प्यार, मोहब्बत और धर्म की दीवार पर खड़ा हिंदी मीडिया

सीमा हैदर को लेकर हिंदू बनाम मुस्लिम के साथ साथ पाकिस्तान का तड़का भी इसमें लगाया गया और खबरों धर्म के रंग में रंगते हुए यह भी बताया कि उसका पति उसे छोड़कर अरब में रहता था...

Update: 2023-07-11 12:20 GMT

अंजनी कुमार की टिप्पणी

2 जुलाई, 2023 को ‘यूपीतक’ के डिजिटल न्यूज पोर्टल पर अखिलेश कुमार की खबर छपी हैः ‘टूटी धर्म की दीवार! शबाना ने इस्लाम छोड़ अपनाया हिंदू धर्म, रजनी बन प्रेमी बबलू से की शादी’। यह बड़ी खबर और आपका विचार के कॉलम में छपा है। यह खबर उत्तर-प्रदेश के कौशांबी जिले का है जिसमें चार साल से चल रहे प्रेम संबंध की परिणति विवाह में हुआ। ये दोनों युवा एक ईंट भट्ठा पर काम करने वाले मजदूर परिवार से थे। ये दोनों भी वहां मजदूर थे।

इस समाचार को तड़का देने के लिए लिखा गया है कि शबाना के परिजन इस विवाह के खिलाफ थे। इसके बाद शबाना ने विद्रोह किया और अपने प्रेमी संग भागकर एक मंदिर में हिंदू धर्म अपनाते हुए अपना नाम रजनी रखा और बबलू से शादी कर लिया। बाद में शबाना के परिजनों ने भी इस शादी को स्वीकार कर लिया।

एक और दूसरी खबर देखिए। यह खबर नवभारत टाइम्स के हिंदी डिजिटल न्यूज पोर्टल पर 8 जुलाई, 2023 को अचलेंद्र कटियार के नाम से छपी है। अहमदाबाद शहर से छपी इस खबर का शीर्षक हैः ‘बांग्लादेशी हसीना के जाल में फंसकर आशीष गोस्वामी बन गया मोहम्मद शेख, खतना करवाने में खुला राज’। इस खबर का कैची क्लिप हैः गुजरात के राजकोट में धर्म परिवर्तन का अनोखा मामला सामने आया है। इंस्टाग्राम पर बांग्लादेश की एक युवती से दोस्ती होने के बाद युवक ने धर्म बदल लिया और फिर उसने मुस्लिम वेषभूषा में रहना शुरू कर दिया। मामला यहीं पर नहीं रुका युवक ने युवती से ऑनलाइन निकाह भी कर लिया। इस मामले में हिंदू संगठनों ने परिवार के कहने पर कराई वापसी और खतना नहीं कराने को कहा। यह खबर बताता है कि परिवार का आरोप है कि जाकिर नाइक के यू-ट्यूब चैनल और वेबसाइट से ही युवक का ब्रेनवॉश हुआ।

लेकिन, नवभारत टाइम्स का हिंदी डिजिटल न्यूज पोर्टल सीमा हैदर के मामले में एक दूसरा रुख अपनाता है। इसके एक खबर का शीर्षक देखिएः ‘पांचवी पास पर फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है, कंप्यूटर में मास्टर पाक ‘प्रेम दीवानी’ सीमा हैदर’। यह चार बच्चों की मां है और यह डिजिटल संपर्कों के रास्ते भारत में सुरक्षा एजेंसियों को धता बताते हुए अपने भारतीय प्रेमी से मिलने ग्रेटर नोएडा पहुंची। सीमा हैदर को लेकर हिंदू बनाम मुस्लिम के साथ साथ पाकिस्तान का तड़का भी इसमें लगाया गया और खबरों धर्म के रंग में रंगते हुए यह भी बताया कि उसका पति उसे छोड़कर अरब में रहता था। मानो भारत में अरब कमाने जाने वालों की कोई कहानी ही न हो, और यह एक महिला के प्रति अपराध की तरह हो।

इन पंक्तियों के लेखक ने यहां तीन समाचारों का चुनाव रैंडम तरीके से किया है। प्यार और मोहब्बत को लेकर डिजिटल न्यूज पोर्टल ऐसे समाचारों से भरे होते हैं। इसका जरूर ही विधिवत अध्ययन होना चाहिए। भारत में धर्म की दीवारें पहले भी गिरती रही हैं। और, जब ये दीवारें गिरी हैं, उसे एक आदर्श स्थिति की तरह ही देखा गया है। सिर्फ धर्म ही नहीं जातियों की दीवारें जब गिरती हैं, तब भी उसके किस्से कहानियां गीतों में ढलकर स्मृतियों का हिस्सा बन जाते हैं।

प्रसिद्ध फिल्म मुगल-ए-आजम की कहानी वर्ग की दीवार गिरने को लेकर बनाई गई थी। एक मध्ययुगीन दौर में किसी घटना को राजपरिवार के साथ जोड़ दिया गया और वह कथानकों में इस तरह ढल गया मानों इतिहास का सच हो। और, जब यह आधुनिक दौर में फिल्म के पर्दे पर उतारा गया तब इसने इतिहास ही रच दिया। एक मुगलिया नवाब भारत का बादशाह बनने वाला है और वह एक कनीज के प्यार में डूब गया। उसके पिता ने उसे जिंदा दीवार में चुनवा दिया। यह कथानक यथार्थ की जमीन पर कल्पना की रंगीनीयों में हमें ले जाता है और प्यार की उम्मीदों को धर्म, जाति और वर्ग के युद्धों के बीच जिंदा और साकार करने की प्रेरणा देता है।

आज, जिन समाचार पत्रों, पोर्टलों, चैनलों आदि को आधुनिकता बोध से लैस होकर कम से कम संविधान की मौलिक आधारशिला के पक्ष में ही सही इंसान की बराबरी का बोध कराने वाले खबर से लैस होना चाहिए, वह धर्म-युद्ध के दलदल में फंस गया। आज की खबरें, 1920 के दशक में हिंदू धार्मिक संगठनों द्वारा धर्म, प्यार और विवाह को लेकर जिन पर्चाें को बांटना शुरू किया था और शुद्धीकरण और पुनर्वापसी का जो अभियान चलाया था, 100 साल बाद उसी की अनुगूंज बन गई हैं।

जिन मजदूरों के विवाह की कहानी यूपी तक में आई, वह उनके भट्ठा मजदूरी करते हुए जीवन, उसकी कठिनाई, मजदूरी और यूपी के श्रम-कानूनों कोई हैसियत गंवा चुके एक श्रमिक की तरह नहीं आई है। यह उसके रोजमर्रा के जीवन की पहचान के बतौर ये पोर्टल खबर बनाने की बजाय उसे एक धार्मिक रंग देता है और खबर को इस तरह बनाता है मानो एक धर्म ने दूसरे को कब्जे में ले लिया है और अपने रंग में बदल डाला है। सीमा हैदर के मामले में भी धर्म और पाकिस्तान की सीमा को तोड़ देने का रंग मुख्य है जबकि सुरक्षा, नागरिकता, फ्रॉड आदि मसले गौण पक्ष है।

संभव है, अन्य मसलों में ये गौण ही मुख्य पक्ष हो जाये। हमने जो तीसरा उदाहरण लिया है, उस खबर को यदि आप पढ़ते हैं तब इस बात को साफ साफ यह बता नहीं सकते हैं कि यह मसला प्यार, मोहब्बत का है, धर्म के चुनाव का है या धर्म-युद्ध का है। अनुमान के आधार पर खबर बना दिया गया है।

ऐसा लगता है कि मीडिया कथित धर्म-युद्ध में एक पक्ष लेकर समाचार बेच रहा है। एक उद्योग की तरह उसे समाचार जरूर बेचना चाहिए, लेकिन उसे यह याद रखना है कि वह कलम बेच रहा है और कलम से लिखने वालों की एक पीढ़ी तैयार करते हुए भारत के लोकतंत्र की एक आधारशिला बेच रहा है। ऐसा लगता है कि भारत का राजनीतिक संकट अब समाचारों को पूरी तरह से गिरफ्त में ले लिया है। उम्मीद है, प्यार की खबर बनाने वाले गुलजार के इस गीत को सुनेंगे और इस पर हाथ लगाते हुए थोड़ा अपने दिलों में भी झाकेंगे —

हमने देखी है इन आंखों की महकती खुश्बू, हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्जाम न दो।

सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो।

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