वायु प्रदूषण से आँखों में उत्पन्न हो सकती हैं अनेक समस्याएं, आदमी पूरी तरह से हो सकता है अंधा

चीन में किये गए एक बड़े अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण से बांझपन का खतरा बढ़ जाता है। एनवायरनमेंट इन्टरनेशनल नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वायु प्रदूषण में हल्की बृद्धि से भी बांझपन का खतरा 20 प्रतिशत तक अधिक हो जाता है।

Update: 2021-02-24 12:28 GMT

वायु प्रदूषण की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की असमय होती है मौत (file photo)

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

ग्रेट ब्रिटेन में किये गए एक विस्तृत अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण से आँखों में अनेक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं और इससे आदमी पूरी तरह से अंधा भी हो सकता है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ ओपथल्मोलोजी में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वायु प्रदूषण के प्रभाव से एज-रिलेटेड मैक्यूलर डीजेनरेशन नामक आँखों का रोग हो सकता है और इसके बाद मनुष्य दृष्टिहीन हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान किये गए अध्ययनों के अनुसार वायु प्रदूषण आंखों में ग्लूकोमा और कैटेरेक्ट को बढ़ा सकता है। अनेक अध्ययनों के अनुसार वायु प्रदूषण आँखों के रेटाइना को भी प्रभावित करता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लन्दन के प्रोफ़ेसर पॉल फ़ॉस्टर के अनुसार आँखों में शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा रक्त का प्रवाह अधिक होता है, इसलिए रक्त में मौजूद प्रदूषणकारी पदार्थों का प्रभाव भी अधिक होता है।

एज-रिलेटेड मैक्यूलर डीजेनरेशन का प्रमुख कारण अब तक अनुवांशिक और खराब स्वास्थ्य को माना जाता था, पर अब इसमें वायु प्रदूषण का नाम भी जुड़ गया है।

वैज्ञानिकों के अनुसार अनुवांशिक कारणों को नियंत्रित करना कठिन है, पर वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर इससे राहत मिल सकती है। अध्ययन के अनुसार पीएम2.5 की सांद्रता में एक माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बढ़ोत्तरी से एज-रिलेटेड मैक्यूलर डीजेनरेशन के मामलों में 8 प्रतिशत तक की बृद्धि दर्ज की जा सकती है। यदि पीएम10 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में मामूली बृद्धि भी होती है तब आबादी के बड़े भाग की आँखों का रेटाइना प्रभावित होता है। दुनिया में एज-रिलेटेड मैक्यूलर डीजेनरेशन से लगभग 20 करोड़ व्यक्ति प्रभावित हैं, और 50 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी इससे अधिक प्रभावित रहती है। इस अध्ययन को 40 से 69 वर्ष के बीच की उम्र के 1,16,000 व्यक्तियों पर किया गया है। इससे पहले वर्ष 2019 में ताइवान के वैज्ञानिकों ने ट्रैफिक से होने वाले वायु प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन करते हुए भी ऐसा ही निष्कर्ष निकाला था।

चीन में किये गए एक बड़े अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण से बांझपन का खतरा बढ़ जाता है। एनवायरनमेंट इन्टरनेशनल नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वायु प्रदूषण में हल्की बृद्धि से भी बांझपन का खतरा 20 प्रतिशत तक अधिक हो जाता है। इस अध्ययन को पेकिंग यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ़ रेप्रोडक्टिव मेडिसिन के विशेषज्ञ क्विन ली की अगुवाई में किया गया था, और इसमें प्रजनन योग्य 18,571 दम्पत्तियों को शामिल किया गया था। यह अपने तरीके का दुनिया का सबसे बड़ा अध्ययन है।

अब तक ऐसे अध्ययनों को फर्टिलिटी क्लिनिक जाने वाले लोगों पर ही केन्द्रित किया जाता था, पर इस अध्ययन को सामान्य आबादी पर किया गया है। क्विन ली के अनुसार दुनिया में बांझपन एक गंभीर समस्या है और लगभग 30 प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं जिनका कारण अज्ञात रहता था, पर अब इस अध्ययन के निष्कर्ष के बाद अब तक अज्ञात कारणों से होने वाले बांझपन के अधिकतर मामलों को वायु प्रदूषण से जोड़ा जा सकता है। बढ़ती उम्र, बेहिसाब वजन और धूम्रपान बांझपन के सामान्य कारण हैं। इस अध्ययन के अनुसार वायु में पीएम2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बृद्धि से सामान्य जनसंख्या में बांझपन के मामले 20 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं।

इससे पहले वर्ष 2017 में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वायु प्रदूषण के असर से स्पर्म की गुणवत्ता में गिरावट आती है। अमेरिका में फर्टिलिटी क्लिनिक जाने वाली 600 महिलाओं पर किये गए एक अन्य अध्ययन से पता चलता है की वायु प्रदूषण के असर से परिपक्व एग की संख्या में गिरावट आती है। अनेक अध्ययन बहुत पहले से ही निर्धारित समय से पहले जन्म, कम वजन के शिशुवों का जन्म और गर्भपात को प्रदूषण से जोड़ते रहे हैं पर प्रजनन तंत्र पर अब अनेक गहन अध्ययन किये जा रहे हैं। वायु प्रदूषण का असर तो प्लेसेंटा पर भी देखा जाने लगा है।

वायु प्रदूषण एक ऐसी गंभीर समस्या बन चुका है जिसके कारण लोग अपनी जगहों से पलायन करने लगे हैं। ग्रेट ब्रिटेन के पर्यावरण संबंधी मुद्दों से जुड़े लोकप्रिय बैरिस्टर शैलेश मेहता के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण पर्यावरण विनाश और बड़ी आबादी का पलायन बढ़ता जा रहा है। एनवायर्नमेंटल जस्टिस फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में हरेक 13 सेकंड में कम से कम एक व्यक्ति पलायन करता है।

अब तो संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने भी ऐसे विस्थापितों को शरण नहीं देने को गैरकानूनी गतिविधि करार दिया है। पिछले महीने फ्रांस की एक अदालत ने गैर-कानूनी तरीके से रह रहे एक बांगलादेशी नागरिक को वापस अपने देश भेजने के आदेश को निरस्त करते हुए कहा था की बांगलादेश में वायु प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है की वह वहां बेमौत मर जाएगा। फ्रांस की अदालत के इस आदेश के बाद से दुनिया भर में विस्थापितों और वायु प्रदूषण का मुद्दा फिर से चर्चा में है।

जाहिर है, वायु प्रदूषण केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि समाज और राजनीति पर भी असर करने लगा है, पर अधिकतर देशों की सरकारें इस समस्यापर ध्यान नहीं दे रही हैं। आश्चर्य यह है कि वायु प्रदूषण को रोके बिना जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सरकारें किस आधार पर इतनी मुस्तैदी दिखा रहीं हैं – यह किसी को नहीं मालूम।

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