घर-घर में दस्तक दे चुकी कोरोना महामारी से कैसे बचेगा भारत, एक कोरोना मरीज की डायरी
इस बार कोरोना पिछली बार से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है और सीधे फेफड़ों पर वार कर रहा है। भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है
हिमांशु जोशी की टिप्पणी
जनज्वार। जनवरी 2020 से क्वारंटीन, सेनेटाइजर, लॉकडाउन जैसे कुछ शब्द हमारी आम बोलचाल की भाषा में शामिल हो गए। शायद इनको अपनी जिंदगी में कोई भी नहीं घोलना चाहता था। विदेशी बीमारी पर पहले हम भारतीयों ने बहुत से मीम्स बनाए। इसे अमीरों की बीमारी का दर्जा दिया गया। धीरे-धीरे यह महामारी भारत में पैर पसारने लगी। मार्च में प्रधानमंत्री ने टीवी पर आकर सम्पूर्ण भारत में लॉकडाउन की घोषणा कर दी।
बिना सोचे-समझे और परिणाम की परवाह किए लगाए गए इस लॉकडाउन की वज़ह से हर दिन दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर जीने वाला आधा भारत अपना भविष्य अंधेरे में देख सड़कों पर आ गया।
अप्रैल, मई, जून आते आते यह बीमारी बड़े-बड़े शहरों से घर लौट रहे कोरोना पॉजिटिव मरीज़ों से भारत के गांवों में भी पहुंच गई। लॉकडाउन की वज़ह से छात्रों की पढ़ाई लिखाई चौपट होने लगी।
अपनी कमाई का जरिया बंद होते देख शिक्षा माफियाओं ने ऑनलाइन शिक्षा का नया पैंतरा अपनाया। ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर स्कूली छात्रों के अभिवावकों से स्कूल, कॉलेजों द्वारा मोटी फ़ीस वसूलने का क्रम जारी रहा। नेताओं के साथ मिल इन शिक्षा माफियाओं ने इसके खिलाफ़ उठ रही विरोध की आवाज़ दबा दी।
ऑनलाइन शिक्षा इतनी कारगर है तो सरकार को अनएकेडमी, बॉयज़ू और युट्यूब को भी शिक्षा संस्थानों का दर्जा दे देना चाहिए। आईआईएमसी, आईआईटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी संस्थानों में भौतिक रूप से मौजूद रहने से जो शैक्षिक माहौल बनता है, उससे ही इन संस्थाओं का वजूद है।
रोज़गार ख़त्म होने से युवाओं को निराशा घेरने लगी। एक उम्मीद थी कि हालात सुधरेंगे और इस अंधेरी रात का भी कभी अंत होगा। सितम्बर की शुरुआत होते ही मैं भी कोरोना पॉजिटिव हो गया, उस दौरान मैं अपने रोज़ के हालातों पर यह डायरी लिखता गया।
एक कोरोना मरीज़ की डायरी
बारिश में भीग कपड़े न बदल पाना मेरे लिए इतना महंगा पड़ने वाला है यह मैंने सोचा नही था।
शाम से ही मुझे ठंड महसूस हुई और मैंने अपने पास पहले से उपलब्ध काढ़ा पिया। अगली सुबह मुझे हल्का बुखार महसूस हुआ पर फिर दो तीन बार काढ़ा पी वह बुखार जाता रहा।
भीगने के तीसरे दिन मेरा कोरोना टेस्ट हुआ उस समय मुझे फिर से हल्का बुखार महसूस हो रहा था, पर रात वह बुखार भी उतर गया था।
दूसरे दिन आई कोरोना रिपोर्ट में मेरा नाम नही था पर अपने आसपास लगातार कोरोना पॉजिटिव मरीज़ मिलने से मेरी चिंता स्वाभाविक थी। बाद में अस्पताल से मुझे अपने कोरोना पॉजिटिव होने की सूचना मिली और मैं अब एक होटल में पहुँच चुका था जहां मुझे दस दिन संगरोध में रहना था।
नकारात्मक विचार मन में आ रहे थे, पर तभी कुछ दिन पहले बॉलीवुड एक्टर पूरब कोहली से जुड़ा समाचार याद आया। कोरोना पॉजिटिव आने पर उन्होंने कैसे आराम पाने के लिए गुनगुने पानी का गरारा, प्लास्टिक की बोतल में गर्म पानी डाल छाती की सिकाई, भाप लेना सुझाया था। अदरक, शहद, हल्दी का काढ़ा लेने के साथ ही भरपूर आराम को उन्होंने कोरोना का तोड़ बताया था।
उस रात मैंने अपने आने वाले दिनों के लिए एक समय-तालिका तैयार की, परिवार को बताने में हिचकिचाहट थी तो अपने एक मित्र को खुद के पॉजिटिव होने की ख़बर दी और समय से रात दस बजे सो गया। संगरोध का दूसरा दिन मोबाइल रिसीव करने में ही निकल गया। अगर कोई कोरोना से परेशान नही होगा तो वह इन फोन कॉल्स से तो अवश्य ही मर जाएगा।
एक्टर ड्वेन जॉनसन, फुटबॉलर नेमार के कोरोना पॉजिटिव होने की खबर देखी। ड्वेन जॉनसन (द रॉक) ने कोरोना को हराने के लिए अनुशासन को आवश्यक बताया है। शायद खाना बदलने या यूं कहें राशन बदलने की वज़ह से मुझे पेट में दिक्कत महसूस हो रही है उम्मीद है दो-तीन दिन में यह ठीक हो जाएगी। शाम पांच बजे बाबा रामदेव के कोरोना से लड़ने के लिए बताए योग किए।
परिवार को खुद के कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी दी और यह भी दिलासा दी कि स्थिति गम्भीर नहीं है। परिवार को बताना जरूरी है कोरोना पॉजिटिव होना कोई अपराध नहीं है, मन का एक बोझ हल्का हो जाता है। खाने का स्तर आज दूसरे दिन भी गिरा हुआ ही रहा, मैं खाने पर कभी कटाक्ष नहीं करता, पर तनाव भरे दिनों में यह मन को उचेटता है।
छाती में आज खिचांव सा महसूस होने लगा है शायद यह कोरोना ही है, नकारात्मक विचार मन को घेरने लगे हैं पर समय-सारणी के अनुसार कार्य कर रहा हूँ। सोने का समय नज़दीक है, सब कुछ ठीक रहा तो कल मिलते हैं और जानेंगे संगरोध में एक कोरोना रोगी का तीसरा दिन।
तीसरे दिन की सुबह अब तक कि सबसे बेहतरीन है, मैं खुद को पिछले कुछ दिनों में सबसे स्वस्थ महसूस कर रहा हूँ। एक टेस्ट के नतीज़े के परिणामस्वरूप किसी को दस से बीस दिनों के लिए संगरोध में ठूस देना कितना सही है इसका आप खुद निर्णय ले सकते हैं। अभी तक मेरा कोई दूसरा टेस्ट नही हुआ है न ही मुझे कोई दवा दी गई है। साधारण बुखार भी रोगी के शरीर में कुछ दिन रहता ही है।
अखबार में बार, पब और मेट्रो शुरू होने की खबरें छायी हुई हैं। यह तो तय है सरकार को चालीस लाख के करीब पहुंच चुके कोरोना मरीज़ों की ज्यादा चिंता नहीं है।
पहले तो विदेश से आने वाले यात्रियों को पूरे देश में फैलने देना और फिर लॉकडाउन लगा ख़ौफ़ज़दा मज़दूरों को भारत के दूरस्थ क्षेत्रों में कोरोना वाहक बना भेजना। सरकार की रणनीतियों का वास्तव में भगवान ही मालिक है।
खैर, अपनी समय- सारणी के अनुसार अनुशासन में रहते हुए आगे का दिन व्यतीत करना है, उम्मीद है अब यह स्वास्थ्य भी साथ देगा। रात थोड़ा छाती में खिंचाव महसूस हुआ पर यह कोरोना के डर से उत्पन्न भ्रम भी हो सकता है।
डॉक्टर, दवाई, इलाज क्या होता है अब तक पता नही, वो तो मैं पूरब कोहली का अनुसरण कर रहा हूं और मेरी स्थिति गम्भीर नहीं है, नहीं तो बिन इलाज के दम तोड़ते कोरोना मरीजों की जो वीडियो सोशल मीडिया पर देखी थी वह लाईव देखता। पानी की गर्म बोतल से छाती सेंकने के बाद अब सोने का समय हो गया है।
दरवाज़े की घण्टी के साथ चौथे दिन सुबह मेरी नींद खुली। आज चाय भी अच्छी लगी और स्वास्थ्य भी ठीक है। छाती में खिंचाव ही पिछले दो दिन से समस्या बना हुआ है पर यह ज्यादा गम्भीर नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों की नीट और जेईई पर छह राज्यों की पुनर्विचार याचिका खारिज़ कर परीक्षा को हरी झण्डी दे दी है, शायद सब मिल कोरोना मरीज़ों का आंकड़ा जल्द से जल्द एक करोड़ पहुंचाना चाहते हैं।
यूट्यूब में कुछ वीडियो देखे, जिनमें पेट के बल लेटने से अच्छी श्वसन क्रिया होगी बताया है अतः अब यह प्रयास भी शुरू करूँगा। शाम होते होते ज्यादा बोलने में खांसी होने लगी है और थोड़ा सा काम करते ही सांस फूल जाती है।
खाने का मन बिल्कुल नही है और कमज़ोरी हावी होने लगी है, मुझे पता है खाया नहीं तो फिर अस्पताल का ग्लूकोज लेना होगा इसलिए रात जबरदस्ती खा सो गया।
पांचवां दिन सुबह आठ बजे दरवाज़े की घण्टी से शुरू हुआ। समय- सारणी के अनुसार उठ तो नहीं रहा हूँ पर उसका पालन जरूर कर रहा हूँ।
छाती में खिंचाव बढ़ता ही जा रहा है, पर आराम से सांस ले पा रहा हूँ। आज खाना खाने में ज्यादा परेशानी नही हुई और कुछ चीनी फिल्मों को देख कर दिन व्यतीत किया।
बुख़ार तो पिछले कुछ दिनों से गायब ही हो गया है। शाम होते-होते खाँसना बढ़ गया था और घुटने में हुए एक छोटे से दाने ने अब भयंकर फोड़े का रूप ले लिया है। नींद आना मुश्किल काम है पर गर्म बोतल से छाती पर सिकाई ने बहुत आराम दिया।
आज कोविड सेन्टर में छठे दिन की शुरुआत खांसी के प्रकोप से होगी सोचा था, पर अब तक इतनी ज्यादा परेशानी नहीं हुई है। समय-सारणी के अनुसार सारे कार्य कर लिए हैं और दिन के भोजन का इंतज़ार है। शाम तक छाती में कोई खास समस्या महसूस नही हुई है और न ही ज्यादा खांसी।
देश के लिए कोरोना, भारत- चीन सीमा विवाद, कश्मीर, बेरोज़गारी से ज्यादा कंगना, सुशांत विवाद ज्यादा महत्वपूर्ण है। मीडिया वही दिखाता है जो आप देखना चाहते हैं। सरकार वही करती है जिससे उसका नाम हो, नहीं तो जो सुरक्षा कंगना को दी गई है वह उन्नाव रेप पीड़िता को मिलती तो उसकी जान न जाती।
दर्शकों की रुचि सुशांत विवाद में है, इसलिए अर्नब जैसे पत्रकार अपना चैनल खोल आज देश के सर्वश्रेष्ठ पत्रकारों में शामिल हो गए हैं और रवीश दर्शकों की गाली खाते रह गए। आज तीन दिन बाद सोने से पहले का सूरतेहाल लिख पाने में समर्थ हूं, नहीं तो किसी तरह सांस चलते आंख लग जाए और अगली सुबह हो जाए सोचता था।
आज छाती में संक्रमण कम हुआ है जान पड़ता है और यहां का खाना तो किसी को एक महीने में कुपोषण का शिकार बना दे, पौष्टिक तत्व तो हैं पर जीभ में कोई स्वाद तो आए। खुद बनाए ऑमलेट से दो रोटी तोड़ पाया।
कल सातवां दिन शायद मुझे बिल्कुल चंगा कर देगा, उसके लिए मुझे अब सोना होगा। उम्मीद है सब ठीक रहेगा।
सांतवा दिन सुबह से ही मारे भूख मेरा हाल बुरा होने लगा था। अब यह खाना मेरे लिए मुसीबत बन गया है। जैसा भी स्वाद है अब मुझे यह खाना जबर्दस्ती खाना होगा। खांसी की समस्या आज भी थोड़ी बहुत बनी हुई है पर यह गम्भीर नही है। अपने बनाए नियमों का पालन करना है।
पिछले तीन साल से मुझे हर साल एक महीने से ज्यादा खांसी हो रही है यह उससे कम है। मुझे नहीं पता कि सिर्फ खांसी तक सीमित मैं वास्तव में कोरोना संक्रमित हूं भी या नहीं क्योंकि मेरा सिर्फ एक बार टेस्ट हुआ वह भी तब जब मुझे भीग कर बुखार आया था, न मुझे ज़ुकाम हुआ, न मेरी सूंघने की क्षमता कम हुई और न ही कभी मेरी जिह्वा ने किसी चीज़ का स्वाद लेने से मना किया। खैर कोविड सेंटर में सांतवां दिन भी समाप्त हुआ।
आज कोरोना सेंटर में आंठवा दिन है सुबह हल्की खांसी बनी हुई है, पर सांस लेने में कोई दिक्कत नही है। टेस्ट से पहले जब मुझे बुखार आया था वह दिन बीते आज दस दिन हो गए हैं।
पूरे दिन अपनी बनाई समय सारणी के अनुसार चला और आज लम्बी सांस खींचने पर भी छाती में कोई ज़ोर नही पड़ रहा। आज यहां के बेस्वाद खाने में भी मैंने तीन रोटियां खाई।
कल कोविड सेंटर में मेरा नवां दिन होगा और कोरोना टेस्ट हुए दसवां। कोरोना संक्रमित होने के बाद बुखार आए हुए ग्यारवां। नियमानुसार टेस्ट से दसवें दिन कोविड सेंटर से छुट्टी मिल जा रही है और फिर कुछ दिन गृह संगरोध है।
शायद अब मैं किसी को संक्रमित नही करूँगा पर कोरोना मेरे शरीर से तो चला गया लोगों के दिमाग से नही। अपने भी कोरोना मरीज़ को बुरी नज़र से देख रहे हैं जबकि आप किसी कोरोना मरीज़ का दूर से तो सामना तो कर ही सकते हैं। क्या मैं अछूत हूँ? क्या मैं ऐसे रोग से ग्रसित हूँ जो असाध्य है?
शायद यह आलेख पूरे देश में लोगों की कोरोना मरीज़ के प्रति भावना को बदलेगा और लोगों को इससे लड़ने की हिम्मत देगा क्योंकि संख्या लगातार बढ़ ही रही है। कल मिलते हैं और समाज से बहिष्कृत एक कोरोना मरीज़ की कहानी आप तक लगातार पहुँचेगी।
शुभ रात्रि।
कोविड सेंटर में नवें दिन की शुरुआत कोविड सेंटर से आज़ादी के फरमान के साथ हुई। अब मुझे सात दिन के लिए होम आइसोलेशन में रहना है। कोविड सेंटर का बुरा खाना किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को मरीज़ बना सकता है।
बाहर आकर मैं बिना किसी से सम्पर्क बनाए अपने घर पहुंच चुका हूं और रात मैंने ऐसे खाना खाया जैसे महीनों से भूखा हूँ। शरीर में ठीक से न खाने की वज़ह से कमज़ोरी महसूस हो रही है, यह कोरोना की नही होटल के खाने से उपजी कमज़ोरी है।
भूले-भटके कभी कभी एक दो बार खांसी अब भी आ रही है और मैं पहले भी लिख चुका हूं कि यह समस्या मुझे बिन कोरोना के पिछले दो-तीन साल से लगातार है। अब समय-सारणी भी निरस्त हो चुकी है, मैं रात जल्दी सो गया।
होम आइसोलेशन का दूसरा दिन अच्छे नाश्ते के शुरू हुआ। अब मेरी पिछले कुछ बुरे दिनों की कमज़ोरी खुद जा रही है। समय-सारणी का पालन तो अब बन्द हो गया है, पर उसमें से योग अब भी जारी है और यह मेरी दिनचर्या में शायद लंबे दिनों तक रहेगा। आज कुछ लिखने के लिए क़लम भी उठाई है। मैं अब खाली समय का सदुपयोग करने की स्थिति में भी हूं।
होम आइसोलेशन का तीसरा दिन और आज महसूस होने लगा है कि मैं अब किसी खतरे में नहीं हूँ। शायद अपनी यह कहानी समाप्त करने का भी समय आ गया है।
अच्छे तरीके से मास्क पहन और सामाजिक दूरी की पालन कर आप खुद को कोरोना संक्रमित होने से बचा सकते हैं। अगर आपको कोरोना हो भी जाए तो घबराना बिल्कुल नही है, यह एक साधारण बुखार और खांसी की तरह ही है। घरेलू उपचार अपनाएं और कुछ दवा अपने पास पहले से ही संग्रहित कर अवश्य रखें। अपने विश्वासपात्रों से सम्पर्क में रहें वही इस मुसीबत की घड़ी में आपकी मदद कर सकते हैं।
भारत में मध्यमवर्गीय परिवार के पास हेल्थ इंश्योरेंस बहुत कम रहता है। यदि परिवार के किसी सदस्य को कभी कोई गम्भीर बीमारी हो जाए तो वह जमीन-जायजाद बिकवा कर ही दम लेती है। सम्भव हो तो हेल्थ इंश्योरेंस अवश्य लें।
कोरोना की दवा आने तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखिए। पड़ोस में कोई कोरोना संक्रमित हो जाए तो उसके साथ मंगल ग्रहवासी जैसा व्यवहार बिल्कुल न करें, उनका साथ दें।
अब अप्रैल 2021 और कोरोना
कोरोना की पहली लहर के बाद 2020 के अंतिम महीने और 2021 की शुरुआत में जनवरी, फरवरी माह में प्रतिदिन कोरोना मरीज़ों की संख्या कम रही तो इस बार कोरोना पिछली बार से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है और सीधे फेफड़ों पर वार कर रहा है। भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, अब आंकड़ा 4 लाख प्रतिदिन को छू रहा है और मौतों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है।
भारतीय जनता को भी कोरोना से डर मीडिया में कोरोना की खबरों के बाद लगता है। पुलिस की सख्ती के बाद ही मास्क निकलता है।
हरिद्वार में हुए कुंभ के दौरान सामाजिक दूरी का पालन करने के सभी नियमों की धज्जियां उड़ाई गई तो दर्शकों की मौजूदगी में हुए 'रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज़' और भारत और इंग्लैंड के बीच हुए शुरुआती क्रिकेट मैचों में दर्शक बिन मास्क के जिस तरह से बैठे थे, उससे लगता है कि कोरोना सिर्फ़ दिल्ली के मरकज़ में शामिल कुछ जमातियों के लिए ही था।
किसान आंदोलन और पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाड, पुडुचेरी विधान सभा के चुनाव प्रचारों में कोरोना को दरकिनार कर दिया गया। बच्चों के स्कूल खुलने पर चर्चा, युवाओं की नौकरियां तो अब दूर की बात लगने लगी हैं, अभी जान बचाना मुश्किल है। विनोद कापड़ी की डॉक्यूमेंट्री 1232 KMs की कहानी फिर दोहराई जा रही है।
देश के अस्पतालों में ऑक्सीजन और प्लाज़्मा की कमी होने की खबरें सामने आने लगी हैं। सोशल मीडिया में प्लाज़्मा डोनर ट्रेंड कर रहा है, कोरोना से ठीक हो चुके लोग प्लाज़्मा दान करने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं। मैंने पिछले साल दिसंबर फिर जनवरी और अब अप्रैल में तीन बार प्लाज़्मा दान किया है। देहरादून के मोहित शेट्टी और हल्द्वानी के अभिनव जैसे ऐसे बहुत से भारतीय हैं, जिन्होंने प्लाज़्मा दान कर इंसानियत को जिंदा रखा हुआ है।
देश के अस्पताल और श्मशान दोनों जगह भर गई हैं। देश की डगमगाती अर्थव्यवस्था को देख अभी पूर्ण लॉकडाउन न लगाना सरकार की मज़बूरी है। राज्यों ने संक्रमण को देखते हुए अपने स्तर से आंशिक लॉकडाउन लगाना शुरू किया है।
अब घर-घर के दरवाजे पर पहुंच गई इस बीमारी की गम्भीरता को समझ इससे बचने के सुरक्षा उपाए अपनाने जरूरी हैं, क्योंकि जिस तेज़ी से यह महामारी फैल रही है उससे बचाव ही आने वाले भारत का भविष्य निर्धारित करेगा।