महंगे वाहन चालकों को साइकिल सवारों ही नहीं सड़क पर चलने वाले किसानों की ट्रैक्टर-ट्राली और बैलगाड़ी से भी नफरत

जब किसान ट्रेक्टर-ट्राली लेकर गाँव की संकरी सड़कों पर चलते हैं, तब अधिकतर मोटर-वाहन वाले जगह नहीं मिलने के कारण अपशब्दों की बौछार करते हैं....

Update: 2023-07-14 05:42 GMT

महंगे वाहन चालकों को साइकिल सवारों ही नहीं सड़क पर चलने वाले किसानों की ट्रैक्टर-ट्राली और बैलगाड़ी से भी नफरत (photo : Mahendra Pandey)

शहरों में साइकिल चलाने वालों को कमतर इंसान कैसे माना जाता है बता रहे हैं महेंद्र पाण्डेय

A study in Australia has revealed that car drivers think cyclists as inferior humans. ऑस्ट्रेलिया के शहरों में किये गए एक सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि शहरों में साइकिल चलाने वाले लोगों को कारों या दूसरे वाहनों से चलने वाले लोग कमतर इंसान, यानी इंसान से बदतर मानते हैं। हेलमेट और दूसरे सुरक्षा साधनों से लैस होकर साइकिल चलाने वालों को सामान्य साइकिल चलाने वाले लोगों की अपेक्षा और भी कमतर इंसान माना जाता है। इस अध्ययन को फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के शोधार्थियों डॉ. मार्क लिंब और डॉ. सारा कोल्ल्येर ने किया है और इसे “ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च पार्ट ऍफ़: ट्रैफिक साइकोलॉजी एंड बिहेवियर्स” नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन को शहरों में साइकिल को बढ़ावा देने और साइकिल चलाने के दौरान आने वाली अड़चनों को जानने के लिए किया गया था और इसमें विभिन्न शहरों के 560 नागरिकों से विस्तृत चर्चा की गयी थी।

शहरों में साइकिल चलाने वालों को कमतर इंसान मानना पूंजीवादी नजरिये का परिणाम है। पूंजीवाद केवल बाजार को तरह-तरह के उत्पाद से भरता ही नहीं है, बल्कि हमारी सोच और नजरिये को भी बदलता है। सड़कों पर महंगी कारें और एसयूवी दौड़ाने वालों पर पूंजीवाद का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। सड़कों पर इन्हें दौडाने वालों की नजर में सड़कों पर इन्हीं का एकाधिकार है, जाहिर है ऐसे लोगों को धीमी गति से चलने वाली साइकिलों से और उन्हें चलाने वाले लोगों से एक विशेष किस्म की नफरत रहती है।

यदि किसी कार के सामने साइकिल चलाते कोई आ जाए तो कार वाले उसे गाली देने या हाथापाई करने से भी परहेज नहीं करते। अधिकतर कार वाले साइकिल वालों से नफरत करते हैं, तो जाहिर है साइकिल वाले भी तेज चलते वाहन चालकों से नफरत करने लगते हैं और कभी-कभी जानबूझकर कारों का रास्ता भी रोक देते हैं।

बड़े और महंगे वाहन चालकों को साइकिल से ही नही, बल्कि सड़कों पर बराबर चलने वाले हरेक दूसरे वाहनों से नफरत होती है। किसानों की ट्रेक्टर-ट्राली और बैलगाडी से भी उन्हें नफरत होती है और इसे चलाने वालों को कार चालक कमतर इंसान ही मानते हैं, इन्हें अपने समाज का हिस्सा नहीं समझते। यह निष्कर्ष यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर के वैज्ञानिकों द्वारा यूनाइटेड किंगडम के किसानों और कृषि से सीधे जुड़े संगठनों के विस्तृत साक्षात्कार से निकला है, जिसे रूरल सोशियोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया था।

इस अध्ययन का नाम है, इट इज अ लोनली ओल्ड वर्ल्ड। इस अध्ययन को भले ही केवल यूनाइटेड किंगडम के किसानों तक सीमित किया गया हो, पर निश्चित तौर पर इसके निष्कर्ष पूरी दुनिया के किसानों, विशेष तौर पर छोटे किसानों, की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति का बयान करते हैं।

साक्षात्कार में कई किसानों ने बताया कि अनेक मौकों पर उन्हें अपने ही समाज के लोगों से अपशब्दों को भी झेलना पड़ा है। गाँव की सड़कें संकरी और टूटी-फूटी होती हैं, पर इन्हीं सड़कों पर कारें और एसयूवी भी दौड़ने लगे हैं। किसान खेती के काम के लिए अधिकतर ट्रेक्टर-ट्राली का उपयोग करते हैं। जब किसान ट्रेक्टर-ट्राली लेकर गाँव की संकरी सड़कों पर चलते हैं, तब अधिकतर मोटर-वाहन वाले जगह नहीं मिलने के कारण अपशब्दों की बौछार करते हैं। किसानों का कहना है कि अब तो अपने परिवेश में भी लोग पराये लोगों जैसा व्यवहार करने लगे हैं। किसानों को अपने पालतू मवेशियों के सड़क पर आ जाने के कारण भी लोगों से अपशब्द सुनने पड़ते हैं।

भले ही साइकिल चालकों पर अध्ययन को ऑस्ट्रेलिया के शहरों में किया गया हो, पर पूरी दुनिया के देशों में साइकिल वालों के प्रति दूसरे वाहन चालकों का यही रवैय्या है – साइकिल वालों को सड़कों पर बोझ माना जाता है। ऑस्ट्रेलिया में ही वर्ष 2019 में शहरों में किये गए एक अध्ययन का भी निष्कर्ष था कि आधे से अधिक कार चालक साइकिल वालों को कमतर इंसान समझते थे। इसे यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबोर्न और मोनाश यूनिवर्सिटी के समाज वैज्ञानिकों ने किया था और इसे भी “ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च पार्ट ऍफ़: ट्रैफिक साइकोलॉजी एंड बिहेवियर्स” नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया था। सड़कों पर महंगे वाहन दौड़ाने वाला वर्ग साईकिल चालकों को अल्पसंख्यक के नजरिये से देखता है, साइकिल को पिछड़े वर्ग का प्रतीक समझता है।

इस अध्ययन को करने वालों ने अध्ययन से पहले सड़कों पर वाहन चालकों के व्यवहार का बारीकी से आकलन किया था, और इस आकलन के दौरान बहुत सारे कार चालकों ने साइकिल चालकों को मच्छर और तिलचट्टा भी कहा था। इससे इतना तो स्पष्ट था कि साइकिल चालकों को कार चलाने वाले कीड़े-मकोड़े भी समझते हैं। इसके बाद इन विशेषज्ञों ने बंदरों से मानव के विकास-क्रम वाली तस्वीर के साथ ही कीटों से मानव के विकास की एक काल्पनिक क्रमवार तस्वीर तैयार की थी।

अपने अध्ययन के दौरान इन विशेषज्ञों ने इन तस्वीरों को दिखाकर कार चालकों से पूछा था कि साइकिल चालक मानव विकास की क्रमवार तस्वीर में विकास की किस अवस्था में नजर आते हैं। सर्वेक्षण के दौरान 55 प्रतिशत से अधिक कार चालकों ने साइकिल चालकों को कमतर इंसान माना, यानि मानव विकास के क्रम में आधुनिक मानव से पहले के किसी चित्र को पहचाना।

पूंजीवाद में आम आदमी अमीरों के लिए एक संसाधन से अधिक कुछ नहीं है, और संसाधन केवल उपभोग करने के लिए होते हैं। पहले पूंजीवाद ने आम आदमी की साइकिलें हड़प लीं और फिर साइकिल चलाने वालों को ही कमतर इंसान घोषित कर दिया।

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