प्रजातंत्र में राजनीतिक दल जनता की आकांक्षाओं-मांगों को मुद्दा बनाते हैं कहना सबसे बड़ा छलावा, शोध में बड़ा खुलासा

इस दौर में पूरी दुनिया में राजनीति में राष्ट्रवाद, व्यक्तिवाद, निरंकुश तानाशाही, लोकलुभावनवाद, धार्मिक उन्माद और सामाजिक ध्रुवीकरण का बोलबाला दिखता है और जीवंत प्रजातंत सिमटा जा रहा है.....

Update: 2024-01-24 06:17 GMT

ग्लोबल स्टेट ऑफ़ डेमोक्रेसी रिपोर्टजारी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Non-sectoral political improve quality of democratic process and make divided societies more stable. धार्मिक और तमाम सामुदायिक विविधता वाले राजनातिक दलों के कारण समाज का ध्रुवीकरण कम होता है, समाज में स्थिरता रहती है और प्रजातांत्रिक गतिविधियाँ जीवंत रहती हैं। इससे प्रजातंत्र मजबूत रहता है और ऐसे दल छोटी राजनीतिक पार्टियों में एक समन्वय स्थापित करते हैं। इस अध्ययन को स्विस पोलिटिकल साइंस रिव्यु नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है और इसे क्वीन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक टीमोफी अगरीन और यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर के वैज्ञानिक हेनरी जरेट ने किया है। इसके लिए इन वैज्ञानिकों ने पिछले वर्ष उत्तरी आयरलैंड, बेल्जियम, बोस्निया-हेज़ेगोविना, लेबनान और दक्षिणी टायरॉल में संपन्न चुनावों का बारीकी से अध्ययन किया है। इन सभी देशों में धर्म, सम्प्रदाय और समुदायों में बहुत विभाजन है।

इस अध्ययन के आंकड़े चौकाते नहीं हैं क्योंकि इस दौर में पूरी दुनिया में राजनीति में राष्ट्रवाद, व्यक्तिवाद, निरंकुश तानाशाही, लोकलुभावनवाद, धार्मिक उन्माद और सामाजिक ध्रुवीकरण का बोलबाला दिखता है और जीवंत प्रजातंत सिमटा जा रहा है। ऐसे में वैचारिक विविधता वाले राजनीतिक दलों की सत्ता में भागीदारी सिमटती जा रही है, फिर इनसे सामाजिक स्थिरता की बात ही बेमानी लगती है। जिन विचारों को जनता ही नकार रही हो, ऐसे दल समाज पर या फिर प्रजातांत्रिक व्यवस्था और कार्यशैली पर कैसे प्रभाव डाल सकते हैं?

इस अध्ययन में इन प्रश्नों को नकारा नहीं गया है, बल्कि बताया गया है कि विविधता वाले राजनीतिक दलों को भले ही जनता सत्ता से दूर करती जा रही हो, पर ऐसे दलों के प्रभाव सत्ता से अधिक समाज पर पड़ते हैं। ऐसे राजनीतिक दलों का प्रभाव चुनाव परिणामों से भी अधिक है, क्योंकि ऐसे दल समाज के हरेक तबके की बात करते हैं और जाति या सम्प्रदाय विशेष के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज की बात करते हैं। इनकी नीतियों को देखकर बहुसंख्यकवाद, राष्ट्रवाद या विशेष धर्म से जुड़े राजनीतिक दल भी पूरे समाज के लिए नीतियों और योजनाओं का ऐलान करते हैं – भले ही यह उनके राजनीतिक दलों की नीतियों या उद्देश्यों के बिलकुल विपरीत ही हो। जाहिर है, इसका लाभ पूरे समाज को मिलता है।

वर्ष 2022 में उत्तरी आयरलैंड में संपन्न हुए स्थानीय चुनावों में सबसे अधिक विविधता वाला राजनीतिक दल, द अलायन्स पार्टी ऑफ़ नोर्दर्न आयरलैंड, तीसरे स्थान पर रहा, पर एक सम्प्रदाय या धर्म का प्रचार करते सभी दलों ने अपनी विचारधारा के विरुद्ध जाकर चुनाव जीतने के लिए इस दल की नीतियों को अपनाया, और चुनाव जीतने के बाद भी इसी दिशा में काम किया। यहाँ तक कि गर्भपात के कट्टर विरोधी राजनीतिक दलों ने भी द अलायन्स पार्टी ऑफ़ नोर्दर्न आयरलैंड के इसके समर्थन के विचारों को अपनाया।

इसी जर्नल में प्रकाशित एक दूसरे अध्ययन के अनुसार यह एक बड़ा छलावा है कि प्रजातंत्र में राजनीतिक दल जनता की आकांक्षाओं और मांगों को अपना मुद्दा बनाते हैं। हमेशा यही माना जाता रहा है कि राजनीतिक दल जनता के लिए काम करते हैं, पर क्वीन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक टीमोफी अगरीन की अगुवाई में किये गए अध्ययन से स्पष्ट है कि राजनीतिक दल जनता के मूद्दे निर्धारित करते हैं और फिर जनता उनका समर्थन करती है। सामाजिक ध्रुवीकरण को पहले जनता मुद्दा नहीं बनाती, बल्कि राजनीतिक दल बनाते हैं और फिर जनता इस दिशा में बढ़ती है।

इतना तो स्पष्ट है कि अब नए दौर में जनता को पहले से अधिक जागरूक होने की जरूरत है क्योंकि राजनीतिक दल केवल अपना हित साध रहे हैं और जनता को गुमराह करते जा रहे हैं। कुछ देशों में तो लम्बे संघर्ष के बाद प्रजातंत्र वापस आ गया है, पर क्या दूसरे देशों में ऐसा कभी होगा?

सन्दर्भ:

Timofey Agarin et al, Making Representataive Politics Work. Cross-segmental Parties in Consoiations. Swiss Political Science Review (2023). DOI:10.1111/spsr.12585

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