सेना के आधे से ज्यादा जवानों की मानसिक हालत ठीक नहीं, सीमा पर युद्ध जैसी स्थितियां जिम्मेदार

घरों में टीवी चैनलों पर पड़ोसी देशों से युद्ध जैसी स्थितियां देखकर ताल ठोकने वाले मध्यवर्गीय लोगों इस खबर को जरूर पढ़ना चाहिए क्योंकि सत्ता उन्हीं की अतिउत्साही भावनाओं को भुनाने के लिए जवानों को इस हालत में डालती है...

Update: 2021-01-09 07:53 GMT

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

जनज्वार। हर साल भारतीय सैनिकों की शहादत आतंकियों से मुकाबला करने और सीमा पर सीजफायर उल्लंघन के कारण होती हैं, लेकिन बढ़ते तनाव के कारण भी हर साल कई सैनिकों की जान जा रही है। मौजूदा समय में बड़ी संख्या में सेना के जवान गंभीर तनाव के शिकार हैं। यह बात सेना के थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट में सामने आयी है।

देश के 13 लाख सैन्यकर्मियों में से आधे से ज्यादा जवान गंभीर तनाव के शिकार हैं। सेना, सीमाओं पर सैन्य कार्रवाई या आतंकियों से मुठभेड़ की बनिस्पत आत्महत्याओं, सहकर्मी की हत्या और अन्य अप्रिय घटनाओं में हर साल अधिक सैनिकों को खो रही है।

डिफेंस थिंक-टैंक यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के लिए एक सेवारत कर्नल द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन के आधार पर अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट प्रकाशित की है।

हालांकि सेना ने इस स्टडी रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। सेना के एक उच्च अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा है कि इतने बड़े निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इस स्टडी का सैंपल साइज बहुत ही छोटा है।

'एक अकेले व्यक्ति द्वारा यह स्टडी की गई है, वह भी मात्र 400 सैनिकों पर। इसके पीछे क्या क्रियाविधि अपनाई गई है, यह मुझे पता नहीं, पर यह तर्कपूर्ण नहीं है।' उन्होंने कहा।

हालांकि यह तथ्य भी अपनी जगह कायम है कि लगभग 100 जवान हर वर्ष आत्महत्या जैसे चरम कदम उठा लेते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार साल 2010 के बाद सेना 950 से ज्यादा जवानों को आत्महत्या जैसे कारणों से खो चुकी है।

स्टडी में सामने आया है कि सीमाओं पर लंबे समय तक तैनाती और जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के इलाकों में आतंकियों के विरुद्ध ऑपरेशनों में लगाए रहने का सेना के जवानों की शारिरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है।

जो जवान फारवर्ड पोस्टों और फील्ड में तैनात रहते हैं, वे भी सुदूर रह रहे अपने परिवारों की पारिवारिक समस्याओं की देखभाल नहीं कर पाते, जिस कारण भारी तनाव में रहते हैं। पारिवारिक समस्याओं में भूमि विवाद से लेकर असामाजिक तत्वों द्वारा खड़ी की गई परेशानियां शामिल हैं।

यह स्टडी कर्नल ए.के.मोर द्वारा की गई है। उन्होंने कहा है कि पिछले दो दशक के दौरान सैन्यकर्मियों में तनाव के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह कार्य और गैर कार्य संबन्धी दोनों स्तरों पर है।

स्टडी कहता है कि लंबे समय तक सीआई/सीटी जैसे माहौल में रहना तनाव में वृद्धि का एक मुख्य कारक है। हालांकि कार्य संबन्धी तनाव को समझा जा सकता है और इसे पेशा से जुड़े अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार किया गया है। स्टडी कहता है कि गैर कार्यगत तनाव सैन्यकर्मियों के स्वास्थ्य और उनकी कार्य गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डाल रहा है, जिससे उनकी यूनिट भी प्रभावित हो रही है।

स्टडी यह भी कहता है कि अधिकारी जूनियर कमीशन आफ़िशर्स एवं जवानों की अपेक्षा और ज्यादा तनाव के शिकार हैं तथा इसमें सरकार के उच्चाधिकारियों का त्वरित हस्तक्षेप नितांत आवश्यक है।

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