असुरक्षित विश्व में सुरक्षा पर रिकॉर्ड खर्च, भारत समेत तमाम देशों में अनाज के गोदाम भले ही खाली, मगर हथियारों के गोदाम हमेशा रहते हैं भरे

दुनिया में सुरक्षा पर जितना खर्च किया जाता है, उसका एक-तिहाई से अधिक अकेले अमेरिका करता है। दूसरे स्थान पर चीन, तीसरे पर रूस, चौथे स्थान पर भारत और पांचवें स्थान पर सऊदी अरब है। नाटो संगठन का रक्षा बजट वर्ष 2014 के बाद से 32 प्रतिशत तक बढ़ गया है....

Update: 2024-02-18 10:03 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

In this war-ridden world, global defense spending is increasing without any impact. वर्ष 2023 में वैश्विक सुरक्षा खर्च रिकॉर्ड स्तर, यानि 2.2 खरब डॉलर, पर पहुँच गया है। इन्टरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्ट्रेटेजिक स्टडीज के अनुसार यह राशि वर्ष 2022 की तुलना में 9 प्रतिशत अधिक है और वर्ष 2024 में इसमें और भी बढ़ोत्तरी की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार यह बढ़ोत्तरी रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध के कारण है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पूरे यूरोप में सुरक्षा पर खर्च बढ़ गया है, पर भारत समेत अनेक देश ऐसे भी हैं, जो शांति की बात तो करते हैं पर हथियारों का जखीरा बढाते जाते हैं।

पिछले कुछ वर्षों से हमारे प्रधानमंत्री देश को बाहर और अन्दर के आक्रमण से मुक्त बताकर वाहवाही बटोरते रहे हैं, पर इन्हीं वर्षों के दौरान लगभग सभी देशों से द्विपक्षीय वार्ता के समय सुरक्षा सबसे प्रमुख विषय होता है और इसी पर समझौता होता है। अमेरिकी सरकार ने हाल में ही भारत को 31 मिलिट्री ड्रोन की बिक्री को स्वीकृत किया है। हमारे देश के मेनस्ट्रीम मीडिया में रक्षा सौदे एक अजीब सा जोश भर देते हैं – विदेश से खरीदे गए हथियारों की रिपोर्टिंग में, अब चीन थर-थर कापेगा, पाकिस्तान को सांप सूंघ जाएगा – जैसे जुमले सुनाये जाते हैं।

युद्ध के बाद से यूक्रेन का रक्षा बजट 9 गुना बढ़ गया है, इसमें अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा दी जाने वाली मदद शामिल नहीं है। रूस का रक्षा बजट वर्ष 2023 में वर्ष 2022 की तुलना में 60 प्रतिशत बढ़ गया है। दुनिया में सुरक्षा खर्च में 905.5 अरब डॉलर के साथ अमेरिका सबसे आगे है। अमेरिका के रक्षा खर्च का पैमाना इस तथ्य से समझा जा सकता है कि अगले 15 देशों का सुरक्षा बजट मिलाकर भी अमेरिका का मुकाबला नहीं कर पाते हैं। दुनिया में सुरक्षा पर जितना खर्च किया जाता है, उसका एक-तिहाई से अधिक अकेले अमेरिका करता है। दूसरे स्थान पर चीन, तीसरे पर रूस, चौथे स्थान पर भारत और पांचवें स्थान पर सऊदी अरब है। नाटो संगठन का रक्षा बजट वर्ष 2014 के बाद से 32 प्रतिशत तक बढ़ गया है।

ऑस्ट्रेलिया के इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस द्वारा प्रकाशित ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2023 में कुल 163 देशों की सूचि में भारत 13वें स्थान पर है, यानि दुनिया के केवल 12 देश ऐसे हैं, जो आतंकवाद के सन्दर्भ में भारत से भी खराब स्थिति में हैं। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि इस रिपोर्ट में आतंकवाद का सन्दर्भ केवल आतंकवादी संगठनों द्वारा हमले और हिंसा से लिया गया है और इसमें सरकार-प्रायोजित या सरकार-समर्थित हिंसा शामिल नहीं है – यदि इसे भी आतंकवाद में जोड़ दिया जाए तो निश्चित तौर पर भारत पहले स्थान पर होता। सही मायने में आतंकवाद के खात्मे के दावे के साथ जिस नोट्बंदी को जनता पर थोपा गया, सामान्य जनता के लिए यह सत्ता-प्रायोजित आतंकवाद से कम नहीं था।

स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने बताया है कि भारत पिछले कुछ दशकों से हथियारों का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक है। दुखद यह है कि ऐसा देश जहां दुनिया के सबसे भूखे लोग बसते हैं, बेरोजगारी चरम पर है, और आर्थिक तौर पर मध्यवर्ग की कमर टूटी है – हथियारों के पीछे भाग रहा है, पैसे खर्च कर रहा है। यह संस्थान दुनियाभर में सरकारी तौर पर हथियारों की खरीद-फरोख्त का लेखाजोखा रखता है और इसके विश्लेषण द्वारा हरेक वर्ष एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जिसमें पिछले पांच वर्षों के दौरान देशों द्वारा हथियारों की खरीद का आंकड़ा प्रस्तुत किया जाता है।

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इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से 2017 के बीच की तुलना में हथियारों की खरीद में वर्ष 2018 से 2022 के बीच 11 प्रतिशत की गिरावट के बाद भी इस सन्दर्भ में भारत पहले स्थान पर है। इसके बाद सऊदी अरब का स्थान है। भारत में वर्ष 2013 से 2017 के बीच हथियारों की कुल खरीद में रूस का योगदान 64 प्रतिशत था, जो अगले 5 वर्षों के दौरान 45 प्रतिशत रह गया फिर भी भारत में सबसे अधिक हथियार रूस से ही खरीदे जाते हैं, दूसरे स्थान पर 29 प्रतिशत खरीद के साथ फ्रांस और फिर 11 प्रतिशत योगदान के साथ अमेरिका तीसरे स्थान पर है।

रूस, फ्रांस और अमेरिका के बाद भारत प्रमुख तौर पर इजराइल, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका से भी हथियार खरीदता है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से 2017 के बीच की तुलना में वर्ष 2018 से 2022 के बीच दुनिया में हथियारों का कारोबार 11 प्रतिशत बढ़ गया है। हथियार म्यांमार जैसे देशों को भी बेचे जाते हैं, जहां की सत्ता अपने ही लोगों पर इनका इस्तेमाल करती है। म्यांमार की लोकतंत्र का तख्तापलट कर सत्ता में बैठने वाली सेना सबसे अधिक हथियार रूस से खरीदती है, दूसरे स्थान पर चीन है और तीसरे स्थान पर भारत है।

जाहिर है, निरंकुश सरकारें दुनिया में दूसरी निरंकुश सत्ता को हथियार बेचकर उन्हें अपनी ही जनता पर हथियार चलाने को समर्थन देती हैं। इस खेल में प्रधानमंत्री के शब्दों में “मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी” भी शामिल है। ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स को हरेक वर्ष प्रकाशित किया जाता है, पर उसमें पिछले 5 वर्षों के आंकड़े रहते हैं। इसमें आतंकवादी संगठनों द्वारा हमलों, मृत्यु, बंधकों और घायलों का लेखाजोखा प्रस्तुत किया जाता है। इसके अनुसार वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 के दौरान वैश्विक स्तर पर आतंकवाद की घटनाओं में 28 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी और आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या में भी 9 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी।

दूसरी तरफ, रिपोर्ट के अनुसार ऐसी घटनाओं और मृतकों की संख्या में कमी के बाद भी ऐसी घटनाएं अब पहले से अधिक घातक और जानलेवा बन गयी हैं। वर्ष 2021 में हरेक आतंकी हमले के दौरान औसतन 1.3 व्यक्ति की मृत्यु होती थी, पर वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 1.7 मृत्यु का रहा। वर्ष 2022 में आतंकवाद से सम्बंधित 3955 घटनाओं में 6701 व्यक्तियों की मृत्यु दर्ज की गयी।

आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र दक्षिण एशिया और अफ्रीका में सहारा क्षेत्र है। इंडेक्स में सबसे कम अंक वाले देश, यानि आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र दक्षिण एशिया है, जहां इससे होने वाली मृत्यु में 30 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी। वर्ष 2022 में इस पूरे क्षेत्र में आतंकवाद के कारण 1354 मौतें दर्ज की गईं। इस इंडेक्स से स्पष्ट है कि गृहयुद्ध से झुलसते देशों में आतंकवाद की समस्या सबसे विकराल है। वैश्विक स्तर होने वाले कुल आतंकवादी हमलों में से 88 प्रतिशत ऐसे ही देशों में किये गए हैं, और आतंकवाद से मरने वालों में 98 प्रतिशत मौतें ऐसे ही देशों में दर्ज की गईं हैं।

आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित देशों में, जिसमें भारत भी शामिल है, सत्ता निरंकुश है, प्रजातंत्र दम तोड़ रहा है, ऐसे देश पर्यावरण संरक्षण में बहुत पीछे हैं, और इन देशों में भूखमरी की दर बहुत अधिक है। पर, ऐसे ही ऐसे देशों में हथियार खूब खरीदे जाते हैं, अनाज के गोदाम भले ही खाली हों, पर हथियारों का गोदाम भरा रहता है। ऐसे देशों में हथियारों का उपयोग अपनी ही जनता को कुचलने के लिए किया जाता है।

हाल में ही आन्दोलनकारी किसानों पर ड्रोन द्वारा आंसू जैस के गोले दागने का मंजर पूरी दुनिया देख चुकी है। जाहिर है, आतंकवाद का खात्मा हथियारों से नहीं होता बल्कि सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक बराबरी से होता है – पर क्या सत्ता इसे समझेगी?

सन्दर्भ:

1. The Military Balance 2024: International Institute of Strategic Studies (2024)

2. Global Terrorism Index 2023 - Measuring the Impact of Terrorism : Institute for Economics and Peace, Sydney, March 2023

3. SIPRI Year Book 2023 – Armaments, Disarmament and International Security: Published by Oxford University Press on behalf of Stockholm International Peace Research Institute (2023)

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