हॉकी के स्टार खिलाड़ी रहे टेकचंद यादव को पड़े 2 वक्त की रोटी के लाले, गरीबी ने छीन लिया परिवार

Sagar news : इतिहास रचने वाले हॉकी टीम इंडिया के स्टार खिलाड़ी रहे 82 वर्षीय टेकचंद यादव को सरकार की तरफ से मात्र 600 रुपए महीने मिलते हैं, और इतने कम पैसे में 2 वक्त का राशन भी नहीं आ पाता...

Update: 2023-02-09 08:24 GMT

Sagar news : हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद के शिष्य रहे हॉकी खिलाड़ी टेकचंद यादव आज दो वक्त की रोटी को मोहताज हैं। गरीबी ने न केवल उन्हें सड़क पर ला दिया है, बल्कि इलाज के अभाव में परिजनों की भी मौत हो चुकी है, मगर सरकार को ऐसे खिलाड़ियों से कोई वास्ता नहीं है। हालांकि हमारा राष्ट्रीय खेल रहा हॉकी हमेशा से उपेक्षित ही रहा है, और इसके खिलाड़ी भी। दूसरी तरफ क्रिकेटरों को न सिर्फ सरकार बल्कि जनता भी सर आंखों पर बिठाती है।

बदहाली में गुजर कर रहे टेकचंद हॉकी के जादूकर ध्यानचंद के शिष्य रहे थे और कभी फॉरवर्ड खेलने में उनका जलवा था, मगर अब यह बुजुर्ग झोपड़ी में जिंदगी बिताने को मजबूर है।

टेकचंद गरीबी के कारण 8 महीने बेटी को खो चुके हैं, क्योंकि उसका इलाज नहीं हो पाया था। बेटी के बाद उनकी पत्नी टीबी का इलाज नहीं मिलने के कारण मर गयीं। कभी हॉकी के स्टार खिलाड़ी रहे टेकचंद आज इतनी बदहाली में जी रहे हैं कि उनके पास दो वक्त की रोटी और सर पर छत भी मयस्सर नहीं है, वो एक झोपड़पट्टी में रह रहे हैं।

मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक, टेकचंद के पास सोने के लिए बिस्तर तक उपलब्ध नहीं है। झोपड़ी की टपकती छत से आते पानी ने उनके सारे सर्टिफिकेट और मेडल खराब कर दिये हैं। हालांकि इस ​बीच उनके आसपास का समाज उनका सहारा जरूर बना है। मध्य प्रदेश स्थित सागर के ही एक रेस्त्रां ने उनके खाने का खर्च उठाया हुआ है, जो उन्हें दो समय का खाना देता है।

गौर करने वाली बात यह है कि इतिहास रचने वाले इस खिलाड़ी को सरकार की तरफ से मात्र 600 रुपए महीने मिलते हैं, और इतने कम पैसे में 2 वक्त का राशन भी नहीं आ पाता।

मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक 82 साल की उम्र में अब तो मजदूरी करने की भी शक्ति नहीं बची है। गौरतलब है कि 1961 में जिस भारतीय टीम ने हालैंड को हराकर हॉकी मैच में इतिहास रचा था, टेकचंद उस टीम के अहम खिलाड़ी थे। हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के शिष्य और मोहरसिंह जैसे स्टार खिलाडियों के गुरु की बदहाली देखकर लगता है कि सरकार को इनकी कोई कद्र नहीं है।

मध्यप्रदेश के सागर के रहने टेकचंद हॉकी टीम में सेलेक्शन पर कहते हैं, जब सागर में मेजर ध्यानचंद ट्रेनिंग देने आए थे, तो आसपास के खिलाड़ियों को टेस्ट देने के लिए बुलाया था। टेकचंद ने भी टेस्ट दिया तो ध्यानचंद उनसे काफी प्रभावित हुए। ध्यानचंद से मिले मंत्र और मेहनत ने उन्हें टीम इंडिया में जगह दिला दी।

सोशल मीडिया पर टेकचंद की बदहाली पर एक पोस्ट वायरल हो रही है, जिसमें लिखा है, 'ये प्रसिद्ध हॉकी खिलाडी टेकचंद जी भी कहीं रद्दी पन्ना ही बनके न रह जायें इस देश के इतिहास में। कभी देश के स्टार्स में शुमार थे, आज दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है। 82 साल की उम्र में अब तो मजदूरी करने की भी शक्ति नहीं बची है। ये भारतीय हॉकी के खिलाड़ी रहे टेकचंद हैं। साल 1961 में जिस भारतीय टीम ने हालैंड को हराकर हॉकी मैच में इतिहास रचा था, टेकचंद उस टीम के अहम खिलाड़ी थे। आज इनकी स्थिति बेहद दयनीय है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के शिष्य और मोहरसिंह जैसे खिलाडियों के गुरू आज एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने को अभिशप्त हैं। जनप्रतिनिधि से लेकर सरकार तक जिन्हें इनकी कद्र करनी चाहिए, कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल भी है। शायद इसीलिए सरकार 600 रूपये प्रतिमाह पेंशन देकर इनके ऊपर अहसान कर रही है। मध्य प्रदेश के सागर में रहने वाले टेकचंद के पत्नी व बच्चे नहीं हैं। भोजन के लिए अपने भाइयों के परिवार पर आश्रित इस अभागे को कभी-कभी भूखे भी सोना पड़ जाता है। ये उसी देश में रहते हैं, जहां एक बार विधायक- सांसद बन जाने के बाद कई पुश्तों के लिए खजाना और जीवनभर के लिए पेंशन-भत्ता खैरात में मिलता है।'

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