जिस UP में 8 पुलिसवालों को ठोकने वाला गैंगस्टर अभी भी गिरफ्त से बाहर, मोदी जी ने उसे दिया था श्रेष्ठ राज्य का दर्जा

UP में प्रवासी मजदूरों के संकट और कष्ट से सम्बंधित खबर देने वाले पत्रकार जेल भेज दिए गए। पुलिस ने इन मजदूरों पर खूब लाठियां भांजीं और सेनिटाईजेशन के नाम पर जहरीले रसायन तक उड़ेले.....

Update: 2020-07-07 14:04 GMT

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महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

प्रायः प्रधानमंत्री मोदी का पसंदीदा राज्य वो होता है, जहां निकट भविष्य में चुनाव होने वाले होते हैं। जैसे हाल में तूफ़ान और चक्रवात से तबाही बंगाल में भी हुई, और फिर महाराष्ट्र में भी हुई, पर प्रधानमंत्री जी केवल पश्चिम बंगाल गए। अब अचानक बिहार की तारीफ़ कर रहे हैं।

पर आदत के विपरीत जिस राज्य में चुनाव नजदीक नहीं है, उत्तर प्रदेश, उस राज्य की और उसके मुख्यमंत्री की तारीफ़ के पुल बाँध डाले थे। ऐसी तारीफ़ की जैसे रामराज्य पूरी तरह से उत्तर प्रदेश में उतर आया हो और मुख्यमंत्री योगी साक्षात मर्यादा पुरुषोत्तम हो गए हों। हाल में किसी योजना को शुरू करते हुए इसे कोविड 19 से मुकाबला करने, सरकारी योजनाओं को लागू करने और क़ानून व्यवस्था के मसले पर देश के सर्वश्रेष्ठ राज्य का दर्जा दे दिया था।

पिछले लोकसभा चुनाव के ठीक बाद माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा था, इस बार गणित को केमेस्ट्री ने हरा दिया। दरअसल, प्रधानमंत्री जी के सामने गणित, यानि आंकड़े हमेशा हार ही जाते हैं और केमेस्ट्री हावी हो जाती है। यही केमेस्ट्री अबकी बार ट्रम्प सरकार, नमस्ते ट्रम्प जैसे नारों से, ब्राज़ील के राष्ट्रपति को गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि बनाने से, ना किसी ने घुसपैठ की कई और ना ही कोई हमारी सीमा में घुस आया है जैसे वक्तव्यों से बार-बार जाहिर होती है। इसी केमेस्ट्री का ही कमाल है जो जंगल राज से भी नीचे जा चुके उत्तर प्रदेश को प्रधानमंत्री श्रेष्ठ राज्य का दर्जा देते हैं।

कोविड 19 से मुकाबले के संदर्भ में एक राज्य केरल जिसकी दुनिया ने तारीफ़ की, पर प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं कहा, दूसरी तरफ 5 जुलाई तक कुल 26554 मामलों और 773 मृत्यु के साथ राज्यों में पांचवें स्थान पर आसीन उत्तर प्रदेश को प्रधानमंत्री ने कोरोना से युद्ध में अग्रणी राज्य बता दिया। दूसरी तरफ इस तारीख तक केरल कुल 5205 मामलों और 26 मृत्यु के साथ 18वे स्थान पर था।

प्रवासी मजदूरों के मामले में भी प्रधानमंत्री ने ऐसा बताया था, जैसे इस राज्य में उन्हें स्वर्ग जैसी सुविधा दी गई, जबकि हकीकत कुछ और ही है। उत्तर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों के संकट और कष्ट से सम्बंधित खबर देने वाले पत्रकार जेल भेज दिए गए। पुलिस ने इन मजदूरों पर खूब लाठियां भांजीं और सेनिटाईजेशन के नाम पर जहरीले रसायन तक उड़ेले। जब विपक्ष ने इन श्रमिकों के लिए बस का इंतजाम किया तब सरकार ने अपने पूरे तंत्र के झूठ के प्रसार में लगा दिया।

एक दिन सरकारी तंत्र बताता था, बसें नहीं ऑटो रिक्शा है, दूसरे दिन फिटनेस सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ने लगती थी। अकेले उत्तर प्रदेश में जितने प्रवासी श्रमिक सड़कों पर दुर्घटना में मरे होंगें शायद उतने पूरे देश में नहीं मरे। इन श्रमिकों को मुफ्त में मानवीय आधार पर खाना बांटने वालों को भी बार—बार धमकाया गया।

प्रधानमंत्री जी उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था पर भी योगी जी की वाहवाही करते हैं। ऐसा करना लाजिमी भी है क्योंकि यह नीतिगत मामला है। बीजेपी की नीति ही है कि मानवाधिकार पर आवाज उठाने वालों को अपराधी और अर्बन नक्सल बना दो, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा करार दो, तो दूसरी तरफ अपराधियों को सुरक्षा देते रहो और जेल से बचाते रहो। आखिर, अपराधी ही चुनाव जीता सकते हैं।

इस मामले में उत्तर प्रदेश बीजेपी की प्रयोगशाला है। हरेक उस व्यक्ति, पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता को उत्तर प्रदेश में जेल में डाला गया जिसने भी समाज की परेशानियों को उजागर किया। नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ आंदोलनकारियों के साथ सरकार की शह पर पुलिस ने ऐसे बर्ताव किया मानों जालियांवाला बाग की यादें ताजा कराने की कवायद चल रही हो। मिड-डे मील की खामियों से लेकर प्रधानमंत्री के चहेते गाँव में भूख की खबर बताने वाले सभी अपराधी करार दिए गए।

इस पूरी कवायद में पुलिस ने अपना क्रूरतम चेहरा दिखा दिया, पर जिस व्यवस्था को बढ़ावा पुलिस दे रही है वह उसी के लिए घातक बनता जा रहा है। पुलिस और प्रशासन का तंत्र ही पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। पुलिस अब केवल राजनीति का मोहरा बन कर रह गयी है, और राजनीति में नीतियों का विरोध करने वाले अपराधी और शातिर अपराधी हिमायती होते हैं। अब यही पुलिस के बर्ताव में शामिल हो गया है।

आंदोलनकारियों को बिना किसी जुर्म के चंद मिनटों में सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले हाथ अपने 8 साथियों की मौत के बाद भी खाली हैं। यह वही पुलिस है जो बलात्कारियों को सुरक्षा देती है और पीड़ित की हत्या करवा देती है। सामान्य लोगों के लिए पुलिस बल का नाम यदि दमन बल रख दिया जाए तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि पुलिस अब यही करती है।

धीरे धीरे समय के साथ पुलिस वास्तविक अपराधियों को अपराधी समझना, उनसे निपटना और पकड़ना ही भूल गई है, क्योंकि उसे निरपराध जनता ही अपराधी नजर आती है, और उसे बिना मशक्कत के कभी भी पकड़ा जा सकता है, या उसका एनकाउंटर कर प्रमोशन पाया जा सकता है। पुलिस को यह भी स्पष्ट हो गया कि दंगे भड़काकर केवल एक समुदाय को निशाना बनाकर किस तरह से राज्य और केंद्र के नेताओं से वाहवाही बटोरी जा सकती है।

इन सब गतिविधियों से पुलिस ने वाहवाही बटोरने का एक शॉर्टकट ढूंढ़ लिया, और फिर इस तरह की हरकतों से वह अपने आप को देश के सभी कानूनों से अपने को बड़ा समझती है। हो भी यही रहा है। पुलिस का एक अदना सिपाही किसी भी निर्दोष को पकड़कर कितना भी बड़ा अपराधी घोषित कराने की क्षमता रखता है।

इन सबके बीच सामाजिक तौर पर नुकसान पुलिस बल को ही हो रहा है। कोई बुद्धिजीवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता पुलिस वालों की हत्या पर आवाज नहीं उठाते। ऐसे समाचार कुछ दिनों में खुद मर जाते हैं। फिर भी राजनीति जारी है। योगी जी ने ताल थोक कर बार बार कहा था, अब प्रदेश में अपराधी नहीं हैं, या तो मार दिए गए या फिर दूसरे राज्यों में एक्सपोर्ट कर दिए गए। जाहिर है उसके बाद जितने भी अपराध प्रदेश में हुए, सब पर प्रशासन और पुलिस ने लीपापोती की और अपराधी पहले से अधिक दबंग होते चले गए।

यही प्रधानमंत्री जी का उत्तम प्रदेश है, और गणित की केमेस्ट्री से हार भी।

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