी जानवर हैं, इसलिए संभव है कि इन पर भी इस वायरस का असर हो।

सके पहले मनुष्यों में फ़ैलाने वाले एबोला वायरस से संक्रमित होकर ग्रेट एप्स भारी संख्या में मरे थे। इनपर मनुष्यों में साधारण सर्दी-जुकाम पैदा करने वाले वायरस भी असर करते हैं।

कोरोना वायरस, वायरस का एक वर्ग है जो इंसान और जानवर में पाया जाता है। 1930 में पहली बार इसका पता चला था जब यह वायरस घरेलू मुर्गियों में मिला था। जानवरों में कोरोना वायरस सांस, आंत, जिगर आदि की समस्या पैदा करता है। सिर्फ सात कोरोना वायरस ऐसे हैं, जो इंसान में बीमारी फैलाते हैं।

चार कोरोना वायरस की वजह से इंसान में आम सर्दी जुकाम की समस्या होती है। तीन कोरोना वायरस जो पिछले 20 वर्षों में मिले हैं, इंसान में फेफड़े का गंभीर संक्रमण पैदा करता है - 2002 में SARS-CoV (Severe Acute Respiratory Syndrom), 2012 में MERS-CoV (Middle East respiratory syndrome) और मौजूदा SARS-CoV-2। मौजूदा वायरस नया वायरस है, पहले यह इंसान में नहीं पाया गया है।

ह उन कोरोना वायरसों से अलग है जिसकी वजह से आम सर्दी जुकाम की समस्या होती है और यह 2002 के सार्स एवं 2012 के मर्स वायरस से भी अलग है। सार्स और मर्स की तरह ही नोवल कोरोना वायरस भी जूनोटिक बीमारी है। जूनोटिक बीमारी वैसी बीमारी होती है जो जानवर में होती है और जानवर से इंसान में फैलती है।

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के मुताबिक कोरोना वायरस वायरसों का एक समूह है, इनके संक्रमण से फ्लू जैसा लक्षण देखने को मिलता है - जैसे नाक का बहना, खांसी, गले में दर्द और बुखार। संक्रमण में स्थिति और खराब हो सकती है और संक्रमित व्यक्ति न्यूमोनिया जैसी स्थिति में भी पहुंच सकता है।

कोरोना वायरस का नाम 'कोरोना' से लिया गया है, कोरोना का लैटिन में मतलब क्राउन या ताज होता है। कोरोना वायरस की सतह पर कांटे जैसी आकृति होती है जो देखने में ताज जैसी लगती है, इसी वजह से इसे कोरोना नाम दिया गया।

कोरोना वायरस के कारण इस समय सबसे अधिक प्रभावित दुनियाभर की प्रतिष्ठित प्रयोगशालाएं हो रही है, और अनुसंधान प्रभावित हो रहा है। दुनियाभर में लॉकडाउन ने प्रयोगशालाओं को बंद कर दिया है, और अनुसंधानकर्ताओं को आने से मना कर दिया गया है।

दूसरे अध्ययनों में तो अधिक फर्क नहीं पड़ता, पर जहां भी चूहों जैसे जानवरों पर प्रयोग किये जा रहे थे, वहां बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है। अब इन चूहों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, अनेक जगह गन्दगी और भूख से चूहे मर गए और अनेक जगह शोधार्थियों ने खुद चूहों को मार डाला। दुनियार में लाखों प्रायोगिक चूहे अप्रत्यक्ष तौर पर कोरोना वायरस की भेंट चढ़ गए।

मेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार वर्ष 1960 के बाद से पनपी नई बीमारियों और रोगों में से तीन-चौथाई से अधिक का सम्बन्ध जानवरों, पक्षियों या पशुओं से है, और यह सब प्राकृतिक क्षेत्रों के विनाश के कारण हो रहा है।

पिछले साल नवम्बर से दुनियाभर में फ़ैल रहे कोरोना वायरस के लिए भी यही कहा जा रहा है। दरअसल दुनियाभर में प्राकृतिक संसाधनों का विनाश किया जा रहा है और जंगली पशुओं और पक्षियों की तस्करी बढ़ रही है और अब इन्हें पकड़कर अंतरराष्ट्रीय व्यापार में खरीद-फरोख्त में तेजी आ गयी है।

प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने पर या फिर ऐसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का जाल बिछाने पर जंगली जानवरों का आवास सिमटता जा रहा है और ये मनुष्यों के संपर्क में तेजी से आ रहे है, या फिर मनुष्यों से इनकी दूरी कम होती जा रही है।

ने जंगलों में तमाम तरह के अज्ञात वैक्टीरिया और वायरस पनपते हैं, और जब जंगल नष्ट होते हैं तब ये वायरस मनुष्यों में पनपने लगते हैं। इनमें से अधिकतर का असर हमें नहीं मालूम पर जब सार्स, मर्स या फिर कोरोना जैसे वायरस दुनिया भर में तबाही मचाते हैं, तब ऐसे वायरसों का असर समझ में आता है।

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