EVM ने पारदर्शिता और विश्वसनीयता के साथ ज्यादा लोगों के चुनाव लड़ने के अवसर को भी किया है खत्म

यह कैसा लोकतंत्र बन गया है जिसमें जूते के आकार में पैर काटा जा रहा है, पैर के आकार का जूता नहीं बनाया जा रहा। पिछली बार देवरिया लोकसभा चुनाव में भी इसी षड्यंत्र के तहत 18 प्रत्याशियों के पर्चे खारिज कर दिए गए थे....

Update: 2020-10-18 05:27 GMT

यूपी की 55 और गोवा की 40 सीटों पर वोटिंग शुरू।

पढ़िये क्यों कह रहे हैं डॉ. चतुरानन ओझा कि प्रत्याशियों के पर्चे खारिज करना लोकतंत्र विरोधी साजिश है

जनज्वार। देवरिया विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में 21 प्रत्याशियों ने पर्चे दाखिल किए थे, जिनमें चुनाव आयोग की साजिश के तहत 7 पर्चे आज खारिज कर दिए गए। पर्चे खारिज करने का यह काम पिछले कई लोकसभा, विधानसभा चुनाव से बहुत मुस्तैदी के साथ किया जा रहा है। इसके पीछे तीन लक्ष्य एक साथ पूरे किए जा रहे हैं।

पहला, एक ईवीएम मशीन के क्षमता के दायरे में ही प्रत्याशियों की संख्या को बनाए रखना। प्रत्याशियों के पर्चे खारिज करने के पीछे का दूसरा लक्ष्य है भाजपा के प्रत्याशी के वोट को प्रभावित करने वाले फुटकर प्रत्याशियों को चुनावी मैदान से बाहर कर देना। पर्चे खारिज करने की सूची में वाम रूझान के लोगों को चुनावी मंच से बाहर रखना भी इनका एक लक्ष्य होता है।

प्रत्याशियों के पर्चे खारिज करने के लिए चुनाव आयोग के अधिकारी ऐसा व्यूह रचते हैं, जिसमें प्रत्याशी के लिए सभी तरह की पारदर्शिता को खत्म कर दिया जाता है। पर्चे खारिज करने के पीछे मनमाने आरोप लगा दिए जाते हैं। प्रत्याशी को पर्चे की कमियों को पूरा करने की कोई जानकारी नहीं दी जाती और साजिश के तहत इसे प्रमाणित करा लिया जाता है और इस तरह उसे चुने जाने के संवैधानिक अधिकार से वंचित कर दिया जाता है।

इस चुनाव में भी कलेक्ट्रेट परिसर में पर्चा लेने जाते समय से ही प्रत्याशी को उसकी औकात दिखाने का काम शुरू कर दिया गया था। यह कि कोई प्रत्याशी/ प्रतिनिधि मोबाइल फोन लेकर भीतर नहीं जाएगा। हालांकि इस आशय का कोई चुनाव आयोग का कोई लिखित निर्देश पढ़ने में नहीं आया है। ऐसा कलक्टर साहब द्वारा इसलिए कराया गया कि भीतर की उसकी मनमानी और प्रत्याशियों द्वारा जानकारी मांगने पर की जाने वाली बदसलूकी को रिकॉर्ड न किया जा सके और न तो जिन पर पत्रों पर उनके हस्ताक्षर कराए जाते हैं उनकी प्रतिलिपि फोटो ली जा सके।

चुनाव में ईवीएम मशीन ने सिर्फ चुनाव की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को ही नहीं प्रभावित किया है, बल्कि एक ईवीएम की क्षमता से अधिक लोगों के चुनाव लड़ने के अवसर को भी खत्म कर दिया है।

यह अनायास नहीं है कि एकआध अपवादों को छोड़कर लगभग सभी निर्वाचन क्षेत्रों में षड्यंत्र करके पर्चे खारिज कर दिया जाते हैं और एक ईवीएम मशीन से अधिक लोगों को चुनाव नहीं लड़ने दिया जाता। आखिर ऐसा क्यों है कि किसी चुनाव क्षेत्र में 16, 17, 18, 19 या 20 की संख्या में प्रत्याशी नहीं होते।

यह कैसा लोकतंत्र बन गया है जिसमें जूते के आकार में पैर काटा जा रहा है, पैर के आकार का जूता नहीं बनाया जा रहा। पिछली बार देवरिया लोकसभा चुनाव में भी इसी षड्यंत्र के तहत 18 प्रत्याशियों के पर्चे खारिज कर दिए गए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में 13 प्रत्याशियों के पर्चे "कतिपय" कारणों से खारिज कर ईबीएम के समीकरण को दुरुस्त किया गया था।

दरअसल आज की पूंजीवादी व्यवस्था इतनी विकृत हो चुकी है कि जो कभी नक्सली और आंदोलन के लोगों को चुनावी ढांचे में आने की सलाह देने वाले बुद्धिजीवी और नौकरशाह थे, वे ही आज चुनावी मंच को परिवर्तन के मंच के रुप में स्वीकार करने वालों को भी उस ढांचे से बाहर फेंक कर आंदोलन की राह पर चलने के लिए मजबूर कर रहे हैं।

आज यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि ईवीएम मशीन, चुनावी चंदा बांड और चुनाव आयोग की वर्तमान साजिशों को खत्म किए बिना वर्तमान में चुनाव निरर्थक हो चुका है।

आज यदि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को थोड़ा भी बचाए रखना है तो पर्चा खारिज करने की इस पद्धति को पूरी तरह खत्म करना ही होगा और पूंजीवाद को खत्म कर समाजवादी जनतंत्र की स्थापना करना होगा।

(डॉ चतुरानन ओझा उत्तर प्रदेश पंचायत प्रतिनिधि महासंघ से जुड़े हैं।)

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