राम का इस्तेमाल अपनी जागीर के तौर पर कर रही भाजपा
बीजेपी की राजनीति ही देवी-देवताओं के अपमान, संविधान के उल्लंघन और सामाजिक ताना-बाना कुचलने पर टिकी है। यही नहीं इस सरकार के दौर में आपको प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, अर्नब गोस्वामी, सुधीर चौधरी, अडानी, अम्बानी और रजत शर्मा को भी भगवान् ही मानना पड़ेगा, जिनके विरोध के दो शब्द भी अपमान की श्रेणी में माना जाएगा.....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
हाल में ही इंदौर से एक स्टैंडअप कॉमेडियन, मुनव्वर फारुकी को चार अन्य कॉमेडियन के साथ मध्य प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया, आरोप है कि 1 जनवरी को इंदौर के एक कैफे में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्होंने हिन्दू देवी देवताओं के साथ ही अमित शाह से सम्बंधित आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की। एक जनवरी की रात से अब तक मुनव्वर फारुकी की जमानत याचिका स्थानीय न्यायालय दो बार अस्वीकृत कर चुका है, और तीसरी सुनवाई 25 जनवरी को है।
ऐसे मामले बार-बार सामने आते हैं, जिसमें एक तथाकथित समुदाय के कलाकारों को हिन्दू देवी देवताओं के अपमान का दोषी बनाकर बिना किसी सबूत के ही जेल में बंद कर दिया जाता है। यह सिलसिला महान पेंटर मकबूल फ़िदा हुसैन से शुरू किया गया था, और उन्हें देश छोड़कर बाहर बसना पड़ा था। दूसरी तरफ जनता का हरेक तरीके से दमन करने वाली, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने वाली और हरेक मोर्चे पर असफल बीजेपी सरकार और बीजेपी से संरक्षण प्राप्त तथाकथित हिंदूवादी अतिवादी संगठन हिन्दू धर्म को और उसके देवी देवताओं के अपनी जागीर मान बैठे हैं और देश में जातिगत ध्रुवीकरण के लिए श्री राम का नाम एक हथियार की तरह और राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। क्या यह देवी-देवताओं का सरासर अपमान नहीं है?
एक देश जिसे अपने धर्मनिरपेक्ष होने पर गर्व था, उसकी संसद में जय श्री राम का नारा लगाया जा रहा है, सडकों पर हिंसा और उपद्रव करते हुए जय श्री राम का नारा वीडियो और पुलिस के सामने लगाया जा रहा है, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती पर देश के प्रधानमंत्री जय श्री राम का जयकारा लगा रहे हैं, गृह मंत्री अमित शाह हैदराबाद और बिहार के बाद अब जय श्री राम का नारा देने असम और पश्चिम बंगाल के दौरे कर रहे हैं। देश के जिस एक राज्य में क़ानून और व्यवस्था की कोई स्थिति ही नहीं है और जहां जनता का बेतहाशा दमन किया जा रहा है, यानि उत्तर प्रदेश को प्रधानमंत्री रामराज्य बताते हैं। क्या, केवल चुनाव जीतने के लिए और समाज में ध्रुवीकरण के लिए जय श्री राम का नारा लगाना और भीड़ से लगवाना, देवताओं का अपमान नहीं है? क्या देश के सबसे कुशासित राज्य को रामराज्य करार देना देवताओं का अपमान नहीं है?
दरअसल, बीजेपी की राजनीति ही देवी-देवताओं के अपमान, संविधान के उल्लंघन और सामाजिक ताना-बाना कुचलने पर टिकी है। यही नहीं इस सरकार के दौर में आपको प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, अर्नब गोस्वामी, सुधीर चौधरी, अडानी, अम्बानी और रजत शर्मा को भी भगवान् ही मानना पड़ेगा, जिनके विरोध के दो शब्द भी अपमान की श्रेणी में माना जाएगा और आप जेल में बंद किये जायेंगे। कॉमेडियन कुणाल कामरा की याद तो अभी जहन में ताजी है।
व्यक्तिगत पूर्वाग्रह, जिसे बीजेपी बार-बार भुनाती है, के सन्दर्भ में पहला स्थान धर्म का है, और इसके बाद नस्ल या देश आता है। यानि कट्टरता के सन्दर्भ में हम नस्ल या देश की तुलना में धर्म के मामले में अधिक कट्टर होते हैं। ब्रिटेन के वूल्फ इंस्टिट्यूट ने दो वर्ष के अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, हाउ वी गेट अलोंग। इस अध्ययन के लिए इंग्लैंड और वेल्स में 11,700 एशियाई लोगों का सर्वेक्षण किया गया, और उनसे मुख्य तौर पर प्रश्न पूछा गया था कि उनके कोई निकट का दूसरे धर्म, विशेष तौर पर इस्लाम में शादी कर ले तो वे कैसा महसूस करेंगें। लगभग तीन-चौथाई श्वेत और एशियाई लोगों के अनुसार यदि उनके निकट के लोग अश्वेत या एशिया के दूसरे देशों के लोगों से शादी करें तो उन्हें कोई समस्या नहीं होगी, पर 43 प्रतिशत लोगों को मुस्लिम लोगों से समस्या थी। पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है, अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ कि गैर-इस्लामी लोगों को पाकिस्तान से कोई समस्या नहीं है पर मुस्लिम से समस्या है।
मुनव्वर फारुकी का मामला तो बीजेपी, कट्टरवादी हिन्दू संगठनों, बीजेपी शासित राज्यों के प्रशासन, पुलिस और न्यायालयों पर सरकारों के हावी होने की जिन्दा मिसाल है। इंदौर की स्थानीय बीजेपी की नेता के पुत्र एकलव्य सिंह गौड़, जो एक अतिवादी हिन्दू संगठन के अध्यक्ष भी हैं, की शिकायत पर पुलिस ने बिना किसी प्राथमिक जांच और सबूत के ही मुनव्वर फारुकी को तत्काल गिरफ्तार कर लिया। पुलिस इसके बाद बयान दे रही है कि उनके खिलाफ कोई सबूत, कोई विडियो फूटेज या कोई गवाह नहीं मिले हैं। फिर भी मुनव्वर फारुकी जेल में बंद हैं और दो बार उनके जमानत की याचिका स्थानीय न्यायालय कानून और व्यवस्था का हवाला देकर खारिज कर चुका है। इस सन्दर्भ में देश के लोकतंत्र पर मुंबई उच्च न्यायालय की टिप्पणी को याद कर लेना भी आवश्यक है, हाल में ही मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीबीआई, ईडी और न्यायालयों को अपने कार्यों में निष्पक्ष होना आवश्यक है, नहीं तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। वैसे इस टिप्पणी के पहले ही देश का लोकतंत्र मर चुका था।
मुनव्वर फारुकी के मामले में पुलिस भी बस तमाशा ही कर रही है। पुलिस इंस्पेक्टर कमलेश शर्मा के अनुसार उनके खिलाफ कोई सबूत या गवाह नहीं मिले हैं। दूसरी तरफ, स्थानीय एसपी विजय खत्री के अनुसार हालां कि उनके खिलाफ कोई विडियो फूटेज या सबूत नहीं मिले हैं, पर मुनव्वर फारुकी की मंशा वही थी जैसा कि आरोप में बताया गया है। इन सबके बीच वास्तविकता यह है कि जिस कार्यक्रम में मुनव्वर फारुकी पर हिन्दू देवी-देवताओं और अमित शाह के अपमान का आरोप लगाया गया और जेल भेज दिया गया, उस कार्यक्रम में मुनव्वर फारुकी को कार्यक्रम करना था पर इसके पहली ही हंगामे के कारण वे कोई कार्यक्रम पेश नहीं कर सके थे। यह सब तथ्य किसी के वर्णन से नहीं बल्कि पुलिस द्वारा कोर्ट में दाखिल पूरे कार्यक्रम की विडियो रिकॉर्डिंग से स्पष्ट हैं।
मुनव्वर फारुकी पिछले एक वर्ष से लगातार अतिवादी हिन्दू संगठनों के निशाने पर हैं। वे राजनीति, समाज और सामाजिक विषमता पर अपने शो में कटाक्ष करते हैं, जाहिर है, इन अतिवादी संगठनों मोदी-शाह के विरोध को कुचलने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। पिछले वर्ष सोशल मीडिया पर उनके किसी पोस्ट को हिन्दू देवताओं के अपमान के तौर पर प्रचारित किया गया, जिसके कारण उन्होंने माफी मांगी थी। पिछले वर्ष ही जयपुर में उनके एक कार्यक्रम के दौरान हंगामा किया गया और उन्हें कार्यक्रम छोड़ना पड़ा। उनके किसी विडियो पर उत्तर प्रदेश पुलिस भी जांच कर रही है। पुलिस के लिए आज के दौर में बलात्कार, ह्त्या, लूटपाट कोई मायने नहीं रखते, बस सरकारी अपमान की जांच ही काम रह गया है।
पुलिस और प्रशासन का संरक्षण ऐसे संगठनों को भरपूर मिलता है और यही हमारा मरा हुआ लोकतंत्र है, जिसका गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को तामझाम से आयोजित किया जाता है। मुनव्वर फारुकी के वकील आयुष्मान तिवारी के अनुसार, पुलिस ने मुनव्वर को बिना सबूत और बिना प्राथमिक जांच के ही गिरफ्तार कर लिया, जाहिर है पुलिस पर गंभीर राजनैतिक दबाव रहा होगा और हिंदूवादी संगठन ऐसा महज भोंडे प्रचार के लिए कर रहे हैं। लोग किसी देवता का अपमान नहीं करते, इस दौर में यह अपमान केवल सरकार, सरकार समर्थित संगठनों, पुलिस और प्रशासन द्वारा ही किया जा रहा है, क्योंकि ये लोग धर्म के ठेकेदार बन बैठे हैं और देवताओं को अपनी जागीर मान बैठे हैं।