बांग्लादेश में भी मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का खुलेआम हनन, सुरक्षाकर्मियों ने 10 प्रदर्शनकारियों को गोलियों से भूना

सत्ता का विरोध करने वालों पर मुख्य तौर पर इंडियन पेनल कोड की धारा 153ए लगाई जाती है, जो दो समुदायों में वैमनस्य पैदा करने के कारण लगाई जाती है, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार धारा 153ए के अंतर्गत गिरफ्तार किये जाने वाले लोगों की संख्या वर्ष 2014 से 2020 के बीच पांच गुना बढ़ गयी...

Update: 2022-12-14 06:35 GMT

बांग्लादेश में भी मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का खुलेआम हनन, सुरक्षाकर्मियों ने 10 प्रदर्शनकारियों को गोलियों से भूना

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Bangladesh Prime Minister, Sheikh Hasina, is facing massive protests demanding her immediate resignation. पूरी दुनिया की राजनीति में एक ट्रेंड हमेशा दिखता है – जब भी कोई एक ही व्यक्ति, पुरुष या महिला, किसी देश की सत्ता लम्बे समय तक संभालता है, तब वह समय के साथ-साथ जनता से विमुख हो जाता है, विरोधियों को कुचलने लगता है, अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगा देता है और स्वयं निरंकुश हो जाता है।

इस समय बांग्लादेश ऐसी ही स्थिति में है, जहां आवामी लीग की शेख हसीना वर्ष 2009 से लगातार सत्ता में हैं। भ्रष्टाचार, मानवाधिकार हनन और महंगाई से त्रस्त जनता अब सत्ता के विरोध में सडकों पर है, शेख हसीना के विरुद्ध लगभग हरेक दिन लाखों की संख्या में जनता प्रदर्शनों में शामिल हो रही है और प्रधानमंत्री से इस्तीफे और नए चुनाव की मांग कर रहे हैं।

वैसे तो इन प्रदर्शनों को विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का बताया जा रहा है, पर इसमें समाज के हरेक तबके, हरेक दल और हरेक विचारधारा के लोग शामिल हो रहे हैं। हाल में ही पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बेएनपी के जनरल सेक्रेटरी और एक पूर्व मंत्री को भी गिरफ्तार किया गया है। पिछले सप्ताह के प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों ने कम से कम 10 लोगों को गोलियों से भून दिया, 100 से अधिक प्रदर्शनकारी घायल हो गए और हजारों लोगों को जेलों में बंद कर दिया। सबसे बड़ी मुस्लिम पार्टी और सबसे बड़ा राजनीतिक दल, जमाते इस्लामी के नेता को आन्दोलनों के समर्थन के कारण जेल में डाल दिया गया है। जमाते इस्लामी के साथ ही देश के सभी वामपंथी और मध्यमार्गी विचारधारा वाले राजनीतिक दल भी इन आन्दोलनों का समर्थन कर रहे हैं।

शेख हसीना वर्ष 2009 से लगातार सत्ता में बनी हुई हैं और वर्ष 2014 और 2018 के चुनावों के दौरान सत्ता बचाए रखने के लिए विपक्षियों के दमन के साथ ही चुनावों में व्यापक पैमाने पर धांधली के उन पर आरोप लगते रहे हैं। इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका में भी उठाया गया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता और संयुक्त राष्ट्र लगातार स्वतंत्र पर्यवेक्षक की निगरानी में चुनाव कराने की बात करता रहा है, पर शेख हसीना देश के भीतर और बाहर की आवाजों को कुचलने में व्यस्त हैं। बीएनपी के अनुसार अब तक आन्दोलनों में उनके कार्यकर्ताओं पर 180000 मुकदमे दायर किये जा चुके हैं, 600 से अधिक सदस्यों को घर से उठाकर लापता किया जा चुका है और 6000 से अधिक हत्याएं पुलिस द्वारा की जा चुकी हैं।

बांग्लादेश में शेख हसीना ने आन्दोलनों के दमन के लिए विशेष तौर पर रैपिड एक्शन बटालियन का गठन किया है, जिसे विश्व के चुनिन्दा सबसे बर्बर पुलिस बलों में शामिल किया जाता है। इसपर जनता को बर्बर तरीके से कुचलने के इतने आरोप लगे हैं कि अमेरिका ने पिछले वर्ष इसे प्रतिबंधित संस्थानों की सूचि में शामिल कर लिया है। आश्चर्य यह है कि मानवाधिकार की माला जपने वाले यूरोपीय देशों ने इसपर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा है, उलटा इस दस्ते को यूनाइटेड किंगडम के साथ ही अनेक यूरोपीय देशों ने बर्बरता का प्रशिक्षण दिया है।

बीएनपी के सभी सांसदों ने सरकार को गैरकानूनी बताकर संसद से इस्तीफ़ा दे दिया है और स्वतंत्र पर्यवेक्षक की निगरानी में तुरंत चुनाव की मांग पर अडिग हैं। बांग्लादेश में अगले वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं, पर इसकी संभावना कम ही है। एशियाई लीगल रिसोर्स सेंटर के अनुसार शेख हसीना ने बांग्लादेश के लिए व्यापक संवैधानिक, राजनीतिक, सामाजिक-आर्थिक और कानूनी संकट खड़ा कर दिया है, और वे जनता की अपेक्षाओं से बेखबर इसी राह पर आगे बढ़ती जा रही हैं और उनके संरक्षण में सुरक्षा बलों की बर्बरता बढ़ती जा रही है – जाहिर है बांग्लादेश सुलग रहा है।

यदि आप अभी तक स्वतंत्र तौर पर सोच सकते हैं और निष्पक्ष खबरों का निष्पक्ष तरीके से विश्लेषण कर सकते हैं, तब निश्चित तौर पर बांग्लादेश की स्थिति आपको हमारे देश की सत्ता का आइना नजर आएगा, अंतर बस इतना है कि बांग्लादेश में जनता सडकों पर है पर हमारे देश में जनता विरोध करना पूरी तरह से भूल चुकी है। बांग्लादेश की तरह ही हमारे देश में भी मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का खुलेआम हनन किया जा रहा है।

हमारे देश में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री या फिर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की आलोचना आज के दौर में सबसे खतरनाक जुर्म है। यह एक रोचक अध्ययन का विषय भी हो सकता है कि वर्ष 2014 के बाद से कितने लोगों या राजनेताओं को केवल प्रधानमंत्री की या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ आलोचना के कारण जेलों में बंद कर दिया गया।

हाल में ही मोदी जी को हारने का आह्वान करने के कारण मध्यप्रदेश में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजा पटेरिया को गिरफ्तार किया गया। इससे पहले 6 दिसम्बर को तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता साकेत गोखले को 136 लोगों की हत्या करने वाले मोरबी पुल हादसे के सन्दर्भ में प्रधानमंत्री की आलोचना के कारण गिरफ्तार किया गया। न्यायालय द्वारा उनकी रिहाई के आदेश के बाद 8 दिसम्बर को उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया। 22 अप्रैल को गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी को प्रधानमंत्री की आलोचना के ट्वीट के कारण गिरफ्तार किया गया। 22 जुलाई को सिनेमा जगत से जुड़े अविनाश दास को अमित शह के साथ निलंबित आईएएस पूजा सिंघल की फोटो पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार किया गया था।

उत्तर प्रदेश में तो अनेक लोगों को सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की आलोचना करने के कारण गिरफ्तार किया गया है। 22 मार्च को आजमगढ़ से एक व्यक्ति को केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उसने सोशल मीडिया पर एक विडियो में मोदी जी और आदित्यनाथ की आलोचना की थी। पिछले वर्ष मई में दिल्ली में मोदी जी की कोविड 19 टीकाकरण नीति के विरुद्ध पोस्टर लगाने के कारण 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। वर्ष 2018 के मई महीने में बलिया से दो व्यक्तियों की गिरफ्तारी एक विडियो में मोदी जी और आदित्यनाथ की आलोचना के कारण की गयी।

नवम्बर 2017 में तमिलनाडू से एक बेरोजगार युवक की गिरफ्तारी मोदी जी की आलोचना के करण की गयी। वर्ष 2014 से देश में सत्ता की आलोचना ही सबसे बड़ा जुर्म बन गयी है, जिसमें केवल पुलिस गिरफ्तार ही नहीं करती बल्कि देश की सभी जांच एजेंसियां भी सत्ता के आलोचकों के पीछे पड़ जाती हैं। सरकार के आलोचकों के घर बुलडोज़र से ढहा दिए जाते हैं, और जनता और मीडिया तालियाँ बजाती है। पूरे देश का पुलिस बल आजकल केवल सत्ता के विरोधियों को पकड़ने और उनके दमन के काम में लगा है – जाहिर है देश में परम्परागत अपराध बढ़ते जा रहे हैं।

सत्ता का विरोध करने वालों पर मुख्य तौर पर इंडियन पेनल कोड की धारा 153ए लगाई जाती है, जो दो समुदायों में वैमनस्य पैदा करने के कारण लगाई जाती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार धारा 153ए के अंतर्गत गिरफ्तार किये जाने वाले लोगों की संख्या वर्ष 2014 से 2020 के बीच पांच गुना बढ़ गयी है। समाज या सत्ता का जो तबका सार्वजनिक तौर पर दो समुदायों में वैमंनस्व फैलाने या जातिगत हिंसा का आह्वान करता है, उसे सत्ता इनाम देती है और पुलिस उसके बचाव में खड़ी रहती है।

मीडिया में आई एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 से 2020 के बीच देश में राजद्रोह से सम्बंधित मामलों में 405 लोगों को जेल में डाला गया, इसमें से 96 प्रतिशत मामले वर्ष 2014 के बाद के हैं। इनमें से 149 मामलों में अभियुक्त ने मोदी जी की और 144 मामलों में आदित्यनाथ की आलोचना की थी। किसानों के आन्दोलन के समय 6, हाथरस सामूहिक बलात्कार काण्ड के बाद 22, नागरिकता क़ानून आन्दोलन के समय 25 और पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद 27 व्यक्तियों पर राजद्रोह की धाराएं लगाई गईं। इनमें से अधिकतर मामलों में प्रधानमंत्री या आदित्यनाथ की आलोचना की गयी थी। 30 प्रतिशत से अधिक राजद्रोह के मामलों में दूसरी संगीन धाराएं भी जोड़ दी जाती हैं।

प्रधानमंत्री जी हरेक समय भारत को दुनिया का सबसे पुराना प्रजातंत्र बताते हैं, पर यदि आप बारीकी से देखें तो दूसरे देशों की तुलना में हमारा प्रजातंत्र सबसे जर्जर है। प्रजातंत्र जनता से खड़ा होता है, पर हमारे देश की जनता ही सो चुकी है। मीडिया और न्यायालय तो पहले ही सो चुके थे। ऐसे में, बांग्लादेश के हालात तो हमें पूरी तरह से सामान्य नजर आयेंगे।

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