यूपी की जेल, पैसा कमाने की बेल, खूंखार अपराधियों को सुविधाओं के बदले मोटी रकम मिलने के आरोप
जेल अधीक्षक और जेलर पर 20 से 25000 रुपए महीना लेकर कुख्यात अपराधियों को बैरक की जगह अस्पतालों में भर्ती कराने के आरोप शामिल हैं....
वीरेंद्र पाल की टिप्पणी
जनज्वार। हाल ही में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में जेल के अंदर अपराधियों के बीच रक्तपात के बाद लखनऊ की कई जांच एजेंसियां जांच कार्य में जुट गई हैं। इन जांच एजेंसियों को जांच के दौरान यह पता चला है कि खूनी गैंगवार में मुख्य आरोपी को जिला जेल के अंदर कैदियों से मुलाकात कराने वाले किसी सुरक्षाकर्मी ने ही जेल में पिस्टल पहुंचाई थी। अब जाहिर सी बात है कि सुरक्षाकर्मी ने पिस्टल पहुंचाने के एवज में जरूर मोटी रकम ली होगी और उस रकम को उक्त सुरक्षाकर्मी द्वारा अकेले ही नहीं, बल्कि जेल के कुछ उच्चाधिकारियों तक भी हिस्सा पहुंचाना पड़ा होगा।
इधर जेल के अंदर अपराधियों के बीच मुठभेड़ की जांच के 6 दिन बाद भी जांच से जुड़ा कोई भी अधिकारी कुछ भी नहीं बोल रहा है, जांच टीम को शुरुआत में ही पता चल गया कि जेल तो है हाई सिक्योरिटी, परंतु सिस्टम का तंत्र पूरी तरह से फेल है। क्योंकि हाई सिक्योरिटी जेल के अंदर गैंगवार की चल रही साजिश की थाह मापने में शासन स्थानीय प्रशासन खुफिया तंत्र के अलावा जेल परिसर का पूरा तंत्र फेल साबित हुआ।
प्रदेश में अभी तक बुंदेलखंड की जेलों को सबसे अधिक सुरक्षित माना जाता था। चित्रकूट जेल 2017 में खास सुरक्षा के नजरिए से बनाई गई। यहां की बैरके हाई सिक्योरिटी से लैस है। बाहरी जिलों के दर्जनों बड़े डकैत और खूंखार अपराधी माफिया इसी जेल में बंद है। अब इसी जेल में गैंगवार की घटना को अंजाम देने वाले को आसानी से असलहा उपलब्ध हो जाना, सुरक्षा व्यवस्था की बड़ी खामी को उजागर करता है। अब इसी जेल में अपराधियों के बीच हुए खूनी मुठभेड़ से स्थानीय स्तर से लेकर शासन तक बैठे हुक्मरानों की जेल सुरक्षा रणनीति फेल होने से सरकार के मंसूबों पर पानी फिर गया।
निश्चित तौर पर यहां सुरक्षा तंत्र को ताक पर रखकर मोटी रकम कमाने का तंत्र काम करता नजर आया। सुरक्षा तंत्र की कमजोर कड़ी में यह भी देखने को मिला कि चित्रकूट जिला जेल में 37 सीसीटीवी कैमरे मे से 7 को छोड़कर सभी खराब मिले। जेल अधिकारियों ने इन अपराधियों से अपने दोस्ताना मुलाकातों, धन उगाही के काले कारनामों को छिपाने के लिए इन बंद कैमरों को चालू कराना भी जरूरी न समझा।
इस बीच जेल के अंदर दवाइयां, किराने का सामान, कैंटीन संचालन के लिए जेल प्रशासन और बंदी रक्षकों पर मोटी रकम कमीशन के रूप में लेने के भी आरोप लगे हैं, जिसकी शिकायत सीएम से लेकर एडीजीजेएल तक की जा चुकी है। चित्रकूट जिला जेल 2018 से संचालित होने के 1 साल बाद 2019 से ही जेल परिसर में सिस्टम को लेकर अधिकारियों और बंदी रक्षकों पर गंभीर आरोप लगने शुरू हो गए। जांच अधिकारियों को यह भी जानकारी हुई है कि स्थानीय लोगों ने मुख्यमंत्री, कारागार मंत्री, एडीजी जेल और मानव अधिकार आयोग को पत्र लिखकर जेल के अंदर अनियमितताओं की शिकायत कई बार की।
इन शिकायतों में जेल अधीक्षक और जेलर पर 20 से 25000 रुपए महीना लेकर कुख्यात अपराधियों को बैरक की जगह अस्पतालों में भर्ती कराने के आरोप शामिल हैं। आरोप यह भी लग रहे हैं कि हाल ही में मारे गए हैं खूंखार अपराधियों अंशुल दीक्षित और मेराज अली से हर माह मोटी रकम लेकर उन्हें बैरक की जगह अस्पताल में रखा गया। जांच टीम को शिकायती पत्र से यह भी जानकारी मिली है कि बाहर से आने वाले नए बंदियों की कमान काटने के लिए ₹5000 तक वसूले जाते हैं।
बड़ी जानकारी यह भी सामने आयी है कि जेलों में पैसा कमाने के लिए मात्र कैदियों का इस्तेमाल ही नहीं जेल के अंदर कैंटीन संचालन के लिए मोटा चढ़ावा वस्तुओं को मनमाने रेट पर बिक्री से प्राप्त हिस्सा, दवा और भोजन संबंधी खरीद में मोटी रकम कमीशन अधिकारियों की होती है, लगातार शिकायतों के बाद भी किसी स्तर पर स्थलीय जांच नहीं कराई जाती है। जब तक कि कोई बड़ी वारदात जिसमें बंदी रक्षकों की जान पर बन आना अथवा अदालत जाने के दौरान कैदियों की फरारी जैसी घटना के बाद सुरक्षा तंत्र की नाकामियों पर जांच बैठा दी जाती है। सुरक्षा तंत्र की कमियों को चिन्हित करते हुए सुरक्षा उपायों को फाइलों में नोट का अधिकारी इतिश्री कर लेते हैं, इन फाइलों के आधार पर आगे न कोई कार्रवाई की जाती है न निगरानी।
सूत्रों से अहम जानकारी यह भी सामने आ रही है कि जेलों के अंदर पैसा कमाने की यह बेल (कैदियों और जेल अधिकारी गठजोड़) केवल इनके लिए ही नहीं लगाई जाती है, बल्कि बाहर के उच्चाधिकारी, जेल विजिटर्स और कारागार मंत्री तक की सुख सुविधाओं में कल्प वृक्ष के समान सहायक बन जाती है।