पिछले साल से भारत की 80 करोड़ आबादी को निःशुल्क दाल-चावल दिया जा रहा तो असल जरुरतमंदों का अनाज कहां जा रहा?

कोविड 19 महामारी ने भुखमरी में इजाफा ही किया है। इस वर्ष के प्रारंभ में गैर सरकारी संगठन ऑक्सफैम की रिपोर्ट - द इन्क्वॉलिटी वायरस - के अनुसार महामारी के पहले दौर में गरीबों को नौकरी से हाथ धोने के साथ ही भुखमरी भी झेलनी पड़ीं। इसके चलते भी भारत में कई मौतें हुई हैं....

Update: 2021-06-18 16:14 GMT

मनीष भट्ट मनु का विश्लेषण

जनज्वार। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से अलीगढ़ से आए समाचार ने एक बार फिर भुखमरी के दंश को जिंदा कर दिया है। तमाम दावों के मध्य यहां की गुड्डी और उसके बेटे व बेटियां भूख से मरने की कगार पर आ पहुंचे थे। हैरत इस बात पर भी है कि एक जिला मुख्यालय में यह सब हो गया और प्रशासन को पता भी नहीं चला। स्मरण रहे कि अभी हाल में ही यह दावा किया गया था कि पिछले वर्ष से भारत की अस्सी करोड़ आबादी को निःशुल्क दाल व चावल दिया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि गुड्डी जैसे असल जरुरतमंदों को अनाज कहां जा रहा है?

पिछले कुछ वर्षों से अर्थव्यवस्था में मजबूती और विकास की तेजगति के दावे किए जा रहे हैं। मगर, यह भी सच है कि इसी दौरान भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में लगातार पिछड़ता जा रहा है। 2014 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान 76 देशों के बीच 55वाँ था। वहीं वर्ष 2019 में 117 देशों में भारत की रैंकिंग 102 थी। हालांकि 2020 में जब देशों की संख्या कम हुई तो 107 देशों के बीच भारत का स्थान 94वाँ हो गया। इसी तरह मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के पैमाने पर भी भारत का प्रदर्षन बिगड़ा है। जहां वर्ष 2014 में भारत का स्थान 188 देशों के बीच 130वाँ था। वहीं वर्ष 2020 में 189 देशों के बीच 131वें स्थान पर है।

और यह तब है जब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में जीने का अधिकार और अनुच्छेद 47 में राज्य द्वारा अपने नागरिकों के पोषण आहार और जीवन स्तर को ऊंचा करने की बात की गई है। इसके अतिरिक्त खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 भी भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करने का प्रावधान करता है। मगर, मार्च 2021 में सर्वोच्च न्यायालय से समक्ष प्रस्तुत एक जनहित याचिका में कहा गया कि साल 2013 से 2016 के बीच आधार से लिंक न होने के कारण देश भर में लगभग तीन करोड़ राशन कार्ड निरस्त कर दिए गए हैं। यह जनहित याचिका झारखंड की कोईली देवी की ओर से प्रस्तुत की गई थी। उनकी 11 वर्षीय बेटी की मौत भी भुखमरी से हुई थी। खाद्य सुरक्षा को लेकर कार्यरत संगठनों का कहना है कि जिन परिवारों के कार्ड निरस्त किए गए उनमें से अधिकांश ऐसे दलित और आदिवासी समुदायों से आते हैं जो ज्यादातर पहुंच विहीन इलाकों में रहते हैं।

कोविड 19 महामारी ने भुखमरी में इजाफा ही किया है। इस वर्ष के प्रारंभ में गैर सरकारी संगठन ऑक्सफैम की रिपोर्ट - द इन्क्वॉलिटी वायरस - के अनुसार महामारी के पहले दौर में गरीबों को नौकरी से हाथ धोने के साथ ही भुखमरी भी झेलनी पड़ीं। इसके चलते भी भारत में कई मौतें हुई हैं।

इसी प्रकार राइट टू फूड फाउंडेशन की दिसंबर 2020 में प्रस्तुत रिपोर्ट में सामने आया था कि लॉकडाउन के समय कई परिवारों को भूखे सोना पड़ा। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पिछले वर्ष हुए लॉकडाउन के दौरान भारत के कई परिवारों को कई-कई रातें भूखे रह कर गुजारनी पड़ीं। इनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। यह स्थिति लगभग 27 फीसदी लोगों की थी। सर्वे के अनुसार लॉकडाउन के समय लगभग 71 फीसदी लोगों के भोजन की पौष्टिकता में कमी आई।

विश्व खाद्य कार्यक्रम ने भी माह नवंबर 2020 में चेतावनी देते हुए कहा था कि 2020 की तुलना में 2021 ज्यादा खराब रहने वाला है। इसके प्रमुख डेविड बेस्ली नेएक इंटरव्‍यू में कहा था कि जो धन 2020 में उपलब्ध था, वो 2021 में उपलब्ध नहीं होने वाला है। ऐसे में सरकारों के लिए यह जरुरी हो जाता था कि वह अपने नागरिकों के लिए पर्याप्त मात्रा में पोषण आहर उपलब्ध करवाने की एक दीर्घकालीन योजना बनातीं। मगर, अलीगढ़ की घटना बतलाती है कि ''सिस्टम'' ने हादसों से कुछ नहीं सीखा है।

(लेखक भोपाल में निवासरत अधिवक्ता हैं। लंबे अरसे तक सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर लिखते रहे है। वर्तमान में आदिवासी समाज, सभ्यता और संस्कृति के संदर्भ में कार्य कर रहे हैं।)

Similar News