नए साल के शुरू में शुभकामना देने की परंपरा है – हरिशंकर परसाई Best Quotes, Status, Shayari, Poetry & Thoughts Best New Year Hindi Shayari Images 2022

Best Quotes, Status, Shayari, Poetry & Thoughts Best New Year Hindi Shayari Images 2022: हरिशंकर पारसाई ने अपने लहजे में नए साल के आते ही शुभकामनाओं का जो दौर चलता है, उसके बहाने से पूरे समाज का खाका खींच दिया है|

Update: 2022-01-02 11:23 GMT

महेंद्र पाण्डेय का लेख

Best Quotes, Status, Shayari, Poetry & Thoughts Best New Year Hindi Shayari Images 2022: हरिशंकर पारसाई ने अपने लहजे में नए साल के आते ही शुभकामनाओं का जो दौर चलता है, उसके बहाने से पूरे समाज का खाका खींच दिया है| उन्होंने लिखा है, "नए साल के शुरू में शुभकामना देने की परम्परा है| मैं तुम्हें शुभकामना देने में हिचकता हूं| बात यह है साधो, कि कोई शुभकामना अब कारगर नहीं होती| मान लो, मैं कहूं कि ईश्वर नया वर्ष तुम्हारे लिए सुखदायी करें, तो तुम्हें दुख देनेवाले ईश्वर से ही लड़ने लगेंगे| वे कहेंगे, देखते हैं, तुम्हें ईश्वर कैसे सुख देता है| साधो, कुछ लोग ईश्वर से भी बड़े हो गए हैं| ईश्वर तुम्हें सुख देने की योजना बनाता है, तो ये लोग उसे काटकर दुख देने की योजना बना लेते हैं|"

हरिशंकर पारसाई ने आगे लिखा है "साधो, मैं कैसे कहूं कि यह वर्ष तुम्हें सुख दे| सुख देनेवाला न वर्ष है न मैं हूं और न ईश्वर है| सुख और दुख देनेवाले दूसरे हैं| मैं कहूँ कि तुम्हें सुख हो| ईश्वर भी मेरी बात मानकर अच्छी फसल दे! मगर फसल आते ही व्यापारी अनाज दबा दे और कीमतें बढ़ा दे| तो तुम्हें सुख नहीं होगा| इसलिए तुम्हारे सुख की कामना व्यर्थ है| साधो, तुम्हें याद होगा कि पिछले वर्ष के आरम्भ में भी मैंने तुम्हें शुभकामना दी थी| मगर पूरा साल तुम्हारे लिए दुख में बीता| हर महीने कीमतें बढ़ती गईं| तुम चीख-पुकार करते थे तो सरकार व्यापारियों को धमकी दे देती थी| ज्यादा शोर मचाओ, तो दो-चार व्यापारी गिरफ्तार कर लेते हैं| अब तो तुम्हारा पेट भर गया होगा| साधो, वह पता नहीं कौन-सा आर्थिक नियम है कि ज्यों-ज्यों व्यापारी गिरफ्तार होते गए, त्यों-त्यों कीमतें बढ़ती गईं| मुझे तो ऐसा लगता है, मुनाफाखोर को गिरफ्तार करना एक पाप है| इसी पाप के कारण कीमतें बढ़ीं|"

पारसाई जी लिखते हैं "साधो, मेरी कामना अकसर उलटी हो जाती है| पिछले साल एक सरकारी कर्मचारी के लिए मैंने सुख की कामना की थी| नतीजा यह हुआ कि वह घूस खाने लगा| उसे मेरी इच्छा पूरी करनी थी और घूस खाए बिना कोई सरकारी कर्मचारी सुखी हो नहीं सकता| साधो, साल-भर तो वह सुखी रहा| मगर दिसम्बर में गिरफ्तार हो गया| एक विद्यार्थी से मैंने कहा था कि नया वर्ष सुखमय हो, तो उसने फर्स्ट क्लास पाने के लिए परीक्षा में नकल कर ली| एक नेता से मैंने कह दिया था कि इस वर्ष आपका जीवन सुखमय हो, तो वह संस्था का पैसा खा गया| साधो, एक ईमानदार व्यापारी से मैंने कहा था कि इस वर्ष समृद्धि हो, तो वह उसी दिन से मुनाफाखोरी करने लगा| एक पत्रकार के लिए मैंने शुभकामना व्यक्त की तो वह 'ब्लेक मेलिंग' करने लगा| एक लेखक से मैंने कह दिया कि नया वर्ष तुम्हारे लिए सुखदायी हो, तो वह लिखना छोड़कर रेडियो पर नौकर हो गया! एक पहलवान से मैंने कह दिया कि बहादुर, तुम्हारा नया साल सुखमय हो, तो वह जुए का फड़ चलाने लगा| एक अध्यापक को मैंने शुभकामना की, तो वह पैसे लेकर लड़कों को पास कराने लगा| एक नवयुवती के लिए सुख कामना की, तो वह अपने प्रेमी के साथ भाग गई| एक एम|एल|ए| के लिए मैंने शुभकामना व्यक्त कर दी, तो वह पुलिस से मिलकर घूस खाने लगा|"

पारसाई जी ने अंत में लिखा है, "साधो, मुझे तुम्हें नए वर्ष की शुभकामना देने में इसीलिए डर लगता है| एक तो ईमानदार आदमी को सुख देना किसी के वश की बात नहीं है| ईश्वर तक के नहीं| मेरे कह देने से कुछ नहीं होगा| अगर मेरी शुभकामना सही होना ही है, तो तुम साधुपन छोड़कर न जाने क्या-क्या करने लगोगे| तुम गांजा-शराब का चोर-व्यापार करने लगोगे| आश्रम में गांजा पिलाओगे और जुआ खिलाओगे| लड़कियां भगाकर बेचोगे| तुम चोरी करने लगोगे| तुम कोई संस्था खोलकर चन्दा खाने लगोगे| साधो, सीधे रास्ते से इस व्यवस्था में कोई सुखी नहीं होता| तुम टेढ़े रास्ते अपनाकर सुखी होने लगोगे| साधो, इसी डर से मैं तुम्हें नए वर्ष के लिए कोई शुभकामना नहीं देता| कहीं तुम सुखी होने की कोशिश मत करने लगना|"

नए वर्ष को केंद्र में रखकर बहुत से कवियों ने कवितायें लिखी हैं| हरिवंश राय बच्चन ने अपनी कविता, आओ नूतन वर्ष मना लें, में बताया है कि परिस्थितियाँ भले ही विपरीत हों, पर नए वर्ष का हर्ष तो मन लो|

आओ, नूतन वर्ष मना लें/हरिवंश राय बच्चन

आओ, नूतन वर्ष मना लें!

गृह-विहीन बन वन-प्रयास का

तप्त आँसुओं, तप्त श्वास का,

एक और युग बीत रहा है, आओ इस पर हर्ष मना लें!

आओ, नूतन वर्ष मना लें!

उठो, मिटा दें आशाओं को,

दबी छिपी अभिलाषाओं को,

आओ, निर्ममता से उर में यह अंतिम संघर्ष मना लें!

आओ, नूतन वर्ष मना लें!

हुई बहुत दिन खेल मिचौनी,

बात यही थी निश्चित होनी,

आओ, सदा दुखी रहने का जीवन में आदर्श बना लें!

आओ, नूतन वर्ष मना लें!

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता, नए साल की शुभकामनाएं, हरिशंकर पारसाई के तीखे व्यंग से बिलकुल अलग हमारे परिवेश का एक अलग का खाका खींचती है|

नए साल की शुभकामनाएं/सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

नए साल की शुभकामनाएँ!

खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को

कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को

नए साल की शुभकामनाएं!

जाँते के गीतों को बैलों की चाल को

करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को

नए साल की शुभकामनाएँ!

इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को

चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को

नए साल की शुभकामनाएँ!

वीराने जंगल को तारों को रात को

ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को

नए साल की शुभकामनाएँ!

इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को

सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को

नए साल की शुभकामनाएँ!

कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को

हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को

नए साल की शुभकामनाएँ!

उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे

उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे

नए साल की शुभकामनाएँ!

अनिल जनविजय की कविता, नया वर्ष, में एक ऐसे समाज की कल्पना है, जहां धरती पर जीवन अनंत हो और निराला-नागार्जुन की कविता हो|

नया वर्ष/अनिल जनविजय

नया वर्ष

संगीत की बहती नदी हो

गेहूँ की बाली दूध से भरी हो

अमरूद की टहनी फूलों से लदी हो

खेलते हुए बच्चों की किलकारी हो नया वर्ष

नया वर्ष

सुबह का उगता सूरज हो

हर्षोल्लास में चहकता पाखी

नन्हें बच्चों की पाठशाला हो

निराला-नागार्जुन की कविता

नया वर्ष

चकनाचूर होता हिमखण्ड हो

धरती पर जीवन अनन्त हो

रक्तस्नात भीषण दिनों के बाद

हर कोंपल, हर कली पर छाया वसन्त हो

अमृता प्रीतम ने अपनी कविता, साल मुबारक, में लिखा है - जैसे इश्क़ की ज़बान पर एक छाला उठ आया, सभ्यता की बाँहों में से एक चूड़ी टूट गयी, इतिहास की अंगूठी में से एक नीलम गिर गया|

साल मुबारक/अमृता प्रीतम

जैसे सोच की कंघी में से

एक दंदा टूट गया

जैसे समझ के कुर्ते का

एक चीथड़ा उड़ गया

जैसे आस्था की आँखों में

एक तिनका चुभ गया

नींद ने जैसे अपने हाथों में

सपने का जलता कोयला पकड़ लिया

नया साल कुझ ऐसे आया...

जैसे दिल के फ़िक़रे से

एक अक्षर बुझ गया

जैसे विश्वास के काग़ज़ पर

सियाही गिर गयी

जैसे समय के होंटो से

एक गहरी साँस निकल गयी

और आदमज़ात की आँखों में

जैसे एक आँसू भर आया

नया साल कुछ ऐसे आया...

जैसे इश्क़ की ज़बान पर

एक छाला उठ आया

सभ्यता की बाँहों में से

एक चूड़ी टूट गयी

इतिहास की अंगूठी में से

एक नीलम गिर गया

और जैसे धरती ने आसमान का

एक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा

नया साल कुछ ऐसे आया...

छोटी कविताओं में अधिकतर कवि, शुरू से ही अपने मूल विषय पर लिखते हैं – पर बहुत कम कवितायें ऐसी होती हैं, जो छोटी होने के बाद भी अपनी अंतिम पंक्ति के कारण विशेष हो जाती हैं| अजित कुमार की कविता, वर्ष नया, इसी श्रेणी में है|

वर्ष नया/अजित कुमार

कुछ देर अजब पानी बरसा।

बिजली तड़पी, कौंधा लपका …

फिर घुटा-घुटा सा, घिरा-घिरा

हो गया गगन का उत्तर-पूरब तरफ़ सिरा।

बादल जब पानी बरसाये

तो दिखते हैं जो,

वे सारे के सारे दृश्य नज़र आये।

छप-छप,लप-लप,

टिप-टिप, दिप-दिप,-

ये भी क्या ध्वनियां होती हैं॥

सड़कों पर जमा हुए पानी में यहां-वहां

बिजली के बल्बों की रोशनियां झांक-झांक

सौ-सौ खंडों में टूट-फूटकर रोती हैं।

यह बहुत देर तक हुआ किया …

फिर चुपके से मौसम बदला

तब धीरे से सबने देखा-

हर चीज़ धुली,

हर बात खुली सी लगती है

जैसे ही पानी निकल गया।

यह जो आया है वर्ष नया-

वह इसी तरह से खुला हुआ ,

वह इसी तरह का धुला हुआ

बनकर छाये सबके मन में ,

लहराये सबके जीवन में|

दे सकते हो?

--दो यही दुआ।

इस आलेख के लेखक ने अपनी कविता, नया साल, में नए साल में नए अहसास और नए अरमान की चर्चा की है|

नया साल/महेंद्र पाण्डेय

नया साल

नई सुबह

नया वर्तमान

नई उम्मीदें

नई आशायें

नये सपने

नया उजाला

नई रोशनी

नया उन्माद

नया साल

नई चिंतायें

नई असफलतायें

नई समस्यायें

जिंदगी को संभालने की

नई कोशिश

नया साल

नये अरमान

नये अहसास

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