अरुणाचल प्रदेश में चीन की विस्तारवादी हरकतें और भारत का 'छुपमछुपाई' अंदाज
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस तरह की घुसपैठ को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं और उनकी जुबान से एक बार भी चीन का नाम नहीं निकलता, हाल की घटनाओं को लेकर भारत सरकार ने कोई प्रेस कान्फ्रेंस तक आयोजित करना जरूरी नहीं समझा है....
गोहाटी से दिनकर कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। अंतत: चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने स्वीकार किया है कि अरुणाचल प्रदेश से लापता हुए पांचों युवक चीन में हैं। ट्वीटर पर केंद्रीय क्रीडा मंत्री किरण रिजिजू ने लिखा है, "चीन के पीएलए ने भारतीय सेना द्वारा भेजे गए हॉटलाइन संदेश का जवाब दिया है। उन्होंने पुष्टि की है कि अरुणाचल प्रदेश से लापता युवकों को उनके भूखंड में पाया गया है। युवकों की वापसी के लिए प्रयास किया जा रहा है।"
इससे पहले जब पीएलए पर इन युवकों को अगवा करने का आरोप लगा तो चीन ने कहा कि वह अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत का अंग मानता है। अरुणाचल प्रदेश पर अपनी दावेदारी के लिए दशकों से चीन विस्तारवादी हरकतें करता रहा है।
भारत और चीन के बीच लद्दाख में स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास तनाव चरम सीमा पर पहुंच चुका है। सोमवार 7 सितंबर की रात शून्य में गोलीबारी की घटना हो चुकी है। दोनों देशों के बीच 3500 किलोमीटर सीमा क्षेत्र में चीन उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की कोशिश करता रहा है।
सबसे अधिक चिंता की बात है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस तरह की घुसपैठ को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं और उनकी जुबान से एक बार भी चीन का नाम नहीं निकलता। हाल की घटनाओं को लेकर भारत सरकार ने कोई प्रेस कान्फ्रेंस तक आयोजित करना जरूरी नहीं समझा है।
चीन एक तरफ गालवान घाटी पर कब्जा करने के लिए आक्रामक गतिविधियों का सहारा लेता रहा है तो दूसरी तरफ अरुणाचल प्रदेश को हड़पने के लिए एक गुप्त परियोजना पर अमल करता रहा है।
1962 के युद्ध के बाद अरुणाचल प्रदेश में नियंत्रण रेखा के पास केवल दो ऐसे मौके आए जब भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच झड़प और गतिरोध हुआ। 1975 में असम राइफल्स के चार सैनिकों की हत्या कर दी गई जब पीएलए के एक गश्ती दल द्वारा अरुणाचल के पश्चिमी सीमा पर तवांग के तुलुंग ला में भारतीय क्षेत्र में गहरी घुसपैठ की गई।
1986-87 में एक और गंभीर घटनाक्रम सामने आया, जब दोनों पड़ोसी देश युद्ध के कगार पर पहुंचा गए थे। 1986 में एक भारतीय गश्ती दल ने तवांग में सुमदोरोंग चू के तट पर स्थायी चीनी ढांचे को देखा, जहां कुछ हफ्ते बाद ही हेलीपैड का निर्माण किया गया। भारतीय सेना ने हाथुंग ला पर कब्जा करने के लिए सैनिकों को भेजा। उसके तुरंत बाद चीन के सैनिक भी भारी संख्या में सीमा पर एकत्रित हो गए।
तनाव तब कम हुआ जब तत्कालीन विदेश मंत्री एनडी तिवारी ने बीजिंग में पहुंचने के बाद ही स्पष्ट शब्दों में कहा था कि भारत का उद्देश्य स्थिति को जटिल बनाना नहीं था। जिसके बाद दोनों सेनाओं के बीच पहली औपचारिक फ्लैग मीटिंग 5 अगस्त 1987 को बुलाई गई थी।
इन प्रकरणों के अलावा पिछले कुछ वर्षों में कई घटनाएं हुईं जब दोनों सेनाएं गश्त के दौरान आमने-सामने आ गईं और दोनों ने अपने स्थान से हटने से इनकार कर दिया। दिबांग घाटी में नियंत्रण रेखा के पास पीएलए ने एक बार प्लेकार्ड भी लटकाए थे जिसमें कहा गया था कि "यह चीनी क्षेत्र है। कृपया वापस जाएं।"
सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में 1126 किलोमीटर लंबी एलएसी के पूरे खंड के साथ-साथ पूर्व में अंजाव जिले से लेकर पश्चिम में तवांग तक बुनियादी ढांचे का तेजी से निर्माण किया जा रहा है। पिछले कुछ दशकों से अरुणाचल प्रदेश में पीएलए की घुसपैठ बढ़ती गई है, जिसमें सड़क और पुल का निर्माण शामिल है।
राजनेता और खुफिया अधिकारी अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के तीन 'डेंजर जोन' की बात करते हैं, जहां चीनी पिछले दो दशकों से आगे बढ़ते रहे हैं।
अरुणाचल प्रदेश (पूर्व) का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा सदस्य तपीर गाओ ने कहा, "यह प्रक्रिया लंबे समय से जारी है। मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा था और उनका ध्यान आकर्षित करते हुए चीनी कब्जे के तहत इलाकों के सभी विवरणों के साथ जल्द से जल्द इस मुद्दे को हल करने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया था।"
अंजाव, जो म्यांमार की सीमा भी है, उन जिलों में से एक है, जिसने नई सड़कों और सैनिकों की तैनाती के मामले में चीनी गतिविधियों में भारी वृद्धि देखी है। इलायची की खेती के के लिए जाने जाने वाले चल्लगाम सर्कल में चीनियों ने एक नाले पर एक पुल का निर्माण किया है।
2009 में द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि काहो के पास हंड्रेड हिल पर चीनी कब्जे की पुष्टि स्थानीय लोगों ने उसके संवाददाता से की थी और सीमा पार एक नए राजमार्ग के निर्माण के बारे में भी बताया था।
अंजाव के समीप स्थित सुरम्य दिबांग घाटी है जहाँ सीमा के साथ एक भूखंड जिसे आंद्रेला वैली कहा जाता है और जिसे भारत का हिस्सा माना जाता था, चीनी कब्जे में आ गया है। स्थायी आजीविका विकल्पों की तलाश में कस्बों और शहरों में सीमावर्ती आबादी के बढ़ते पलायन से स्थिति खतरनाक बन गई है। राज्य सरकार पहले ही सीमावर्ती क्षेत्रों में लोगों को उनके आवास छोड़ने से रोकने के लिए पायलट परियोजनाओं के लिए केंद्र से संपर्क कर चुकी है।
सबसे खतरनाक स्थिति एलएसी के आसपास है। ऊपरी सुबनसिरी जिले में दिबांग घाटी के 100 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र तक फैले आसफिला, लोंग्जू, दिसा और माजा में चीनियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की है।
एक अधिकारी ने कहा कि ऊपरी सुबनसिरी में अतिक्रमण 1980 के बाद से मंथर गति से जारी है। उन्होंने दावा किया कि पीएलए ने जिले में भारतीय क्षेत्र के अंदर लगभग 50-60 किलोमीटर की दूरी तक घुसपैठ की है।
अरुणाचल प्रदेश में पीएलए द्वारा गुप्त परियोजना के तहत घुसपैठ की बात को राजनेता और खुफिया अधिकारी स्वीकार करते हैं। उनमें एक आम सहमति है कि ऊपरी सुबानसिरी में सबसे अधिक भूमि को चीन ने हड़पा है। और दूसरी बात पीएलए द्वारा घुसपैठ ज्यादातर उन इलाकों में हुई है जहां गांवों नहीं हैं या सेना की उपस्थिति नहीं है।
"उदाहरण के लिए ऊपरी सुबनसिरी में नई माजा में सेना द्वारा एक चौकी बनाई गई है, लेकिन माजा पर पहले ही चीन कब्जा कर चुका है। हमारे राज्य में उनके (चीनी) कब्जे का क्षेत्र बहुत बड़ा हो सकता है।"तपीर गाओ ने कहा।
अरुणाचल प्रदेश में चीनी घुसपैठ को लेकर समय-समय पर केंद्र का ध्यान आकर्षित किया जाता रहा है। 2003 में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री गेगॉन्ग अपांग ने विवाद के जल्द समाधान का अनुरोध करते हुए माजा और आसपास के क्षेत्र में घुसपैठ के बारे में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से संपर्क किया था।