कल महिला क्रिकेट का फाइनल है और आज कोई चर्चा नहीं

Update: 2017-07-22 19:16 GMT

भारत में क्रिकेट को धर्म का दर्जा हासिल है। फिर इस सन्नाटे, चुप्पी को क्या मायने समझे जाएं। क्या ये धर्म केवल पुरुष टीम के मैदान पर उतरने पर जागता है...

आशीष वशिष्ठ की रिपोर्ट 

हम भले ही महिला समानता और सशक्तिकरण की लाख बातें और दावे कर लें, लेकिन भेदभाव मन से जाता दिखता नही।

महिला क्रिकेट विश्व कप इस समय चल रहा है। हमारी टीम शानदार प्रदर्शन के बूते फाइनल में प्रवेश कर चुकी है। कल यानी 23 जुलाई को उसका फाइनल मुकाबला लॉडर्स मैदान में अंग्रेजों की टीम इंगलैण्ड से होगा। बावजूद इसके देशभर में ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ है मानो खेल प्रेमी या देशवासी चैपिंयन ट्राफी में पाकिस्तान की धुलाई से आई मूर्छा से बाहर निकल नहीं पाये हैं।

महिला क्रिकेट की कप्तान मिताली राज कोई विराट कोहली तो है नहीं, जिसकी चर्चा मीडिया करे। विराट कोहली छह सौ रुपए लीटर वाला पानी पीते हैं। वो कैसी डाइट लेते हैं। अपनी महिला मित्र को कहां घुमाने ले जाते हैं वगैरह—वगैरह। सच्चाई यह है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान का नाम क्या है, ये बड़े—बड़ों को नहीं पता होगा। उनकी उपलब्धियों की बात तो छोड़ ही दीजिए। महिला क्रिकेट टीम के ग्यारह सदस्यों के नाम तो गणित के सवाल से भी कठिन प्रश्न है।

महिला क्रिकेट विश्व कप में यह दूसरा मौका है जब हमारी टीम फाइनल में पहुंची है। हमारी टीम ने इस टूर्नामेंट में पाकिस्तान की टीम को इस कदर रगड़—रगड़ कर धोया है कि अगर पुरुष टीम ऐसा कर देती तो मां कसम आधा देश पागल खाने में भर्ती हो जाता। दीवाली से ज्यादा पटाखे और बारूद सड़कों पर दाग दी जाती है।

महिलाएं हैं पाकिस्तान को हरा भी दिया तो क्या, कौन सा तीर मार दिया। पुरुष टीम ऐसा करती तो हजारों क्रिकेट के दीवाने खिलाड़ियों की आरती उतारने और बलाएं लेने लगते। महिलाओं ने हरा दिया श्मशान का सन्नाटा।  

भारत में क्रिकेट को धर्म का दर्जा हासिल है। फिर इस सन्नाटे, चुप्पी को क्या मायने समझे जाएं। क्या ये धर्म केवल पुरुष टीम के मैदान पर उतरने पर जागता है। क्या इस धर्म में महिला खिलाड़ियों को परिभाषित नहीं किया गया है। क्या इस धर्म के खांचे में महिला खिलाड़ी फिट नहीं बैठती हैं। कोई न कोई चक्कर तो जरूर है जो महिलाओं से भेदभाव करवा रहा है।

बीसीसीआई यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। बोर्ड भी महिला व पुरुष टीम में जमकर भेदभाव बरतता है। भारत की मुख्य यानी पुरुष टीम में खेलने वाले खिलाड़ियों को अलग-अलग प्रारुपों के लिए सलाना 25 लाख से एक करोड़ रुपये तक मेहनताना मिलता है। टी-ट्वेंटी मैचों में प्रति खिलाड़ी प्रति मैच दो लाख रुपये दिये जाते हैं।

आर्थिक रूप से हो रहे भारी भेदभाव का शिकार केवल महिलाएं ही नहीं, बल्कि दृष्टिबाधित क्रिकेट खिलाड़ियों का भी यही हाल है। एकदिवसीय या टी-ट्वेंटी खेलने वाली भारतीय महिला खिलाड़ियों को बीसीसीआई से प्रति मैच महज ढाई हजार रुपये ही दिये जाते हैं। खिलाड़ी की मेहनताना के रुप में दी जाने वाली इस राशि में गतिमान यह भारी भेदभाव दर्शाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी दृष्टिबाधितों व महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है।

खिलाड़ियों के प्रति भेदभाव के पीछे आम जनता में इनकी लोकप्रियता को जिम्मेदार ठहराया जाता है। भेदभाव के पीछे बाजार का गणित काम करता है। बाजार में जो बिकता है उसको बेचने के लिये जोर—जोर से शोर मचाया जाता है। पुरुष टीम की कोई भी चैंपियनशिप शुरू होने से कई महीने पहले ही मीडिया, सटोरियों से लेकर बाजारवादी ताकतें पूरी तरह सक्रिय हो जाती हैं।

महिला खिलाड़ियों के प्रति देश व समाज की घोर उदासीनता बाजार को पंसद नहीं आती। यह काफी हद तक सही भी है। पर सवाल यह भी है कि पुरुष टीम को हीरो बनाया किसने। मीडिया और बाजार जितना पुरुष क्रिकेटरों का कवरेज करता है अगर उसका चौथाई भी महिला खिलाड़ियों का कर दे तो आम जनमानस के लिये भी हीरो और आदर्श बन जाएंगी। लेकिन पुरुषवादी सोच और नजरिया तो यह है कि कोई महिला किसी पुरुष की प्रेरणा कैसे हो सकती हैं

जो महिला खिलाड़ी कल लॉडर्स के मैदान में फाइनल मुकाबले के लिऐ उतरेंगी, वो हमारी आपकी और इस पूरे देश की बेटियां हैं। इसलिए यह हम सबकी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम खेलों में महिला व दृष्टिबाधित खिलाड़ियों को उतनी ही तवज्जो दें, जितनी की पुरुष खिलाड़ियों को देते हैं। देश व देशवासियों का नाम रोशन कर रही बेटियों का हौसला बढ़ाना होगा। महिला और पुरुष के भेदभाव से उबरना होगा।

सन्नाटे को तोड़िए और धोनी, कोहली, युवराज, जडेजा, पण्डया, रोहित की तरह एक बार पूरे जोश—ओ—खरोस के साथ मिताली, हरमनप्रीत, वेदा, मोना, पूनम, सुषमा, मानसी, शिखा, नुजहत, स्मृति, एकता, राजेश्वरी या झूलन की हौसला आफजाई करके देखिए। यकीन मानिए भारत की ये बेटियां आपका सिर नीचा नहीं होने देंगी।

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