Sexual Offences In India : 17 साल की लड़की ने दिया बच्चे को जन्म तो 12 साल के नाबालिग पर लगा रेप का आरोप, POCSO ACT में गिरफ्तार
Sexual Offences In India : तमिलनाडु के थंजावुर में महिला पुलिस ने एक 12 साल के बच्चे को पॉक्सो एक्ट में गिरफ्तार किया है। बच्चे पर एक 17 साल की लड़की के साथ रेप करने का आरोप है। पेट दर्द की शिकायत के बाद बच्ची ने अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया था, पर माता—पिता को उसके गर्भवती होने के बारे में पता ही नहीं चला...
Sexual Offences In India : तमिलनाडु (Tamil Nadu) के थंजावुर में महिला पुलिस (Women Police) ने एक 12 साल के बच्चे को पॉक्सो (POCSO) एक्ट में गिरफ्तार किया है। बच्चे पर एक 17 साल की लड़की के साथ रेप करने का आरोप है। आपको बता दें कि यहां 17 साल की एक बच्ची को जब पेट दर्द के बाद अस्पताल (Hospital) ले जाया गया तो पता चला कि वह नौ महीने की गर्भवती है। उसी दिन उसने एक बच्चे को भी जन्म दियाा।
चुंकि बच्ची माइनर थी इसलिए डॉक्टरों को तुरंत इसकी सूचना पुलिस को दे दी। उसके बाद महिला पुलिस को सामने लड़की ने एक 12 साल के बच्चे का नाम लिया। पुलिस ने 12 वर्षीय बच्चे को गिरफ्तार कर जुविनाइल होम (Juvenile Home) भेज दिया है।
पुलिस के अनुसार दोनों बच्चे स्कूल ड्रॉपआउट (Dropout) हैं और एक दूसरे के पड़ोस में ही रहते हैं। लड़की के माता पिता ने बताया है कि बीते 16 अप्रैल को पेट दर्द की शिकायत के बाद वे बच्ची को लेकर अस्पताल गए थे। जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि वह नौ महीने की गर्भवती हैं। यह जानकर उनके होश उड़ गए।
इस मामले में पुलिस अधिकारी रविमाथी ने बताया है कि लड़की और उनके माता पिता ने बच्ची के गर्भवती होने को नजरअंदाज किया है। उन्हें इस बात का तब तक पता ही नहीं चला जब तक लड़की ने बच्चे को जन्म नहीं दे दिया। पूछताछ में 12 साल के लड़के का नाम सामने आया है। हम लड़के की वैज्ञानिक तरीकों से उम्र वेरिफाई करने की की कार्रवाई कर रहे हैं। चूंकि लड़की ने आरोप लगाया है कि वही लड़का उसके गर्भ के लिए जिम्मेदार है ऐसे में हम इस बात की पड़ताल कर रहे हैं कि वह सच बोल रही है या इस सब के पीछे कोई और भी शामिल है।
आपको बता दें कि बीते दो से ढाई सालों में देश के कई हिस्सों में इस तरह की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पर दुर्भाग्य से इन मुद्दों पर अब तक एक सकारात्मक और सार्थक बहस शुरू नहीं हो सकी है। क्योंकि ऐसे मामले सामने आने पर हमारा फोकस समाज से इस तरह की समस्याओं को जड़ से खत्म करने की बजाय तथ्यों को छिपाने और दूसरी चीजों में अपना ध्यान लगाते हैं।
इससे समस्या बनी रहती है और महीने-छह महीने के बाद दूसरी घटना सामने आ जाती है। इसलिए इस बारे में हम ने कुछ विशेषज्ञों से बात कर इस तरह की घटनाओं की तह में जाकर यह समझने की कोशिश कि आखिर ऐसी घटनाओं को हमारे समाज में होने से कैसे रोका जाए।
माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कमी से बढ़ रहे हैं अपराध : अशोक अग्रवाल, अध्यक्ष, AIPA
समाज में इस तरह की घटनाओं के बढ़ने पर चिंता जताते हुए आल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन (AIPA) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल बताते हैं कि आज हमारे समाज में माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कमी हो गयी हैं। इसी का नतीजा है कि ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। उनका कहना है कि हमारे समाज में ऐसा कई सिस्टम या मैकेनिज्म नहीं है जिससे बच्चों के साथ संवेदनशील और प्रभावी संवाद स्थापित किया जा सके। जिससे बच्चों के अंदर क्या चल रहा है यह माता-पिता समझ ही नहीं पाते हैं।
वे मानते हैं कि आज हमारी शिक्षा प्रणाली भी ऐसी हो गयी है जिसमें शिक्षक भी मनोवैज्ञानिक तौर बच्चों से नहीं जुड़ पाते हैं। कक्षाओं में बच्चों की संख्या इतनी ज्यादा है कि शिक्षक के लिए भी यह संभव नहीं हो पाता है कि वह एक-एक बच्चे के मनोविज्ञान को समझने की कोशिश कर सकें। हमें एक ऐसा वातावरण बनाने की जरुरत है कि हम हर मिनट बच्चों के साथ क्या हो रहा है इस बात की जानकारी रख सकें।
बच्चों से संवेदनशील संवाद स्थापित करने का हमारे देश में कोई सिस्टम नहीं
हमारे यहां स्थिति बिल्कुल विपरीत है। माता-पिता अपने मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं, बच्चे मोबाइल पर अपनी दुनिया में व्यस्त रहते हैं यहां तक कि शिक्षक भी क्लास में मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। सब अपनी-अपनी दुनिया में खोए रहते हैं। ऐसे में उनके बीच जो कम्यूनिकेशन होनी चाहिए वह नहीं हो पाती है, नतीजा ऐसी घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं।
उनका मानना है कि इन घटनाओं को भले ही हम सौ फीसदी खत्म नहीं कर सकते हैं पर जागरूकता का माहौल बनाकर हम ऐसी घटनाओं को कम जरूर कर सकते हैं। उनका मानना है कि ऐसी घटनाएं बहुत ही दुखद हैं। बच्चों के साथ बढ़ रही ऐसी घटनाओं के लिए बड़े ही दोषी हैं। बच्चों की समस्याओं पर बड़ों की नजर रहनी चाहिए पर हमारे यहां इस तरह का कोई सिस्टम ही नहीं है। ऐसी कोई व्यवस्था दुर्भाग्य से अब तक हमारे देश में नहीं बन पायी है जिसमें मनोवैज्ञानिक स्थिति को संवेदनशीलता से समझा जा सके।
उनका मानना है कि ऐसे मामलों को डील करने में हम नार्वे का उदाहरण ले सकते हैं, जहां बच्चों को मॉनिटर करने के लिए एक सिस्टम बना हुआ जहां इस तरह का कोई मामला सामने आए तो तुरंत सरकार या स्टेट एजेंसीज को इसकी सूचना दी जाती है, और उनकी ओर से इस बात की त्वरित पहल की जाती है कि बच्चे की समस्या को कैसे दूर किया जाए। पर हमारे यहां ना ऐसी सोच है ना इन चीजों को लेकर जागरूकता है।
समाज के आधुनिकीकरण के कुछ अच्छे तो कुछ बुरे पहलु भी : अमिताभ दास, पूर्व आईपीएस
वहीं बिहार के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रहे पूर्व आईपीएस अमिताभ दास का मानना है कि अगर तमिलनाडु में हुई घटना को ही लें जहां लड़की की उम्र 17 वर्ष है, लड़के की उम्र 12 वर्ष, दोनों नाबालिग हैं ऐसे में यहां दुष्कर्म होने की तो संभावना न के बराबर ही है। उनका कहना है कि जब समाज आधुनिक होता है तो उसके कुछ अच्छे पहलू भी हैं तो कुछ बुरे पहलू भी हैं।
ऐसी घटनाएं उन्हीं बुराइयों का उदाहरण है। उनका मानना है कि ऐसी घटनाओं का बढ़ना चिंताजनक हैं। आप 17 साल की बच्ची को कैद करके रहीं रख सकते हैं। उसपर पहरा नहीं बिठा सकते हैं। नहीं तो चीजें और बिगड़ सकती है।
सामुदायिक पुलिसिंग का सहारा लेकर फैलायी जाए जागरुकता
ऐसे में हमें इस बात पर एक सोच विकसित कर जागरुकता का माहौल बानाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसी घटनाओं में एक साथ कई जिंदगियां प्रभावित होती है। इस तरह के मामलों में पुलिस की यह भूमिका है कि डंडा चलाने वाली इमेज से हटकर पुलिस की तरफ से सामुदायिक पुलिसिंग का सहारा लेकर जागरुकता का माहौल बनाया जाना चाहिए।
स्कूलों और कॉलेंजों में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। क्योंकि यह किसी एक जगह की समस्या नहीं हैं। आज समाज में हर जगह ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं देखने को मिल रही हैं। ऐसे में हम सिर्फ बच्चों और उनके माता-पिता को जागरूक कर ही ऐसी समस्याओं पर बहुत हद तक पाबंदी लगा सकते हैं।
माता-पिता की लापरवाही से बढ़ रहे यौन अपराध : डॉ. पंकज
बिहार के पटना में मेडिकल अफसर रहे डॉ. पंकज का कहना है कि ऐसे में मामलों में बच्चों को दोष देना बचकानी बात होगी। यह माता-पिता और परिजनों की जिम्मेदारी है कि वे इस बात का ध्यान रखें कि उनके बच्चों की जिंदगी में क्या चल रहा है? पर वर्तमान समय में हमारे समाज में बच्चों और उनके माता-पिता के बीच संवादहीनता की स्थिति बन गयी है।
बच्चे अपने माता-पिता से बात करने में हिचकते हैं और माता-पिता भी बच्चों पर संवेदनशीलता के साथ नजर नहीं रखते हैं। नजीजा ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। अगर एक 17 साल की लड़की नौ महीने की गर्भवती है और उनके पैरेंट्स को पता ही नहीं चल पाता है तो यह केवल संवेदनहीनता ही नहीं बल्कि माता-पिता की लापरवाही हैं।
इस केस में बच्ची अब तक स्वस्थ है इस बात का शुक्र है। अगर गर्भावस्था के दौरान कुछ परेशानी आती तो उसकी जान भी जा सकती थी। इसलिए जरूरी है कि इन सब बातों पर समाज में गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए औ बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता को भी सही पैरेंटिंग के प्रति और सेक्स एजुकेशन के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
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