अरावली की पहाड़ियों में मिला 25 लाख साल पहले का इतिहास का खजाना, खुलेंगे कई राज
Aravalli Hills : अरावली की पहाड़ी इलाके में पुरापाषाणकालीन चित्रों की खोज का दावा 2 साल पहले वर्ष 2021 में पुरातत्व विभाग ने फरीदाबाद के मांगर इलाके में 5,000 हेक्टेयर का एक ऐसे इलाके के खोज के बाद है, जहां शैलाश्रयों और उपकरणों के साथ गुफा चित्र बरामद किये गये थे..
Aravalli Hills : गुरुग्राम की अरावली की पहाड़ी समय बा समय चर्चा का केंद्रबिंदु रहती है। अब एक बार यह फिर चर्चा में है, कारण है यहां मिला इतिहास का खजाना। पुरातत्व विभाग के मुताबिक अरावली की पहाड़ियों में 25 लाख साल पहले पाषाण युग की नक्काशी मिली है।
गुरुग्राम के सोहना के बादशाहपुर तेथर गांव में हाल ही में खोजे गए नए भित्तिचित्र और क्वार्टजाइट चट्टानों पर उकेरे गए इंसानों और जानवरों के हाथ और पैरों के निशानों के बाद इतिहास का एक और दरवाजा खुला है। पुरातत्वविदों की मानें तो यह पुरापाषाण काल या पाषाण युग का है। ये स्टोन एज साइट एक पहाड़ी के ऊपर है और मांगर से केवल 6 किलोमीटर दूर है, जहां पाषाण काल के गुफा चित्रों (Stone Age carvings) को 2021 में खोजा गया था। पत्थरों की ये नक्काशियां पुरानी लगती हैं और पुरापाषाण युग (लगभग 25 लाख साल पहले) से लेकर 10,000 साल तक पुरानी हो सकती हैं।
पुरातत्व विभाग ने अरावली की पहाड़ी इलाके में पुरापाषाणकालीन चित्रों की खोज का दावा 2 साल पहले वर्ष 2021 में पुरातत्व विभाग ने फरीदाबाद के मांगर इलाके में 5,000 हेक्टेयर का एक ऐसे इलाके के खोज के बाद है, जहां शैलाश्रयों और उपकरणों के साथ गुफा चित्र बरामद किये गये थे।
पुरातत्वविदों का दावा है कि जो ऐतिहासिक वस्तुएं खोज के दौरान मिलीं, उनमें कंकड़ और शल्क-आधारित उपकरण थे। इसका मतलब यह इशारा था कि यहां पत्थर के औजार बनते थे। कुल मिलाकर यह 'एच्युलियन' उद्योग मानकीकृत उपकरण-निर्माण की पहली परंपरा कही जा सकती है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक 2 किलोमीटर के दायरे में फैली नवीनतम साइट की खोज हाल ही में एक इकोलॉजिस्ट और वन्यजीव शोधकर्ता सुनील हरसाना ने की है। हरसाना ने पुरातत्व विभाग (archaeological department) को पाषाण युग की नक्काशियों के बारे में बताते हुए इसकी गहन जांच किये जाने की सिफारिश की है। रविवार 5 फरवरी को पुरातत्वविदों की एक टीम ने पुष्टि कर दी है कि चट्टानें वास्तव में पुरापाषाण काल की हैं और पत्थरों पर चित्र बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कई उपकरण और औजार भी स्टोन एज साइट पर पाए गए। हरियाणा के पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय की उप निदेशक बनानी भट्टाचार्य ने कहा कि इससे हमें यह देखने का मौका मिलता है कि कैसे इंसानों ने शुरुआती औजार बनाए। अधिकांश नक्काशियां जानवरों के पंजे और इंसानों के पैरों के निशान की हैं।
पुरातत्वविदों का दावा है कि भारतीय उपमहाद्वीप में खोज के दौरान मिले पत्थर के चित्र सबसे बड़े हो सकते हैं। 2021 में फरीदाबाद के कोट गांव में खोजी गई नक्काशियों में पक्षियों, जानवरों और मानव पैरों के निशान के भित्तिचित्र भी बरामद हुए थे।
गौरतलब है कि अरावली क्षेत्र लंबे समय से ऐतिहासिक शोध का विषय रहा है। सबसे पहले 1986 में फरीदाबाद के अनंगपुर क्षेत्र से पत्थर के चित्रों की खोज की गयी थी। उस समय पुरातत्वविदों ने 43 साइटों का पता लगाया था, जिससे बाद शोधकर्ताओं ने यहां गहन शोध शुरू कर दिया था। दावा किया जा रहा है कि यहां से इतिहास के कई और राज खुल सकते हैं।
पुरातत्व और संग्रहालय के प्रमुख सचिव एमडी सिन्हा के मुताबिक अरावली की पहाड़ियां मानव सभ्यता का उद्गम स्थल रही हैं। सरस्वती-सिंधु सभ्यता का अध्ययन करें तो पायेंगे कि इसका पूरा चक्र इसी पेटी में शुरू हुआ। पूर्व-वैदिक और वैदिक अस्तित्व के भी प्रमाण हैं। हम आगे के शोध के लिए सर्वेक्षण करेंगे।
वहीं इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) के सलाहकार दिव्य गुप्ता मीडिया से हुई बातचीत में कहते हैं, पेट्रोग्लिफ अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, उनकी प्राचीनता को देखते हुए प्रीहिस्ट्री तक जा सकते हैं। ये टेरिटोरियल हो सकते हैं, प्राचीन खेलों या रिकॉर्ड-कीपिंग के लिए उपयोग किए जा सकते हैं। हालांकि उनकी सटीक तारीख का पता लगाना या उन्हें किस उद्देश्य से बनाया गया, यह पता लगाना मुश्किल है। लेकिन उन पर और अध्ययन किया जाना चाहिए।
वहीं हरियाणा के पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय के उप निदेशक बनानी भट्टाचार्य की मानें तो, पुरातत्वविदों की हालिया खोज मानव सभ्यता की प्रगति को चिह्नित करते हैं। बनानी भट्टाचार्य का दावा है कि नक्काशियां 10,000 बीपी से अधिक पुरानी हैं, लेकिन एक सर्वेक्षण के बाद ही सही तारीख का पता लगाया जा सकता है।
इस बड़ी खोज के बाद पुरातत्व विभाग का दावा है कि इस खजाने से इतिहास के बारे में हम और भी काफी कुछ जान सकते हैं। यहां से कई और चीजें भी बरामद हो सकती हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि पहाड़ियों में खोदी गयी गुफाओं के गड्ढों में खनन, जमीन से धूल में बहुत कुछ खो गया होगा, लेकिन कुछ प्राचीन हिस्सों पर विशेषज्ञ इस तरह की और खोजों से इनकार नहीं करते हैं।