बच्‍चों की भूख मिटाने के लिए विधवा ने सिर मुंडवाकर 150 रुपये में बेचे बाल, पति कर्ज के चलते कर चुका है आत्महत्या

Update: 2020-01-11 08:20 GMT

महिला ने कहा रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने यह कहते हुए मदद देने से कर दिया इंकार कि आज शुक्रवार है और शुक्रवार को उधार देना माना जाता है अपशकुन...

जनज्वार। भूख मिटाने के लिए इंसान क्या क्या नहीं करता, यह बात खाये—अघाये लोगों को समझ में नहीं आयेगी। यह बात उस महिला से पूछिये जिसने अपने दो मासूम बच्चों की भूख मिटाने के लिये गंजा होना स्वीकारा और बाल बेचकर मिले 150 रुपयों से बच्चों के लिए राशन खरीदा। पहले महिला ने काम की तलाश की और जब काम नहीं मिला तो अंतिम विकल्प के तौर पर अपने बाल मुंडवाकर बच्चों का पेट भरा।

ह किसी फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है। केंद्र की मोदी सरकार के हर इंसान को भरपेट भोजन और हर हाथ को काम के दावों और वादों के उलट तमिलनाडु के सलेम में रहने वाली विधवा महिला किस हाल में जी रही होगी, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने बच्चों को भोजन देने के लिए गंजा होना स्वीकार किया।

गौरतलब है कि 31 वर्षीय महिला प्रेमा के पति ने 7 महीने पहले ही कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या कर ली थी, और पति की मौत के बाद परिवार बहुत बुरी स्थितियों से गुजर रहा था। स्थिति इतनी बुरी हो गयी थी कि बच्चों के साथ उसे कई—कई दिनों तक फांका करना पड़ रहा था। विधवा महिला ने बच्चों को भूख से बिलबिलाते देख अपने जानने वालों, आस पड़ोस और रिश्तेदारों से उधार भी मांगा, मगर किसी ने उसकी मदद नहीं की।

बाल बेचकर महिला को जो 150 रुपये मिले, उससे उसने 100 रुपये का खाना खरीदा ताकि बच्चों की भूख मिट सके और बाकी बचे पैसों से जहर खरीदकर आत्महत्या करने की कोशिश की।

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक पिछले शुक्रवार यानी 3 जनवरी को विधवा प्रेमा के पास एक भी पैसा नहीं बचा था। अपने पांच, तीन और दो साल के बच्‍चों को भूख से तड़पते देख प्रेमा ने हर जानने वाले के आगे हाथ फैलाये, मगर न पड़ोसियों ने और न ही रिश्‍तेदारों ने उसे उधार पैसा दिया दिया। ​जानकारी के मुताबिक रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने प्रेमा की मदद इसलिए नहीं की, क्योंकि शुक्रवार को उधार देना अपशकुन माना जाता है।

ब प्रेमा अपने बच्चों को भूख से बिलबिलाता देख तड़प रही थी तभी वह एक ​इंसान से मिली, जिसने उसे बताया कि वह विग बनाता है और अगर प्रेमा उसे अपने बाल मुंडवाकर बेच दे दे तो वह उसे कुछ पैसे दे सकता है। बच्चों का पेट भरने के लिए एक उम्मीद बंधती दिखी तो बिना हिचके प्रेमा अपनी झोपड़ी में गई और अपना सिर मूंडकर 150 रुपये में उस शख्‍स को बाल बेच दिए। 100 रुपयों से उसने बच्चों के लिए खाना खरीदा इसके बाद 50 रुपयों में वह एक दुकान से जहरीला कीटनाशक खरीदने गई। दुकानदार को उस पर शक हुआ तो उसने उसे जहर बेचने से इनकार कर दिया।

हालांकि दुकानदार के जहर न देने के बाद भी उसने एक पौधे के जहरीले बीज खाकर अपनी जान लेने की कोशिश की थी, मगर समय पर उसकी बहन ने उसे देख लिया तो उसकी जान बच गयी। जब प्रेमा की बदहाल स्थितियों की जानकारी ग्राफिक डिजाइनर का काम करने वाले जी बाला को हुई तो उन्‍होंने सोशल मीडिया पर क्राउड फंडिंग के जरिए मदद मांगी और उस पैसे से इस बदहाल परिवार की मदद की।

जानकारी के मुताबिक प्रेमा और उसका पति सेल्‍वम दिहाड़ी मजदूर के रूप में एक ईंट भट्टे पर काम करते थे। सेल्‍वम अपना व्यापार शुरू करना चाहता था, इसलिए उसने लगभग 2.5 लाख रुपये किसी से उधार भी लिये, मगर उसे व्यवसाय में धोखा मिला और परिवार के सामने भूखों मरने की हालत आ गयी। खुद को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार मानते हुए सेल्वम ने परेशान होकर खुदकुशी कर ली। पहले से ही पति की मौत से बुरी तरह टूट चुकी प्रेमा को वो लोग तंग करने लगे, जिनसे उसके पति ने व्यापार के लिए उधार पैसा लिया था। एक तो खाने के लाले, 3 बच्चों की जिम्मेदारी और उस पर लेनदारों के तंग करने से आजिज आ चुकी प्रेमा आत्महत्या के बारे में सोचने लगी।

गर अब इस परिवार के हालात सुधर चुके हैं। एक हफ्ते पहले तक आत्महत्या के बारे में सोच रही प्रेमा के लिए सोशल मीडिया किसी वरदान से कम साबित नहीं हुआ। ग्राफिक डिजाइनर जी बाला और समाज के दूसरे लोगों की मदद से प्रेमा के पास लगभग 1.45 लाख रुपये जमा हा गये। इतना ही नहीं गुरुवार 9 जनवरी से सलेम के जिला प्रशासन ने उसकी मासिक विधवा पेंशन भी शुरू कर दी और बाला के दोस्‍त प्रभु ने प्रेमा को अपने ईंट भट्टे में काम दे दिया, ताकि उसे फिर आत्महत्या जैसा घातक कदम न उठाना पड़े।

बुरी तरह टूट चुकी प्रेमा जी बाला को अपने लिए किसी भगवान से कम नहीं मानती। अब उसमें इतना साहस आ चुका है कि उसने बाला से कहा कि वह उसकी मदद के लिए फेसबुक पर की गई अपील को हटा दे। प्रेमा कहती है 'तमाम लोगों ने जो मेरी मदद की मैं उसकी अहसानमंद हूं। मैं फिर कभी आत्‍महत्‍या के बारे में सोचूंगी भी नहीं। मैं अपने बच्‍चों को अच्‍छी शिक्षा देना चाहती हूं और उन्‍हें इस गरीबी से निकालना चाहती हूं।'

प्रेमा की जिंदगी बचाने वाले जी बाला चूंकि खुद ऐसी स्थितियों से निकले हैं, जिनसे प्रेमा गुजर रही थी इसलिए उन्होंने उसकी मदद का फैसला किया था। बाला कहते हैं, बचपन में मेरी मां ने भी गरीबी की वजह से आत्‍महत्‍या करने का फैसला किया था, लेकिन रिश्‍तेदारों ने उन्‍हें बचा लिया। मैंने प्रेमा को बताया भी कि अगर मेरी मां उस दिन मर गई होतीं तो आज तुम उनके बेटे की कार में न बैठी होतीं।'

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