जिस गांधी जी ने पाकिस्तान के भले के लिए रखा था आमरण अनशन उनसे उसी मुल्क में इतनी नफरत क्यों?

मोहन दास करमचंद गांधी। एक ऐसा नाम जिसे दुनिया कहती है उसने अखंड भारत को आजादी दिलाई। वो भी बिना खडग और बिना ढाल के। यानी बिना लड़ाई-झगड़े के। गांधी वादी उनकी सोच को आज भी दुनिया सबसे बड़ा हथियार मानती है। उनकी इस सोच से ना सिर्फ भारत बल्कि आज का पाकिस्तान भी आजाद हुआ था।

Update: 2021-11-14 12:35 GMT

अलग-अलग दलों और धड़ों में बँटा देश का राजनीतिक नेतृत्व गांधी और उनके विचारों को छोड़ चुका है काफ़ी पीछे 

मोना सिंह की रिपोर्ट

मोहन दास करमचंद गांधी। एक ऐसा नाम जिसे दुनिया कहती है उसने अखंड भारत को आजादी दिलाई। वो भी बिना खडग और बिना ढाल के। यानी बिना लड़ाई-झगड़े के। गांधी वादी उनकी सोच को आज भी दुनिया सबसे बड़ा हथियार मानती है। उनकी इस सोच से ना सिर्फ भारत बल्कि आज का पाकिस्तान भी आजाद हुआ था। लेकिन क्या पाकिस्तान भी महात्मा गांधी को उतना ही मानता है जितना हिंदुस्तान? क्या पाकिस्तान की युवा पीढ़ी भी महात्मा गांधी के योगदान को जानती है? उनके योगदान को महसूस करती है? तो शायद इसका जवाब होगा, नहीं।

इसकी वजह है कि पाकिस्तान में महात्मा गांधी की छवि एक कट्टर हिंदू के तौर पर दिखाई जाती है। ये कहा जाता है कि वो हिंदुत्व की लड़ाई करते थे। यहां तक कि पाकिस्तान में महात्मा गांधी की दो मूर्तियां हैं। लेकिन दोनों को उनके स्थान से हटाया जा चुका है। कराची में जहां मूर्ति थी उसे लोगों ने गुस्से में तोड़ दिया था। उस जगह को पहले कभी गांधी चौंक कहा जाता था। लेकिन मूर्ति हटाए जाने के बाद अब उसे कबूतर चौक कहा जाता है। क्योंकि वहां कबूतर बहुत आते हैं।

तो मौजूदा हालात में पाकिस्तान में ऐसी है हमार पूजनीय महात्मा गांधी की तस्वीर। लेकिन भारत के इतिहास के उठा देखें तो ऐसा लगता है कि महात्मा गांधी किसी हिंदुत्व या दूसरे धर्म को लेकर कट्टर नहीं थे। बल्कि वो ऐसे उदारवादी चेहरे थे जो पाकिस्तान के बंटवारे के खिलाफ थे। यहां तक की जब पाकिस्तान के अलग होने पर सहमति बन गई और पैसों के बंटवारे की बात आई तो उन्होंने 55 करोड़ रुपये पाकिस्तान को दिलाने के लिए अनशन भी किया था।

इसलिए पहले जानते हैं कि आखिर आजादी से ठीक पहले पाकिस्तान को लेकर महात्मा गांधी क्या सोचते थे और किस तरह से उन्हें भाईचारे का संदेश दिया था। जिस पर उस दौरान भारत के एक समूह ने उनका विरोध भी किया था। इसके बाद भी पाकिस्तान जैसा मुल्क आज उनकी इस कुर्बानी को भुलाकर उन्हें गलत नजरिए से देखता है।

1947 के दौरान गांधी जी और पाकिस्तान

आधुनिक भारत नामक किताब के लेखक एस.के. पांडे लिखते हैं कि 24 मार्च 1947 को माउंटबेटन भारत का गर्वनर जनरल बनकर आया था। उसने कुछ महीने बाद ही कहा था कि भारत समस्या का एकमात्र समाधान है देश का विभाजन। और पाकिस्तान की स्थापना। तब गांधी जी ने कहा था कि...अगर कांग्रेस बंटवारा मंजूर करेगी तो उसे मेरी लाश के ऊपर से गुजरना होगा। जब तक मैं जिंदा हूं भारत के बंटवारे के लिए कभी राजी नहीं होऊंगा। हालांकि, बाद में काफी प्रयासों के बाद और माउंटबेटन की चाल से बंटवारे का फैसला तय हो गया।

माउंटबेटन की योजना को कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया। फिर जब विभाजन होने वाला था तब भारत और पाकिस्तान के बीच नकदी विभाजन की बात आई। उस समय पाकिस्तान ने अविभाजित भारत की कुल नकद शेष का एक चौथाई हिस्सा मांगा था। जिस पर भारतीय प्रतिनिधि ने विरोध किया था और कहा था कि नकद शेष का एक छोटा हिस्सा ही वास्तविक नकदीय आवश्यक्ताओं को बताता है। बाकी शेष तो केवल मुद्रास्फिति यानी महंगाई दर को रोकने का साधन है। मतलब, पाकिस्तान को बड़ा हिस्सा देने से मना कर दिया गया था। परंतु महात्मा गांधी ने यहां पाकिस्तान का पक्ष लिया था।

वे चाहते थे कि पाकिस्तान को ज्यादा से ज्यादा नकद शेष दिया जाए। भारत के मना करने पर वे आमरण अनशन करने लगे थे। 18 जनवरी 1948 को उन्होंने तब तोड़ा था जब पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये अदा किए गए। यानी पाकिस्तान के बारे में गांधीजी ने इतना सोचा था जिससे उस नए देश की स्थिति बेहतर हो सके।

पाकिस्तान में ये हैं गांधीजी के बारे में सोच

अब पहले जो आपने बातें पढ़ीं शायद वैसी ही वजहें रहीं होंगी जो उस दौरान भारत का एक तबका गांधीजी को पाकिस्तान परस्त मानता था। और फिर उसी के चलते 31 जनवरी 1948 को उनकी हत्या भी कर दी गई। लेकिन इसके बाद भी पाकिस्तान ऐसा मुल्क है जो गांधीजी से ही नफरत करता है। पाकिस्तान के ज़्यादातर लोग गांधी को नापसंद करते हैं। उन्हें कट्टर हिंदूवादी मानते हैं। बताया जाता है कि पूरे पाकिस्तान में भी गांधीजी की दो प्रतिमाएं हैं। इनमें सबसे पुरानी प्रतिमा को साल 1931 में लगाया गया था। कराची में सिंध हाई कोर्ट के पास। क्योंकि उसी साल कांग्रेस के अधिवेशन में हिस्सा लेने महात्मा गांधी कराची आए थे। उनकी इस यात्रा की याद में कांस्य से बनी उनकी मूर्ति शहर में लगाई गई थी।

हालांकि, बाद में 1950 में हुए दंगे के दौरान इसे लोगों ने नष्ट कर दिया और नष्ट हुई मूर्ति को इंडियन हाई कमीशन के हवाले कर दिया गया था। हाई कमीशन ने उस मूर्ति का फिर से निर्माण कराया और वहीं पर रख दिया। वर्तमान में ये मूर्ति इस्लामाबाद स्थित इंडियन हाई कमीशन में लगी हुई है.

महात्मा गांधी की दूसरी प्रतिमा पाकिस्तान के इस्लामाबाद में है। यहां पाकिस्तान मॉन्यूमेंट म्यूजियम है। यहां गांधी की प्रतिमा मोम से बनी है। इस मूर्ति को गांधी की श्रद्धा में नहीं बल्कि पाकिस्तान का गठन कैसे हुआ, ये दिखाने के लिए लगाया गया है। यही वजह है कि मूर्ति के पास लगे बोर्ड पर लिखा है- 'Gandhi-Jinnah Talks 1944'।

पाकिस्तान इस मूर्ति का ऐसे करता है इस्तेमाल

अब पाकिस्तान में गांधीजी की म्यूजियम में लगी मूर्ति का इस्तेमाल बड़े ही खास अंदाज में किया जाता है। दरअसल, जब भी पाकिस्तान पर धार्मिक कट्टरता के दुनिया भर में आरोप लगाए जाते हैं या सवाल उठाए जाते हैं तब पाकिस्तान इस फोटो को सोशल मीडिया पर वायरल करता है। ये दावा करता है कि पाकिस्तान भी एक शांतिप्रिय देश है और अहिंसावादी और सहनशील है। क्योंकि इस देश में आज भी गांधी को इस रूप में रखा गया है। ऐसे में ये कह सकते हैं कि भले ही पाकिस्तानी किताबों में गांधी के प्रति नफरत फैलाई जाए, लोगों के जेहन में उन्हें एक कट्टर हिंदुत्ववादी का रूप दिया जाए लेकिन आज भी जब पाकिस्तान पर असहिष्णुता के सवाल उठते हैं तो गांधीजी की वो मूर्ति ही उसके लिए ढाल का काम करती है। यानी वही गांधीवादी विचारधारा को दिखाकर पाकिस्तान अपना बचाव करता है लेकिन दिलों में उनके लिए आज भी नफरत पैदा करता है।

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