Fatima Sheikh Birthday: भारतीय नारी मुक्ति आंदोलन की एक गुमनाम नायिका फातिमा शेख
Fatima Sheikh Birthday: इतिहास का इतिहास ये बताता है कि इतिहासलेखन बहुधा सत्ताधारी पक्ष का उल्लेख करता है. भारत के सन्दर्भ में ये इतिहास लेखन सवर्णों के इतिहास के तौर पर चिन्हित होता है. लेकिन युग बदलने के साथ ही इतिहास और इतिहासलेखन के प्रति दृष्टिकोण भी बदलने लगा है. कुछ सामाजिक इतिहासकारों ने इतिहास के सफ़हों में हाशिया के सामाज को लाने का भी सचेत प्रयास किया है.
अमिता शीरीं याद कर रहीं हैं
Fatima Sheikh Birthday: इतिहास का इतिहास ये बताता है कि इतिहासलेखन बहुधा सत्ताधारी पक्ष का उल्लेख करता है. भारत के सन्दर्भ में ये इतिहास लेखन सवर्णों के इतिहास के तौर पर चिन्हित होता है. लेकिन युग बदलने के साथ ही इतिहास और इतिहासलेखन के प्रति दृष्टिकोण भी बदलने लगा है. कुछ सामाजिक इतिहासकारों ने इतिहास के सफ़हों में हाशिया के सामाज को लाने का भी सचेत प्रयास किया है. इतिहास में दलित पात्रों को चिन्हित किया जाने लगा है. शायद दलित अस्मिता के असेर्शन के कारण कुछ चीज़ें सामने आने लगीं. दलितों के बाद आती है औरत. औरतों का इतिहास उसमें भी हाशियाकृत समाज की औरतों का इतिहास तो सिरे से नदारद रहा है. कुछ रानी लक्ष्मीबाई टाइप का इतिहास सामने आता है. लेकिन झलकारी बाई का इतिहास सामने आना अभी हाल फिलहाल का वृत्तान्त है.
अगर बात करें इतिहास के मुस्लिम महिला किरदारों की तो शासक वर्ग की चंद मुसलमान किरदारों को उँगलियों पर गिन सकते हैं. लेकिन सामाजिक आंदोलनों में मुस्लिम महिला किरदारों का इतिहास लगभग नहीं के बराबर आया है.
सामाजिक इतिहासकारों के चंद प्रयासों और अपने शैक्षिक सामाजिक कामों की बदौलत आज ज्योतिबाफुले और सावित्रीबाई फुले को नज़रंदाज़ करना लगभग नामुमकिन है. सोशल मीडिया के कारण पिछले कुछ सालों में सावित्रीबाई फुले का नाम काफ़ी प्रमुखता से लिया जा रहा है. लेकिन उनके संघर्ष के साथ बेहद अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ एक नाम है – फ़ातिमा शेख का. उनके बारे में इतिहास लगभग खामोश है.
यह सच है कि सोशल मीडिया के इस दौर में अब फ़ातिमा शेख के नाम से लोग परिचित होने लगे हैं. लेकिन उनका इतिहास अभी भी इस सवर्ण इतिहास के अंधियारे में कहीं गुम है.
बहुत कम लोग इस तथ्य से अवगत हैं कि आज से लगभग 180 साल पहले जब ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने महाराष्ट्र में वास्तविक नवजागरण आन्दोलन की शुरुआत की थी तब उनके साथ सबसे पहले खड़े हुए थे तीन मुसलमान. एक थे ज्योतिबा फुले के पिता गोविन्दराव के मित्र मुंशी गफ़र बेग, उस्मान शेख और उनकी बहन फ़ातिमा शेख.
ज्योतिबा फुले(1827-1890) और सावित्रीबाई फुले(1831-1897) ने जब शूद्र और अतिशूद्र समुदाय खासतौर पर लड़कियों की शिक्षा के काम को शुरू किया तो समूचा ब्राह्मण समाज उनके ऊपर कुपित हो गया. ज्योतिबा के पिता ने उन्हें घर में रख सकने से मना कर दिया. दोनों पति पत्नी ने घर छोड़ दिया. ऐसे कठिन दौर में फ़ातिमा शेख और उनके भाई उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में पनाह दी. उन्होंने फुले दंपत्ति को न केवल रहने को घर, कपड़े, बरतन और खाने पीने में मदद की बल्कि उनके घर के प्रांगण में देश का पहला दलित स्कूल खुला.
इसके बाद से फ़ातिमा शेख लगातार सावित्रीबाई की अडिग सहचरी बनी रहीं. जब समाज के लोग अपने घर के बच्चों को उनके स्कूल में भेजने का साहस नहीं कर पा रहे थे, उस वक्त फ़ातिमा शेख ने उनके स्कूल में एडमिशन लिया. और मराठी भाषा का अध्ययन किया. बाद में वह उसी स्कूल में सावित्रीबाई के साथ शिक्षिका भी बनीं. ज्योतिबा ने उन्हें शिक्षिका बनने का प्रशिक्षण भी दिया. बाद में फ़ातिमा शेख ने सावित्रीबाई के साथ अहमदनगर के एक मिशनरी टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल में बाकायदा प्रशिक्षण लिया.
फ़ातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 में हुआ था. हालाँकि इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता है. पुणे के मौखिक आख्यानों में फ़ातिमा शेख का जन्म 21 सितम्बर 1831 को भी मिलता है. लेकिन बहुत से सामाजिक संगठन अब 9 जनवरी को फ़ातिमा शेख का जन्मदिन मानते हैं. ज्योतिबा फुले के व्यापक लेखन में भी फ़ातिमा शेख का उल्लेख नहीं मिलता है. केवल 1856 में सावित्रीबाई फुले के ज्योतिबा को लिखे एक पत्र में फ़ातिमा शेख का ज़िक्र मिलता है. उस वक्त सावित्री बाई बहुत बीमार हो गई. तो अपने मायके चली गयी थी. इसके बाद स्कूलों की देखरेख की पूरी ज़िम्मेदारी फ़ातिमा शेख के ऊपर आ गयी थी. वह न केवल पहली मुस्लिम शिक्षिका थीं बल्कि पहली प्रधानाचार्य भी बनी. शिक्षण के साथ प्रशासनिक काम भी किया.
उस दौर में जब औरतों का जीवन दुष्कर था. पढ़ना लिखना तो सवर्ण औरतों को भी नसीब नहीं था. ऐसे दौर में शूद्रों और लड़कियों के लिए शिक्षा की मुहिम चलाना कितना कठिन काम रहा होगा इसकी कल्पना हम कर सकते हैं. फ़ातिमा शेख सावित्रीबाई के साथ घर घर जाकर दलितों और लड़कियों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती. और स्कूल में एडमिशन लेने के लिए उत्साहित करती.
ज्योतिबा और सावित्री बाई ने जब बिनब्याही और विधवा मांओं के लिए शरण स्थल खोला तो फ़ातिमा शेख ने भी सावित्रीबाई के साथ बच्चा पैदा करवाने का काम सीखा.
हमें फ़ातिमा शेख के जीवन के बारे में विस्तार से कोई ऐतिहासिक सामग्री नहीं मिलती लेकिन पुणे के डॉ शमसुद्दीन तम्बोली यह बताते हैं कि ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने स्वयं सत्यशोधक समाज में फ़ातिमा शेख की शादी संपन्न की थी. इसके बाद उनके जीवन का क्या हुआ हमें नहीं पता. उनके बारे में हम केवल इतना ही जानते हैं कि फ़ातिमा शेख ने फुले दंपत्ति को शरण दी थी. वह पहली मुस्लिम शिक्षिका – प्रधानाध्यापिका थीं और वह एक प्रशिक्षित शिक्षिका थीं.
इस तरह इतिहास में फ़ातिमा शेख का कोई प्रामाणिक जीवन नहीं दर्ज है. न ही आधिकारिक साक्ष्यों की फाइलों में उनका उल्लेख मिलता है. लेकिन महाराष्ट्र के मौखिक स्रोतों गीतों कविताओं में फ़ातिमा काफ़ी उल्लेख मिलता है.
आज के फ़ासीवादी दौर में अब अल्पसंख्यक समुदाय पर चौतरफ़ा हमले बढ़ गए हैं. मुसलमानों को इतिहास के हाशिये से भी परे खिसकाने की कोशिश की जा रही है. उनको सामजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक जीवन से ही नहीं बल्कि इतिहास से भी बाहर करने की साजिश रची जा रही है. मुस्लिम औरतों की सरेआम बोली लगाईं जा रही है, ऐसे वक्त में हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम इतिहास के सफ़हों से ऐसे किरदारों को सामने लायें और उनके कामों से प्रेरणा लेते हुए उन्हें सलाम पेश करें.