Jhansi news : कैंसर से लड़ते-लड़ते बेटा हार गया जिंदगी की जंग, अब पिता ने दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए लाखों की दवाइयां कीं दान

Update: 2022-07-10 05:43 GMT

Jhansi news : कैंसर से लड़ते-लड़ते बेटा हार गया जिंदगी की जंग, अब पिता ने दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए लाखों की दवाइयां कीं दान

Jhansi news : यूपी की झांसी में रेलवे की नौकरी से रिटायर्ड हुए रामबाबू बरी ने तो सोचा था कि बेटों के साथ बुढ़ापा सुख-चैन से कटेगा, मगर वह जिस बेटे को अपने बुढ़ापे का सहारा समझ रहे था, उसे कैंसर जैसी भयावह बीमारी ने उनसे छीन लिया। जवान बेटे की अर्थी पिता के सामने निकली।

अमर उजाला में प्रकाशित खबर के मुताबिक, बेटे की मौत के बाद रिटायर्ड रामबाबू बरी की दुनिया ही बदल गई। वह जब भी किसी कैंसर पीड़ित को देखते हैं तो उनके सामने अपने बेटे का वो असहनीय दर्द भरा चेहरा आ जाता है। रामबाबू बरी कहते हैं, मैंने अपने बच्चे को तिल-तिल मरते देखा और मैं उसे बचाने में असहाय रहा।

झांसी के रामबाबू बरी को जवान बेटे की मौत कचोटती है, लेकिन उनकी हिम्मत चट्टान की तरह मजबूत है। इस पीड़ा में भी उन्होंने कैंसर पीड़ित लोगों के इलाज के लिए करीब पांच लाख रुपये की दवायें और इंजेक्शन दान किये हैं।

झांसी शहर के रानी लक्ष्मीबाई नगर मालगोदाम, सीपरी के पास रहने वाले रामबाबू बरी बताते हैं, वे 12 साल पहले रेलवे के सीनियर डीसीएम कॉमर्शियल विभाग से रिटायर हुए थे। परिवार में बड़ा बेटा दीपचंद बरी रेलवे में ही पार्सल विभाग में कार्यरत था। इसके अलावा 35 वर्षीय छोटा बेटा अनिल कुमार भी रेलवे में कार्यरत है। परिवार में पत्नी कमला देवी और एक शादीशुदा बेटी आशा देवी हैं।

71 साल के हो चुके रामबाबू बताते हैं कि जब वह रिटायर हुए थे तो बहुत खुश थे, लेकिन वर्ष 2020 में कोरोना के दौरान उनकी खुशियों को ग्रहण लग गया। एक दिन अचानक बड़े बेटे 45 वर्षीय दीपचंद की हालत बिगड़ गई। तमाम जांचों के बाद डॉक्टर ने बताया कि बेटे को गले में कैंसर हो गया है। बेटे के इलाज के लिए डॉक्टरों के पास दौड़े, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। टाटा कैंसर हॉस्पिटल मुंबई और दिल्ली भी ले गये। लाखों रुपये बीमारी में खर्च हुए।

रामबाबू बरी कहते हैं, मेरे बेटे का आखिरी दिनों में दिल्ली में इलाज चला। डॉक्टरों ने कई महंगे-महंगे इंजेक्शन और दवाइयां मंगवाईं, ताकि बेटे दीपचंद की जान बचाई जा सके, लेकिन नवंबर 2021 में आखिरकार बेटे ने दम तोड़ दिया। जिस बेटे के साथ बुढ़ापा खुशी-खुशी काटना चाहता था,पिता की आंखों के सामने उसकी अर्थी उठी।

बेटे दीपचंद की मौत के बाद रामबाबू बरी दूसरों के दुख सुख का सहारा बनने लगे। वह जब किसी कैंसर पीडित को देखते हैं तो उन्हें अपने बेटे की याद आ जाती है। रामबाबू कहते हैं मैंने जब देखा कि कई लोग पैसे के अभाव में कैंसर जैसे असाध्य रोग की मामूली दवायें भी नहीं खरीद पा रहे हैं, तो मेरे दिमाग में आया कि अपने बेटे के इलाज के लिए खरीदी हुई महंगी-महंगी दवाइयों को उन लोगों को दान कर दूं।

गौरतलब है कि रामबाबू एक अच्छे तैराक भी हैं, कुछ समय पहले वह झांसी स्टेडियम में बच्चों को तैराकी सीखाते थे।

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