बेहतर शिक्षा के नाम पर श्रीमद् भागवत गीता, उपनिषद, पुराण और संस्कृत को बढ़ावा देती मोदी सरकार और गणित में कमजोर होते छात्र

विश्व हिन्दू परिषद् और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार धार्मिक शिक्षा की वकालत करता रहा है, और बीजेपी सरकार को अच्छे छात्र नहीं, बल्कि उनके एजेंडा को आगे बढाने वाले हिंसक छात्र चाहिए और हिंसा के लिए धर्म के आडम्बर से बड़ा हथियार कोई दूसरा नहीं है...

Update: 2023-02-07 05:28 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

The students of religious countries perform poorly in mathematics and science. वर्ष 2022 के जून में देश में तकनीकी शिक्षा को नियंत्रित करने वाली संस्था आल इंडिया कौंसिल ऑफ़ टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) ने गणित और विज्ञान में इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष के छात्रों की स्थिति का आकलन करने के लिए एक राष्ट्रीय सर्वे किया था। इसमें देश के 2003 संस्थानों के 1.29 लाख छात्रों ने हिस्सा लिया था।

इस सर्वे के अनुसार इंजीनियरिंग में स्नातक करने वाले प्रथम वर्ष के छात्रों को कुल 100 अंकों में से औसतन गणित में 40 और विज्ञान में 50 प्रतिशत अंक ही मिले थे। सिविल इंजीनियरिंग के छात्रों को गणित में औसतन 37.48 प्रतिशत, कंप्यूटर साइंस के छात्रों को 40.12 प्रतिशत और इलेक्ट्रॉनिक्स के छात्रों को औसतन 38.9 प्रतिशत अंक मिले थे। विज्ञान में, जिसमें फिजिक्स और केमिस्ट्री दोनों विषय शामिल थे, औसत अंक 50 प्रतिशत था। इलेक्ट्रॉनिक्स के छात्रों को 52.5 प्रतिशत, कंप्यूटर साइंस के छात्रों को 51 प्रतिशत, मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्रों को 48.5 प्रतिशत और सिविल इंजीनियरिंग के छात्रों को भी 48.5 प्रतिशत अंक विज्ञान में मिले थे। जाहिर है गणित और विज्ञान में छात्रों का गिरता स्तर एक गंभीर चिंता का विषय है।

दूसरी तरफ पूरे देश में स्कूल से लेकर सभी तकनीकी उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों पर श्रीमद भगवतगीता, उपनिषद, पुराण और संस्कृत जैसे विषयों को थोपा जा रहा है। यह सब छात्रों को अपनी परम्परा से अवगत कराने, परम्परागत ज्ञान, उन्हें बेहतर नागरिक बनाने के नाम पर किया जा रहा है, पर इसका असली मकसद छात्रों को कट्टर हिन्दू बनाना है। यह मोदी सरकार का एक घोषित एजेंडा है। जाहिर है, जैसे ही छात्रों को धर्म के आडम्बर में घेरा जाता है, उनमें विश्लेषण की क्षमता कम होने लगती है और विज्ञान और गणित जैसे विषय बिना मानसिक विश्लेषण के नहीं पड़े जा सकते। धर्म को अपनाकर छात्र एक हिंसक मानसिकता का शिकार जरूर हो सकते हैं, जो बिना सोचे-समझे ही किसी भी हत्यारी भीड़ का हिस्सा हो सकते हैं।

वर्ष 2017 में इसी विषय पर एक शोधपत्र जर्नल "इंटेलिजेंस" में प्रकाशित किया गया था। इस अध्ययन को बैकेट यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिसौरी के मनोवैज्ञानिकों के दल ने संयुक्त तौर पर किया था। इस अध्ययन के अनुसार कट्टर धार्मिकता वाले देशों के छात्र धर्म-निरपेक्ष देशों के छात्रों की तुलना में गणित और विज्ञान में अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं। इस अध्ययन में सुझाव दिया गया था कि बच्चों और दुनिया के बेहतर भविष्य के लिए धर्म को स्कूलों और शिक्षा नीति से दूर कर देना चाहिए। इस अध्ययन के लिए इस दल ने दुनिया के 82 देशों में धर्म के प्रचार और शिक्षा की स्थिति का आकलन किया था। इन 82 देशों में भारत शामिल नहीं था।

दिसम्बर 2021 में लोक सभा में तत्कालीन शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने बहुत गर्व से बताया था कि देश में शिक्षा के हरेक स्तर पर धार्मिक और हिन्दू पौराणिक ग्रंथों का समावेश किया जा रहा है। स्कूलों के लिए यह काम नॅशनल कौंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) कर रहा है जबकि तकनीकी संस्थानों में बड़े पैमाने पर आल इंडिया कौंसिल ऑफ़ टेक्निकल एजुकेशन यही काम कर रहा है।

नई शिक्षा नीति में भी धर्म को शिक्षा से जोड़ने का काम प्रमुखता से किया गया है। विश्व हिन्दू परिषद् और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार धार्मिक शिक्षा की वकालत करता रहा है, और बीजेपी सरकार को अच्छे छात्र नहीं, बल्कि उनके एजेंडा को आगे बढाने वाले हिंसक छात्र चाहिए और हिंसा के लिए धर्म के आडम्बर से बड़ा हथियार कोई दूसरा नहीं है। 

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