बड़े भारी मन से कोर्ट को सूचित करना पड़ रहा है कि फादर 'स्टेन स्वामी' का निधन हो गया है
निधन के दिन 5 जुलाई को स्टेन स्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई होनी थी, हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान स्टेन स्वामी के वकील ने कहा कि बड़े भारी मन से कोर्ट को सूचित करना पड़ रहा है कि फादर स्टेन स्वामी का निधन हो गया है...
जनज्वार ब्यूरो। 84 साल के स्टेन स्वामी का जेल में देहांत हो गया। स्वामी की मौत दलितों के लिए कभी ना भर पाने वाली छति की तरह है। वह 2018 से निरपराध काल कोठरी की सजा भुगत रहे थे। स्वामी की मौत पर देश के तमाम दिग्गजों ने शोक प्रकट किया है।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश लिखते हैं 'स्टेन स्वामी नहीं रहे! लेकिन यह उनकी स्वाभाविक मौत नहीं, एक तरह की हत्या है, सिस्टम के हाथों हत्या । 84 साल के आदमी को महामारी के दौर में किसी सबूत के बगैर लगातार जेल में रखना कितना बड़ा गुनाह है! भारत अब ऐसे व्यवस्थागत-गुनाहो का ख़तरनाक द्वीप बनता जा रहा है।
अफसोस, स्वामी साहब, आपने गरीब लोगों को न्याय दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष किया पर लोकतांत्रिक कहे जाने वाले इस मुल्क के सिस्टम ने आपके साथ सरासर अन्याय किया! आपसे कभी मिलना नहीं हुआ लेकिन काफी सुन रखा था। सलाम और श्रद्धांजलि।'
पत्रकार व अनुवादक संजय कुमार सिंह लिखते हैं 'माफ कीजिएगा, हम स्ट्रॉ से डर रहे थे।सक्षम इतने भी नहीं हैं कि कोरोना को नहीं रोक पाते। ना देश में, ना जेल में ना अस्पताल में। बाकी ऑक्सीजन के बिना तो अच्छे, स्वस्थ, कम उम्र के लोग भी मरे हैं। सबको श्रद्धांजलि। मरी हुई व्यवस्था को भी जो जिन्दा होने का ढोंग कर रही है।'
पत्रकार और लेखक राकेश कायस्थ ने लिखा है कि 'यह हमारे समय की प्रतिनिधि तस्वीर है। हम इसे विस्मृत करने की चाहे लाख कोशिश करें दुनिया आसानी से भूलने नहीं देगी।यह तस्वीर सरकार की तरफ से विश्व समुदाय को दिया गया लिखित आश्वसान है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को `बनाना रिपब्लिक' में बदलने का प्रोजेक्ट जोर-शोर से जारी है।
आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले फादर स्टेन स्वामी इसी हालत में दुनिया छोड़ गये। ऐसी अमानवीयता आपको दुनिया के किस कोने में दिखाई देती है? सवाल सिस्टम को लेकर उठ रहे हैं। सिस्टम अभी उन हाथों में है, जिसे निहत्थे बुजुर्गों की हत्या में विशेषज्ञता हासिल है। गाँधी से लेकर नरेंद्र दोभाल, कलबुर्गी और पानसारे की हत्याओं को याद कर लीजिये।
हम जिस वृहत्तर समाज का हिस्सा हैं, उसके एक बड़े तबके को किस तरह की घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह या तो खुश है या फिर उदासीन, लेकिन जिनके मन के किसी कोने में थोड़ी सी भी करूणा और नैतिकता बची है, फादर स्टेन स्वामी की ये तस्वीर उन्हें सोने नहीं देगी। बार-बार सवाल पूछती रहेगी कि हम कहां से चलकर कहां आ गये।'
गिरीश मालवीय लिखते हैं 'एक 84 साल के बुजुर्ग शख्स जिन्हें सरकार UAPA कानून के तहत गिरफ्तार करती है आज उनकी जेल में मौत हो गयी। हम बात कर रहे हैं स्टेन स्वामी की जिन्हें एनआईए ने 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में शामिल होने और नक्सलियों के साथ संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
वह भारत के सबसे बुजुर्ग शख़्स है जिन पर आतंकवाद का आरोप लगाया गया है भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में शामिल होने के आरोप में 16 लोगों को जेल भेजा गया है। इनमें सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, शिक्षाविद, बुद्धिजीवी शामिल हैं स्टेन स्वामी भी इन 16 लोगो मे शामिल थे। फादर स्टेन स्वामी 1991 में तमिलनाडु से झारखंड आए ओर आने के बाद से ही वह आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करते रहे हैं।
बीबीसी लिखता है कि नक्सली होने के तमगे के साथ जेलों में सड़ रहे 3000 महिलाओं और पुरुषों की रिहाई के लिए वो हाई कोर्ट गए। वो आदिवासियों को उनके अधिकारों की जानकारी देने के लिए दूरदराज़ के इलाक़ों में गए। फ़ादर स्टेन स्वामी ने आदिवासियों को बताया कि कैसे खदानें, बांध और शहर उनकी सहमति के बिना बनाए जा रहे हैं और कैसे बिना मुआवज़े के उनसे ज़मीनें छीनी जा रही हैं।
उन्होंने साल 2018 में अपने संसाधनों और ज़मीन पर दावा करने वाले आदिवासियों के विद्रोह पर खुलकर सहानुभूति जताई थी। उन्होंने नियमित लेखों के ज़रिए बताया है कि कैसे बड़ी कंपनियाँ फ़ैक्टरियों और खदानों के लिए आदिवासियों की ज़मीनें हड़प रही हैं। साफ है कि यह सब सरकार को बहुत नागवार गुजरा ओर मौका मिलते हैं उन्हें लपेट लिया गया।
स्टेन स्वामी न कभी वह भीमा कोरेगांव गए न उनकी उस घटना में कोई सहभागिता थी, इसके बावजूद उन्हें 2018 से लगातार जेल में रखा गया। निधन के दिन 5 जुलाई को ही स्टेन स्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई होनी थी। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान स्टेन स्वामी के वकील ने कहा कि बड़े भारी मन से कोर्ट को सूचित करना पड़ रहा है कि फादर स्टेन स्वामी का निधन हो गया है।