एक्स्ट्रा ऑर्डनरी बनाने के लिए बच्चों को सिखायें वाद्ययंत्र बजाना, क्योंकि ये बच्चे बनते हैं कुशाग्र बुद्धि बुजुर्ग : अध्ययन में हुआ खुलासा
बचपन में वाद्य यंत्र पर समय बिताने वाले बच्चे आगे चलकर मेधावी बनते हैं, इसे हम दूसरे तरीके से भी देख सकते हैं। हमारे वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा और डॉ अब्दुल कलाम को भी बचपन से लेकर आजीवन वाद्य यंत्रों को बजाने में रूचि रही...
महेंद्र पांडेय की टिप्पणी
Children who play musical instruments show a greater lifetime improvement on cognitive ability. संगीत कला से अधिक विज्ञान है और किसी वाद्य यंत्र को बजाने में महारत हासिल करना किसी वैज्ञानिक क्षेत्र में करिश्मा करने जैसा है – अब दुनिया के अनेक वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक यह मानने लगे हैं। अनेक अध्ययन बताते हैं कि संगीत, विशेष तौर पर किसी वाद्य यंत्र पर सिद्धहस्त होने का मतलब है बौद्धिक क्षमता में सामान्य लोगों से आगे बढ़ना। ऐसे अध्ययनों की कड़ी में यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों ने बताया है कि बचपन में किसी वाद्य यंत्र को कुशलता से बजाने वाले बच्चे जब बुजुर्ग होते हैं तब उनका बौद्धिक स्तर सामान्य लोगों से अधिक रहता है और उनका जीवन स्तर भी बेहतर रहता है। इस अध्ययन को जर्नल ऑफ़ साइकोलॉजिकल साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
पर, जाहिर है ऐसे अध्ययन को लम्बे समय तक करने की जरूरत होगी, जिसमें बच्चों के बुजुर्ग होने तक का सफ़र तय करना होगा। यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के लिए लोथियन बर्थ कोहोर्ट 1936 नामक समूह को चुना। लोथियन बर्थ कोहोर्ट 1936 नामक समूह में एडिनबर्ग और पास के शहर लोथियन में वर्ष 1938 में जन्मे लोगों का समूह है, और इनका चयन 1947 में स्कॉटिश मेंटल हेल्थ सर्वे के लिए किया गया था। इसके 366 सदस्य आज भी मौजूद हैं और इनमें से 117 व्यक्ति अपने बचपन में वाद्य यंत्र बजाया करते थे। 1947 में मानसिक सर्वेक्षण के दौरान इनकी पसंद-नापसंद, खाली समय के कार्य इत्यादि के साथ ही बौद्धिक स्तर मापने के परीक्षण भी किये गए थे।
लोथियन बर्थ कोहोर्ट 1936 के सभी सदस्यों का बौद्धिक परीक्षण केवल 1947 में ही नहीं किया गया, बल्कि इसके बाद भी 70 वर्ष की उम्र तक अलग अलग कारणों से इनका बौद्धिक परीक्षण किया जाता रहा है। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस पूरे समूह का बौद्धिक परीक्षण बाद में भी उसी विधि से किया गया, जिस विधि से 1947 में किया गया था। इस परीक्षण में भाषा, अंक और स्थानिक ज्ञान का टेस्ट शामिल था। यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों ने इन सभी परीक्षणों के नतीजों का गहन अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि बचपन में वाद्ययंत्र बजाने वाले बच्चे आगे चलकर सामान्य से अधिक बुद्धिमान बुजुर्ग बनते हैं। इस समूह में शामिल लोग बचपन में कोई एक ही वाद्ययंत्र नहीं बजाते थे, बल्कि वाद्य यंत्रों में पियानो, अकॉर्डियन, बैगपाइपर, गिटार और वायलिन सभी शामिल थे।
बचपन में वाद्य यंत्र पर समय बिताने वाले बच्चे आगे चलकर मेधावी बनते हैं, इसे हम दूसरे तरीके से भी देख सकते हैं। हमारे वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा और डॉ अब्दुल कलाम को भी बचपन से लेकर आजीवन वाद्य यंत्रों को बजाने में रूचि रही। एलेग्जेंडर ग्रैहम बेल, थॉमस अल्वा एडिसन और अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक जिन्होंने आधुनिक विज्ञान को एक नई दिशा दी, भी बचपन से ही वाद्य यंत्रों को बजाने में सिद्धहस्त थे।
वायलिन और पियानो में निपुण अल्बर्ट आइंस्टीन ने तो अनेक बार यह कहा कि यदि वे वैज्ञानिक नहीं होते तो निश्चित ही एक संगीतकार होते। पिछले वर्ष फ्रंटियर्स ऑफ़ न्यूरोसाइंस नामक जर्नल में यूनिवर्सिटी ऑफ़ चिली के वैज्ञानिकों के प्रकाशित अध्ययन के अनुसार जो बच्चे वाद्य यंत्र बजाते हैं, उनकी स्मरण शक्ति दूसरे बच्चों से बेहतर होती है और ऐसे बच्चे अपनी कक्षाओं में दूसरे बच्चों की तुलना में अधिक सजग रहते हैं और विषय की तरफ ध्यान देते हैं।