क़ानून व्यवस्था के नाम पर सेना की एंट्री के बाद सैनिक कर लेते हैं सत्ता पर कब्जा, भारत में तेजी से हो रहा प्रजातंत्र का खात्मा
महज 104 देशों में प्रजातंत्र है और इसमें से 52 देशों में इसका अवमूल्यन होता जा रहा है, इनमें से 7 देश – अमेरिका, एल साल्वाडोर, ब्राज़ील, हंगरी, भारत, पोलैंड और मॉरिशस - ऐसे भी हैं, जिनमें यह अवमूल्यन सबसे तेजी से देखा जा रहा है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Erosion of Democracy is a global phenomenon. हाल में ही अफ्रीकी देश तुनिशिया में संसदीय चुनाव संपन्न कराये गए, जिसमें केवल 8.8 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया। मतदाताओं का यह प्रतिशत इस दौर के वैश्विक इतिहास में सबसे कम है। वर्ष 2015 में हैती में 18 प्रतिशत मतदाताओं ने और वर्ष 2019 में अफगानिस्तान में 19 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था। राष्ट्रपति कईस सैएद ने जुलाई 2021 में ही प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी गयी संसद को भंग कर दिया था, और इसके बाद देश पर एक नया संविधान थोप दिया।
नए संविधान में राजनीतिक दलों के महत्व को ख़त्म कर दिया गया। राष्ट्रपति ने इन राजनैतिक दलों को जनता का दुश्मन बताया और देश की हरेक समस्या का जिम्मेदार भी। दूसरी तरफ इन राजनीतिक दलों ने पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रपति के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ रखा है। इन सबके बीच जनता पिस रही है, महंगाई और बेरोजगारी से बेहाल है।
विपक्षी नेता अहमद नजीब चेब्बी के अनुसार राष्ट्रपति ने प्रजातंत्र की ह्त्या कर दी है। विपक्षी दल पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रपति द्वारा जनता पर थोपी गयी निरंकुश सरकारों के विरुद्ध एन्नाह्दा आन्दोलन कर रहे हैं। इसके बाद ही राष्ट्रपति ने राजनैतिक दलों को जनता का दुश्मन करार दिया और स्थानीय लोगों से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का आह्वान किया। इस आह्वान के बाद 161 संसदीय सीटों पर 1055 उम्मीदवार तो खड़े हो गए पर जनता इनमें से किसी के बारे में नहीं जानती थी, इसलिए चुनावों में मतदान के लिए नहीं गयी। जाहिर है प्रजातंत्र के करीब जाता एक देश अचानक राष्ट्रपति की सत्ता की ललक के कारण निरंकुश शासन के अधीन चला गया।
लम्बे समय तक सेना के अधीन रहने के बाद से पिछले कुछ वर्षों से प्रशांत क्षेत्र का देश, फिजी, एक प्रजातंत्र था, पर नवम्बर के चुनावों के बाद की अस्थिरता के कारण यह वापस सेना द्वारा सत्ता संभालने की राह पर चला गया है। इन चुनावों के नतीजों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। प्रमुख विपक्षी दलों ने मिलकर बहुमत का दावा किया है और सितिवेनी राबुका को अपनी तरफ से प्रधानमंत्री बनाने का ऐलान किया है।
इस तरह अल्पमत में आने के बाद भी वर्तमान प्रधानमंत्री फ्रैंक बैनीमरामा हार स्वीकार करने को और प्रधानमंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इसी राजनीतिक गतिरोध का फायदा उठाते हुए राष्ट्रपति रातू विलियम कतोनिवेरे ने कानून व्यवस्था की स्थिति की दुहाई देते हुए सेना को बुला लिया है। यह सभी जानते हैं कि क़ानून व्यवस्था के नाम पर जब सेना को बुलाया जाता है, तब धीरे-धीरे सेना ही सत्ता पर काबिज हो जाती है।
पूरी दुनिया में जीवंत प्रजातंत्र मृतप्राय हो चला है और निरंकुश प्रजातंत्र का दौर चल रहा है। पिछले एक दशक के दौरान जीवंत प्रजातंत्र 41 देशों से सिमट कर 32 देशों में ही रह गया है, दूसरी तरफ निरंकुश शासन का विस्तार 87 और देशों में हो गया है। दुनिया की महज 8.7 प्रतिशत आबादी जीवंत प्रजातंत्र में है। प्रजातंत्र का सबसे अधिक और अप्रत्याशित अवमूल्यन जिन देशों में हो रहा है, उनमें भारत, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका भी शामिल हैं। हंगरी, तुर्की, फिलीपींस भी ऐसे देशों की सूची में शामिल हैं जहां प्रजातंत्र के आधार पर निरंकुश सत्ता खडी है। जीवंत प्रजातंत्र की मिसाल माने जाने वाले यूनाइटेड किंगडम में आज के दौर में जन-आंदोलनों को कुचला जा रहा है और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश है।
प्रजातंत्र के अवमूल्यन का सबसे बड़ा कारण निरंकुश सत्ता द्वारा देशों के राजनैतिक ढाँचे को खोखला करना, चुनावों में व्यापक धांधली, निष्पक्ष मीडिया को कुचलना, संवैधानिक संस्थाओं पर अधिकार करना और न्यायिक व्यवस्था पर अपना वर्चस्व कायम करना है। स्टॉकहोम स्थित इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन असिस्टेंस के अनुसार दुनिया में जितने देशों में प्रजातंत्र है उनमें से आधे में इसका अवमूल्यन होता जा रहा है।
कुल 173 देशों की शासन व्यवस्था के आकलन के बाद रिपोर्ट में बताया गया है कि महज 104 देशों में प्रजातंत्र है और इसमें से 52 देशों में इसका अवमूल्यन होता जा रहा है। इनमें से 7 देश – अमेरिका, एल साल्वाडोर, ब्राज़ील, हंगरी, भारत, पोलैंड और मॉरिशस - ऐसे भी हैं, जिनमें यह अवमूल्यन सबसे तेजी से देखा जा रहा है।
दुनिया के 13 देश ऐसे हैं जो निरंकुशता या तानाशाही से प्रजातंत्र की तरफ बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ 27 ऐसे देश हैं जो प्रजातंत्र हैं पर तेजी से निरंकुशता की तरफ बढ़ रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस, म्यांमार, कम्बोडिया, कोमोरोस और निकारागुआ में प्रजातंत्र था, पर अब नहीं है और जनता का दमन सत्ता द्वारा किया जा रहा है। एशिया में महज 54 प्रतिशत आबादी प्रजातंत्र में है। अफ्रीका में निरंकुश सत्ता वाले देश बढ़ाते जा रहे हैं, पर अधिकतर देशों में जनता प्रजातंत्र चाहती है और इसके लिए आन्दोलन भी कर रही है। गाम्बिया, नाइजर, ज़ाम्बिया, घाना, लाइबेरिया, सिएरे लियॉन जैसे अफ्रीकी देशों में जनता में प्रजातंत्र स्थापित कर लिया है। यूरोप में 17 देश ऐसे हैं, जहां प्रजातंत्र का अवमूल्यन हो रहा है। मध्य-पूर्व में केवल तीन देशों – इराक, लेबेनान और इजराइल – में प्रजातंत्र है, पर तीनों ही देशों में यह खतरे में है।
जाहिर है, वर्ष 2022 को प्रजातंत्र के अवमूल्यन के वर्ष के तौर पर याद किया जाएगा, पर यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वर्षों में यह परंपरा बने रहेगी, या फिर प्रजातंत्र वापस आएगा।