कंगना रनौत के अनुसार देश के कुल 3 प्रतिशत लोग टैक्स देते हैं जिससे देश चलता है। इसलिए किसी को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुचाने का हक नहीं है। अब तो इस विषय पर निश्चित तौर पर शोध किया जाना चाहिए कि सरकार के समर्थन में उतरे लोग इतने बेवकूफ क्यों होते हैं...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
देश के प्रधानमंत्री कम से कम दो भाषणों में आन्दोलन में पुलिस वालों को चोट लगाने या फिर मारे जाने की चर्चा कर चुके हैं। अधूरी और गलत जानकारी देकर जनता और मीडिया को गुमराह करना उनकी आदत में शुमार है और इसी बल बूते पर वो आज उस जगह बैठे भी हैं। यदि उन्हें पुलिस की इतनी चिंता है तो फिर जनता की चिंता भी करनी चाहिए। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि पुलिस ने अब तक कितने निर्दोष लोगों को मारा है, घायल किया है, गायब किया है, हवालात में ठूंसा है, कितने बलात्कारियों को बचाया है, कितने उन्मादी समूहों का साथ दिया है। प्रधानमंत्री जी को यह भी जानकारी देनी चाहिए कि कितने मासूम केवल पुलिस की हरकतों के कारण उग्रवादी या आतंकवादी बन गए।
इस समय पूरा देश धारा 144 के अधीन है और कहीं भी छात्र शांतिपूर्ण आन्दोलन करते दिखें तो उनपर पुलिस की लाठियां और पत्थर बरसने लगते हैं। आंसू गैस के गोले चलने लगते हैं। गोलियां भी चल रहीं हैं। कुछ वर्ष पहले हरेक विश्वविद्यालय में टैंक रखने का मतलब अब समझ में आ रहा है। नई दिल्ली के अनेक इलाकों से आप गुजरें तो ऐसा महसूस होता है जैसे किसी छावनी से गुजर रहे हों। 25 दिसम्बर को जंतर-मंतर रोड पर भी यही हाल था। पुलिस के अनेक बड़े अधिकारी सादी वर्दी में लोगों पर नजर गड़ाए बैठे थे।
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सरकार का डर इस कदर बढ़ गया है कि यदि विदेशी छात्र भी अपने साथियों का साथ देने आन्दोलन में खड़े रहते हैं तो उन्हें तुरंत देश छोड़ने का आदेश दिया जा रहा है। जर्मनी का एक छात्र जैकब लिंदेंथल को तुरंत वापस जर्मनी भेज दिया गया। जैकब एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत आईआईटी मद्रास में फिजिक्स में शोध कर रहा था और उसने आईआईटी के छात्रों के साथ दो प्रदर्शन में हिस्सा लिया। एक प्रदर्शन में उसने एक बैनर भी उठाया था, जिसपर लिखा था – 1933 से 1945 तक हम ऐसी ही हालत में थे। जाहिर है जैकब नाजी जर्मनी का हवाला दे रहे थे। इसके तुरंत बाद आब्रजन अधिकारियों ने उन्हें बुलाया और तुरंत देश छोड़ने का आदेश थमा दिया। कारण बताया गया कि स्टूडेंट वीसा की अवधि के दौरान आप कैम्पस से बाहर आन्दोलन में शरीक नहीं हो सकते। यह उस देश का न्याय है जहां के प्रधानमंत्री दूसरे देश जाकर वहां के राष्ट्रपति के लिए वोट मांगते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि गृह मंत्रालय कहता है कि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और विदेश मंत्रालय इस सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं देता। शशि थरूर में इसकी कड़ी आलोचना की और कहा कि कोई भी लोकतंत्र अभ्व्यक्ति की आजादी का हनन नहीं करता। आईआईटी के विद्यार्थियों के समूह चिंताबार ने भी इस कदम की भर्त्सना की है। इस सम्बन्ध में हाल में ही अभिनेत्री परिणति चोपड़ा का एक बयान ध्यान आता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सबसे अच्छा तो यह है कि संसद ऐसा बिल पास करे जिसके अनुसार भारत लोकतंत्र ना कहा जाए।
आज के दौर परिणति चोपड़ा की नहीं बल्कि कंगना रानौत की बात सुनी जाती है। कंगना के अनुसार देश के कुल 3 प्रतिशत लोग टैक्स देते हैं जिससे देश चलता है। इसलिए किसी को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुचाने का हक नहीं है। अब तो इस विषय पर निश्चित तौर पर शोध किया जाना चाहिए कि सरकार के समर्थन में उतरे लोग इतने बेवकूफ क्यों होते हैं और सरकार छोटी-छोटी बातों पर झूठ क्यों बोलती है।
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में संसद के भीतर में पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात कही थी। आंदोलनों के बाद पूरी सरकार कह रही है कि पूरे देश में एनआरसी का कोई प्रस्ताव नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली में कहा, 'जो हिंदुस्तान की मिट्टी के मुसलमान हैं, जिनके पुरखे मां भारती की संतान हैं। भाइयों और बहनों..उनसे नागरिकता क़ानून और एनआरसी दोनों का कोई लेना-देना नहीं है। देश के मुसलमानों को ना डिटेंशन सेंटर में भेजा जा रहा है, ना हिंदुस्तान में कोई डिटेंशन सेंटर है। भाइयों और बहनों..ये सफेद झूठ है, ये बद-इरादे वाला खेल है, ये नापाक खेल है। मैं तो हैरान हूं कि ये झूठ बोलने के लिए किस हद तक जा सकते हैं।'
दिल्ली की उसी रैली में प्रधानमंत्री ने कहा, 'महात्मा गांधी जी ने कहा था पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू और सिख साथियों को जब लगे कि उनको भारत आना चाहिए तो उनका स्वागत है। ये मैं नहीं कह रहा हूं पूज्य महात्मा गांधी जी कह रहे हैं। ये क़ानून उस वक्त की सरकार के वायदे के मुताबिक़ है।' प्रधानमंत्री ने दरअसल गांधी जी का केवल एक वाक्य बताया जो उन्हें सूट करता है, ना तो इसके आगे के वाक्य बताये और ना ही बाद के।
26 सितंबर, 1947 को महात्मा गांधी ने अपनी प्रार्थना सभा के भाषण में कहा था, 'अगर न्याय के रास्ते पर चलते हुए सभी हिंदू और मुसलमान मर भी जाएं तो मुझे परेशानी नहीं होगी। अगर ये साबित हो जाए कि भारत में रहने वाले साढ़े चार करोड़ मुसलमान छिपे रूप से देश के ख़िलाफ काम करते हैं तो मुझे ये कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि उन्हें गोली मार देनी चाहिए। ठीक इसी तरह अगर पाकिस्तान में रहने वाले सिख और हिंदू ऐसा करते हैं तो उनके साथ भी यही होना चाहिए। हम पक्षपात नहीं कर सकते।'
महात्मा गांधी ने कहा था, 'अगर हम अपने मुसलमानों को अपना नहीं मानेंगे तो क्या पाकिस्तान हिंदू और सिख लोगों को अपना मानेगा? ऐसा नहीं होगा। पाकिस्तान में रह रहे हिंदू-सिख अगर उस देश में नहीं रहना चाहते हैं तो वापस आ सकते हैं। इस स्थिति में ये भारत सरकार का पहला दायित्व होगा कि उन्हें रोज़गार मिले और उनका जीवन आरामदायक हो। लेकिन ये नहीं हो सकता कि वो पाकिस्तान में रहते हुए भारत की जासूसी करें और हमारे लिए काम करें। ऐसा कभी नहीं होना चाहिए और मैं ऐसा करने के सख़्त ख़िलाफ हूं।'
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लेकिन इससे पहले आठ अगस्त 1947 को महात्मा गांधी ने 'भारत और भारतीयता' पर जो कहा वो सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय है - 'हिंदुस्तान हर उस इंसान का है जो यहां पैदा हुआ और यहां पला-बढ़ा। जिसके पास कोई देश नहीं, जो किसी देश को अपना नहीं कह सकता उसका भी। इसलिए भारत पासरी, बेनी इसराइली, भारतीय ईसाई सबका है। स्वाधीन भारत हिंदूराज नहीं, भारतीय राज होगा जो किसी धर्म, संप्रदाय या वर्ग विशेष के बहुसंख्यक होने पर आधारित नहीं होगा, बल्कि किसी भी धार्मिक भेदभाव के बिना सभी लोगों के प्रतिनिधियों पर आधारित होगा।'