Harivansh Rai bachchan Biography in Hindi: डॉ. हरिवंश राय बच्चन की जन्मतिथी पर विशेष

Harivansh Rai bachchan Biography in Hindi: हरिवंश राय बच्चन। एक ऐसा नाम। ऐसी पहचान। जिसे हम कभी नहीं भुला सकते। ना भुलाने की कई वजहें हैं। ये नाम ना सिर्फ भारत देश में बल्कि दुनिया में आज भी सितारों की तरह है।

Update: 2021-11-24 11:05 GMT

मोना सिंह की रिपोर्ट

Harivansh Rai bachchan Biography in Hindi: हरिवंश राय बच्चन। एक ऐसा नाम। ऐसी पहचान। जिसे हम कभी नहीं भुला सकते। ना भुलाने की कई वजहें हैं। ये नाम ना सिर्फ भारत देश में बल्कि दुनिया में आज भी सितारों की तरह है। यही वजह है कि पोलैंड के व्रोकलॉ शहर में एक चौराहे का नाम हरिवंश राय बच्चन रखा गया है। कहा जाता है कि इनकी कविताओं में एक अलग और खास संदेश रहता है। खासकर ये हमेशा अपनी कविताओं से युवाओं को संदेश दिया करते थे।

इन संदेशों में प्यार, दुलार और साथ में सलाह भी होती थी। उनकी लिखी ये कविता... 'जीवन में एक सितारा था, माना वह बेहद प्यारा था, वह डूब गया तो डूब गया, अम्बर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे, जो छूट गए फिर कहां मिले, पर बोलो टूटे तारों पर, कब अम्बर शोक मनाता है, जो बीत गई सो बात गई'

इस कविता का ये संदेश आज भी उन हर युवा के लिए जो जरा सी बात पर डिप्रेशन में आ जाते हैं। परेशान हो जाते हैं। क्योंकि जो बीत गई सो बात गई...। वाकई आकाश ने कभी तारों के टूटने से शोक नहीं मनाया तो हम क्यों ऐसा करते हैं। अगर ऐसा हम सोचने लगें तो डिप्रेशन में आकर गलत कदम नहीं उठाएंगे। आज यानी 27 नवंबर को महान कवि हरिवंश राय बच्चन की जन्मदिवस है। ऐसे में उनके बारे में पूरी कहानी जानेंगे।

हरिवंश राय बच्चन का परिचय उनकी एक कविता से ही। 'मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन मेरा परिचय। वाकई इन लाइनों में ही कवि का परिचय छिपा है। मिट्टी का तन और मस्ती का मन रखने वाले हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 में इलाहाबाद के नजदीक प्रतापगढ़ के अमोढ़ गांव में हुआ था। अब इलाहाबाद को प्रयागराज के नाम से जाना जा रहा है। परिवार में इन्हें प्यार से बच्चन कहकर बुलाते थे। अपने परिवार के बारे में हरिवंश जी ने खुद ही लिखा था। उनकी एक कविता में लिखा था 'मैं कायस्थ कुलोदभव, मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है, पचहत्तर प्रतिशत हाला, पुश्तैनी अधिकार मुझे है, मदिरालय के आंगन पर, मेरे दादों परदादों के हाथ, बिकी थी मधुशाला'.

असहयोग आंदोलन के लिए छोड़ दी थी पढ़ाई

हरिवंश राय बच्चन का बचपन में काफी उतार-चढ़ाव रहा। उनका परिवार किराए के घर में रहता था। लेकिन पढ़ाई में वो काफी अव्वल रहे। साल 1929 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया था। इसके बाद उन्होंने एमए में एडमिशन लिया। उस समय साल था 1930। यानी देश में आजादी के लिए असहयोग आंदोलन चल रहा था। देश भर के युवा उस आंदोलन में शामिल हो रहे थे। शुरू से काफी इमोशनल और देशभक्त रहे हरिवंश जी भी असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने। इसके लिए उन्होंने एमए की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। इसके बाद उन्होंने फेलोशिप के जरिए पढ़ाई के लिए साल 1938 में कैम्ब्रिज चले गए। यहीं से एमए की पढ़ाई की।

पहली पत्नी श्यामा की मौत और दर्द को कविता में लिखा

बताया जाता है कि जब हरिवंश जी कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे उसी दौरान उनकी शादी हो गई। उनकी शादी श्यामा से हुई थी। लेकिन उनकी पहली शादी ज्यादा समय तक नहीं चली। पत्नी बीमार रहने लगीं। और हरिवंश राय बच्चन जी इससे वियोग में रहने लगे। उनकी पत्नी श्यामा की तबीयत जब ज्यादा खराब रहने लगी तो उस दर्द को उन्होंने अपनी कविता में जगह दी थी।

उस समय उन्होंने एक कविता लिखी थी, 'रात आधी खींच कर मेरी हथेली, एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने'। वाकई ये सिर्फ ना एक कविता थी बल्कि इसमें उनका प्यार और दर्द दोनों छुपा था। कविता का सार ये था... आधी रात में मेरी हथेली को खींचकर सिर्फ एक उंगली से लिख दिया था प्यार तुमने। इस कविता ने हरिवंश राय बच्चन जी की संवेदना को एक नई पहचान दी।

इसके बाद तो कविता में उनकी शोहरत दिन-रात बढ़ती ही गई। फिर 'मधुशाला' तो आज हर किसी के जेहन में है। ऐसा कौन नहीं जो...उनकी मधुशाला को गुनगुना ना देता हो। जब भी देश में कहीं सांप्रदायिक माहौल बनता है तो अक्सर उनकी कविता का जिक्र होता है। बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर, मेल कराती मधुशाला...

हरिवंश राय बच्चन की सबसे प्रसिद्ध मधुशाला 1935 में छपकर आई थी। इससे पहले, उनकी आत्मकथा 'क्या भूलूं क्या याद करूं' के अलावा 'नीड़ का निर्माण फिर', 'बसेरे से दूर' और 'दशद्वार से सोपान तक' ये ऐसे नाम हैं जिन्हें आप पढ़ना शुरू करेंगे तो बस उसी में खो जाएंगे। इसी योगदान की वजह से 1966 में वो राज्य सभा के सदस्य रहे। साल 1968 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड दिया गया था। इसके बाद साल 1976 में पद्म भूषण का सम्मान मिला था। इस बीच, सदी के महानायक और इनके बेटे अमिताभ बच्चन फिल्म जगत में अपनी पहचान लगे थे। 18 जनवरी 2003 में मुंबई में हरिवंश राय बच्चन ने आखिरी सांस ली थी।

अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषा के महान कवि

ये वक्त था 1941 का। जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हरिवंश राय बच्चन जी लेक्चरर बने थे। उनकी पहचान हिंदी कवि की थी लेकिन लेक्चरर बने अंग्रेजी के। क्योंकि दोनों भाषाओं पर उनकी उतनी ही पकड़ थी। दोनों भाषाओं में उनकी सोच और मानवता झलकती थी। साल 1941 से 1952 तक वो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के लेक्चरर रहे थे।

उसी दौरान उनकी लोकप्रियता इतनी तेजी से बढ़ी कि लोग उन्हें रेडियो पर भी सुनते थे। वो उसी समय ऑल इंडिया रेडियो से भी जुड़े थे। इसके बाद उनकी हिंदी की लोकप्रियता इतनी बढ़ी की भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप के तौर पर भी काम मिला।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में लेक्चरर रहने के दौरान ही साल 1942 में उनकी दूसरी शादी हुई थी। वो दिन था 24 जनवरी 1942। इस दिन उनकी शादी तेजी बच्चन जी से हुई थी। कहा जाता है कि पहली पत्नी श्यामा की मौत और तेजी से शादी दोनों को उन्होंने अपनी कविता में जगह दी थी। वे लिखे थे कि 'बीता अवसर क्या आएगा, मन जीवन भर पछताएगा, मरना तो होगा ही मुझको, जब मरना था तब मर न सका, मैं जीवन में कुछ न कर सका'।

मधुबाला से मधुशाला तक

समाज को गहराई से संदेश देने के लिए हरिवंश राय बच्चन जी ने जो तरीका अपनाया उसे आज भी लोग याद करते हैं। कहा जाता है कि उनकी रचना संग्रह में मधुबाला', 'मधुकलश' और 'मधुशाला' तीनों ऐसी हैं जो समाज को एक रहने का संदेश देती है।

मधुशाला की ये पंक्तियां तो रोजाना ही कहीं ना कहीं देश के किसी कोने में गुनगुनाई जाती होंगी। इस कविता के बिना तो इनका नाम भी अधूरा सा लगता है। 'मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक, मगर, उनका प्याला, एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला, दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते, बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर, मेल कराती मधुशाला'...

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