भाजपा किसी भी चुनाव को लड़कर कभी नहीं जीतती, सत्तामोह में हमेशा अपनाती है हिंसक और सामाजिक ध्रुवीकरण के तरीके

Election 2024 : सर्वोच्च न्यायालय ने इस मसले पर राहुल गाँधी को राहत दी है, मगर यकीन मानिए वर्ष 2024 के चुनावों से पहले मोदी सरकार न्यायालयों के साथ मिलकर राहुल गांधी को चुनावों से अलग रखने का उपाय ढूंढ़ लेगी...

Update: 2023-08-08 08:31 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Free opposition is essential for healthy democracy, but opposition-free elections are a new normal for pseudo-democratic countries. स्वस्थ प्रजातंत्र में विपक्ष की महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका रहती है, पिछले कुछ वर्षों से भारत समेत लगभग पूरी दुनिया में प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका गौण की जा रही है। सत्ता और सत्ता समर्थक न्यायपालिका के गठबंधन से दुनिया कके अनेक देशों में महत्वपूर्ण चुनावों से ठीक पहले प्रमुख विपक्षी उम्मीदवार कैद कर लिए जाते हैं और अनेक मामलों में प्रमुख विपक्षी दल को चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाता है। हमारे देश में तो वर्ष 2014 के चुनावों से पहले से ही प्रधानमंत्री मोदी का प्रमुख नारा था, कांग्रेस-मुक्त भारत। बीजेपी की मंशा स्पष्ट थी, देश पर प्रजातंत्र के नाम पर एक तरीके की राजशाही स्थापित करना, जिसमें कोई विपक्षी न हो और कोई विरोधी न हो।

बीजेपी ने विरोधियों को कभी बुलडोज़र से, कभी कानून से, कभी पुलिस से और कभी हिंसा से कुचला और विपक्षी दलों को जांच एजेंसियों से धमकाकर और लगातार अकूत पैसे के बल पर विपक्षी विधायकों और सांसदों को खरीदकर कमजोर किया। इसके बाद भी जब राहुल गाँधी की पदयात्रा के बाद लोकप्रियता तेजी से बढी तब न्यायालय के रास्ते उनसे सांसद का खिताब छीन लिया गया। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस मसले पर राहुल गाँधी को राहत दी है, मगर यकीन मानिए वर्ष 2024 के चुनावों से पहले मोदी सरकार न्यायालयों के साथ मिलकर राहुल गांधी को चुनावों से अलग रखने का उपाय ढूंढ़ लेगी।

दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी से चुनाव के मैदान में बीजेपी जीत नहीं पाई, तो नेताओं को जेल में डालना शुरू किया और फिर दिल्ली की कार्यपालिका पर कब्जा कर लिया। दरअसल बीजेपी किसी भी चुनाव को चुनाव की लड़कर कभी जीत नहीं सकती, सत्तामोह में यह पार्टी हमेशा हिंसक और सामाजिक ध्रुवीकरण के तरीके अपनाती है।

विपक्ष से आगे बढ़ने का प्रजातांत्रिक रास्ता स्वस्थ्य चुनावों में भागीदारी है, जिसमें सत्ता अपने काम बताती है और विपक्ष यह बताता है कि यदि वह सत्ता में आया तो किस तरह से लोगों की जिन्दगी को बेहतर बनाएगा। यह रास्ता तो राजनैतिक दलों ने छोड़ दिया है, अब तो चुनाव विश्वयुद्ध की तरह लादे जाते हैं, जिसमें परम्परागत हथियारों के साथ ही सोशल मीडिया और मीडिया का घातक हथियारों की तरह से उपयोग किया जाता है, पर दुनियाभर में सत्ता तमाम हिंसक और अलोकतांत्रिक तरीके अपनाने के बाद भी पहले से अधिक डरी हुई है, और विपक्ष का समूल नाश करना चाहती है।

पाकिस्तान में हाल में ही चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हुई थी। प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ की लोकप्रियता से अधिक लोकप्रिय इमरान खान थे – इमरान को रास्ते से हटाने में स्थानीय न्यायालय ने पूरा साथ दिया और इमरान तीन साल के लिए जेल में बंद कर दिए गए और पांच वर्षों के लिए चुनावों से बाहर भी। संभव है जल्दी ही उनकी पार्टी पर भी कोई ऐसा फैसला सुनाया जाये।

जब म्यांमार में या हाल में नाइजर में सेना ने तख्ता पलट कर सत्ता की बागडोर संभाली तो पश्चिमी देश खूब हंगामा मचाते हैं और तमाम प्रतिबन्ध थोपते हैं, पर दूसरी तरफ जब प्रजातंत्र के नाम पर तमाम देशों में सत्ता, विपक्ष को कुचलती है तो यही देश खामोशी से इसे देखते हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना भी सत्ता में बने रहने के लिए इसी रास्ते पर हैं – विपक्षी नेता खालिदा जिया वर्षों से जेल में बंद हैं और प्रमुख विपक्षी नेताओं को भी लगातार गिरफ्तार किया जा रहा है।

हाल में ही अफ्रीकी देश सेनेगल में युवाओं और कामगारों के बीच सबसे लोकप्रिय विपक्षी नेता ओस्माने सोंको को जेल भेज दिया गया है और उनकी पार्टी को प्रतिबंधित करार दिया गया है। सेनेगल में वर्ष 2024 में चुनाव होने वाले हैं। इसके बाद जब सडकों पर जनता विरोध करने उतर गयी तब देश में मोबाइल इन्टरनेट सेवा बाधित कर दी गयी। जुलाई में कम्बोडिया में चुनावों से पहले लगभग सभी विपक्षी दलों को प्रतिबंधित कर दिया गया और सभी प्रमुख नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था। चुनावों में भागीदारी के लिए 20 राजनीतिक दलों ने पंजीकृत करवाया था, पर इसमें से 9 दलों को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था।

दरअसल पूरी दुनिया में अब एक चलन सा हो गया है कि सत्ता की खामियों को उजागर करने वाला हर समाचार सत्ता और पुलिस द्वारा भ्रामक करार दिया जाता है, और न्यायालय भी वही करती हैं जैसा सत्ता चाहती है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तय्यिप एर्दोगन पूरी तरह से निरंकुश शासक हैं, और सत्ता में बने रहने के लिए विपक्ष को घेरने, मानवाधिकार हनन और अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का सहारा लेते हैं।

मई 2023 के चुनावों से पहले वे सेना, पुलिस और न्यायालय की मदद से प्रमुख विपक्षी नेताओं को सलाखों के पीछे भेज चुके थे। तुर्की के सबसे बड़े शहर, इस्तांबुल को प्रमुख विपक्षी दल, रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी का गढ़ माना जाता है। वर्ष 2019 से इस्तांबुल के मेयर, एक्रेम इमामोग्लू, इसी दल के हैं और राष्ट्रपति एर्दोगन को गंभीर चुनौती देने में सक्षम थे।

14 दिसम्बर 2022 को एक न्यायालय ने उन्हें 2 वर्ष 7 महीने और 15 दिनों की कैद और राजनीति से बाहर रहने का फैसला सुनाया था। यह सजा उन्हें तीन वर्ष पहले की एक प्रेस रिलीज़ के लिए सुनाई गयी है, जिसमें उन्होंने देश के चुनाव आयोग के सदस्यों को “बेवकूफ/मूर्ख” करार दिया था। इसी वर्ष के शुरू में रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी के इस्तांबुल अध्यक्ष कैनन काफ्तान्क्रोग्लू को एक न्यायालय ने तुर्की गणराज्य और राष्ट्रपति एर्दोगन के अपमान का आरोप लगाकर 5 वर्ष की कैद और राजनीति से बाहर रहने की सजा सुनाई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने दूसरी प्रमुख विपक्षी पार्टी, कुर्दिश पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, को पूरी तरह राजनीति से प्रतिबंधित करने का आदेश दिया है।

दक्षिण अमेरिकी देश वेनेज़ुएला में वर्ष 2024 में चुनाव होने हैं और वहां भी विपक्ष को प्रतिबंधित करने का दौर चल रहा है। 27 जून को एक अदालत ने राष्ट्रपति पद की प्रमुख विपक्षी दावेदार मारिया कोरीना मचाडो को 15 वर्ष राजनीति से दूर रहने की सजा सुनाई है। वर्ष 2018 में मालदीव्स में चुनावों से पहले लगभग सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डालकर उनकी पार्टियों को चुनावों से प्रतिबंधित कर दिया गया था।

तमाम अध्ययनों का निष्कर्ष है कि वैश्विक स्तर पर जीवंत प्रजातंत्र विलुप्त होता जा रहा है, और तमाम देशों की सत्ता और न्यायालयों द्वारा विपक्ष-मुक्त चुनावों का आयोजन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

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