दो साल बाद हुई भाजपा कार्यकारिणी बैठक 'तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पे खतम'
खुद को ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली भाजपा मोदी के "अहम ब्रह्मास्मि" राग को सप्तम सुर के साथ आलाप देने में लगी है। असली मुद्दों को छूने तक की कोशिश करने की बजाय मोदी जी की आरती उतारी जा रही थी...
बादल सरोज की टिप्पणी
हर तीन महीने में होने वाली भाजपा कार्यकारिणी की बैठक दो वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद मात्र एक दिन के लिए हुयी और "तेरे नाम पै शुरू तेरे नाम पै ख़तम" भी हो गयी। बिना किसी व्यवधान के पृथ्वी के सूरज के चारों तरफ घूमते रहने की "उपलब्धि" के सिवा ब्रह्माण्ड में घटी सारी घटनाओं का श्रेय मोदी जी को देने के साथ शुरू और पूरी हो जाने वाली यह बैठक सचमुच में हाल के दौर में दुनिया भर में हुयी राजनीतिक दलों की बैठकों के मुकाबले में अपनी मिसाल आप थी।
संयुक्त राज्य अमरीका से ब्रिटैन, फ्रांस, जर्मनी, चीन होते हुए ब्राजील से लेकर दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया तक सारी सरकारें और समस्त राजनीतिक पार्टियां, यहां तक कि संयुक्त राष्ट्रसंघ भी कोविड-19 की महाआपदा से विश्व मानवता के लिए उपजी मुश्किलों और बदहालियों से चिंतित और परेशान हैं। सब उनसे बाहर निकलने के रास्तो की तलाश में जुटे हैं। इधर खुद को ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली भाजपा मोदी के "अहम ब्रह्मास्मि" राग को सप्तम सुर के साथ आलाप देने में लगी है।
इस बैठक से लगा ही नहीं कि यह उस देश की सत्ता पार्टी की बैठक है, जिसके राज में महँगाई, बेरोजगारी और भूख का अब तक का सबसे भयानक तांडव जारी है। जहां मानव विकास के सूचकांक तो भाड़ में जाने दीजिये, आर्थिक सूचकांक भी पातालोन्मुखी हुए पड़े हैं। जहां की जनता और उद्योग-धंधों के लिए यह दौर आजादी के बाद का सबसे कठिन और भारी है। जिसके वर्तमान और भविष्य दोनों पर अन्धेरा तारी है। वहां इन असली मुद्दों को छूने तक की कोशिश करने की बजाय मोदी जी की आरती उतारी जा रही थी।
बैठक में रखे और पारित बताये गए प्रस्तावों में सब कुछ था। झूठ था, लबाड़ था, तोहमतों का प्रलाप था - मगर नहीं था तो वह सब, जिससे 90 फीसद जनता जूझ रही है। हास्यास्पदता की हद यह थी कि पेट्रोल-डीजल की आकाश छूती कीमतों पर मुसक्का मारे बैठी भाजपा, उपचुनावों में हुयी धुलाई के बाद उस पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी में मामूली-सी कमी करने के लिए मोदी प्रशंसा में आकाश फाड़े दे रही थी।
इस बात के पूरे इंतजाम थे कि आत्मालाप के गरल-प्रवाह के राष्ट्र के कोने-कोने तक पहुँचने में कहीं कोई कसर बाकी न रह जाए। इसीलिये इस कुछ घंटों चली मीटिंग की प्रेस के लिए ब्रीफिंग करने के लिए भी दो-दो लोग उतारे गए। राजनीतिक प्रस्ताव, जिसमे मोदी स्तुति के सिवा सिर्फ अशुद्धियाँ और कोमा और फुलस्टॉप थे, की ब्रीफिंग निर्मला सीतारमण ने की; तो किन-किन "उपलब्धियों" के लिए मोदी की सराहना हुयी है, उसका विस्तृत ब्यौरा भूपेंद्र यादव से रखवाया गया, जिन्हे सिर्फ इसी चारण-गान के लिए ठेठ ग्लास्गो से वापस बुलवाया गया था।
हालांकि, दोनों ही महारथी यह नहीं बता पाए कि बाकी मसले तो छोड़िये, कार्यकारिणी इस समय के सबसे ज्वलंत सवाल तीन कृषि कानूनों और अपने उन्मादी महाब्रह्मास्त्र नागरिकता क़ानून पर चुप्प काहे रही। बोलने को तो मजदूरों के चार लेबर कोड पर भी नहीं बोली।
नेता की नारद स्तुति के इस विद्रूप प्रदर्शन के अलावा भाजपा की यह बैठक जहां एक मिथ्या धारणा सुधार गयी है, वहीँ एक नयी पहेली छोड़ भी गयी है। पहेली है कि अब भाजपा में दो नम्बरी कौन? अब तक, जहां भाजपाई नेतृत्व के श्रेणीक्रम की गिनती पूरी हो जाती है उस, दो नम्बर पर अमित शाह की उपस्थिति निर्द्वन्द्व और निर्विवाद थी। वे ही आँख और कान थे, वे ही हाथ और पाँव थे। मगर इस कार्यकारिणी बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव योगी आदित्यनाथ से रखवाया जाना एक नया कारनामा था। यह सिर्फ उतना भर नहीं है, जितना निर्मला सीतारमण ने बताया कि "सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री के नाते" योगी से प्रस्ताव रखवाया गया है। यह इससे आगे की बात है।
यह, जैसा कि कईयों का मानना है, भारतीय जनता पार्टी के उलट क्रमिक विकास सिद्धांत का उदाहरण है। अटल बिहारी वाजपेई के बाद आडवाणी। आडवाणी के बाद नरेंद्र मोदी और अब मोदी के बाद कौन? जाहिर है और भी ज्यादा लुहांगा चेहरा चाहिए, और वह योगी के सिवा और कौन हो सकता है!! खैर, यह ऐसी ख़ास बड़ी समस्या नहीं है, क्योंकि इस गुत्थी को तीन महीने बाद उत्तरप्रदेश की जनता सुलझा ही देगी।
जो मिथ्याभास था, जिन्हे था उनका, टूटा है। वह भारतीय जनता पार्टी के एक राजनीतिक पार्टी होने का भ्रम है। इस बैठक में दूसरे राजनीतिक दलों को कोसने और परिवारवाद और व्यक्तिवाद के उलाहने सुनाने वाली खुद भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र की बची-खुची आड़ भी जाती रही। साफ़-साफ़ सामने आ गया कि यह पार्टी, जिस असंवैधानिक सत्ताकेंद्र-संघ परिवार- की जकड़न में है, वह खुद असंवैधानिक ही नहीं, संविधान विरोधी भी है और यह भी कि अब इस परिवार-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ- की गिरफ्त पूरी तरह मुकम्मिल हो चुकी है।
यह चिंताजनक इसलिए भी हो जाता है, क्योंकि यह सिर्फ एक पार्टी भर का मामला नहीं है। यह उस पार्टी का मामला है, जो सम्प्रभु, समाजवादी, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का प्रावधान करने वाले संविधान को लागू करने की शपथ लेकर सरकार में है। वैसे भी लोकतंत्र जब सिकुड़ता है, तो सिर्फ आम नागरिकों भर के लिए नहीं सिकुड़ता। यह सिकुड़न एक ऐसे ब्लैकहोल तक पहुँचती हैं, जहां प्रकाश तक अस्तित्वहीन हो जाता है। मार्गदर्शक मंडल के मार्गदर्शक ऑनलाइन इसी का नजारा कर रहे होंगे।
भाजपा की इस रविवारीय कार्यकारिणी ने दुनिया के श्रेष्ठतम फिल्मकार और अभिनेताओं में से एक चार्ली चैपलिन की कालजयी फिल्म "द ग्रेट डिक्टेटर" के उस दृश्य की याद ताजा कर दी, जिसमें आत्ममुग्ध हिटलर खुद पर फूले न समाते हुए पृथ्वी के ग्लोब आकार वाले गुब्बारे को कभी इधर से, कभी उधर से, कभी हाथ से, कभी पाँव से उचकाते हुए इतराता है कि इसी बीच अचानक वह गुब्बारा फूट जाता है। उसके जूतों में पाँव डालने को आतुर उसकी खराब मिमिक्री करने वालों के साथ भी यही होना तय है। वे कार्पोरेटी मीडिया की मदद और हिन्दुत्वी बदबूदार हवा से भरे गुब्बारे को देख-देख कितने भी इतरा लें, मगर जनता के पास उसे फुस्स करने वाली सुई है, जिसे वह उन पांच राज्यों के चुनावों में चुभोने के लिए तैयार बैठी है, जिनकी तैयारियों भर के लिए भाजपा ने यह कार्यकारिणी बैठक बुलाई थी।
(लेखक पाक्षिक 'लोकजतन' के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)