धरती पर प्राकृतिक संसाधनों से अधिक हुआ मानव निर्मित वस्तुओं का भार- स्टडी रिपोर्ट

20वीं सदी के आरम्भ में मानव निर्मित उत्पादों का कुल वजन पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जीवन के सम्मिलित वजन का महज 3 प्रतिशत था, पर वर्ष 2020 तक मानव निर्मित उत्पादों का वजन 1 टेराटन से अधिक हो चुका है, जो पृथ्वी पर फैले सभी प्रकार के जीवन के सम्मिलित वजन से अधिक है........

Update: 2020-12-12 09:10 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

दुनियाभर के वैज्ञानिक अलग-अलग अध्ययन के बाद बताते रहे हैं कि पृथ्वी पर मानव की छाप इस दौर में किसी भी जीव-जंतु या वनस्पति से अधिक हो गई है, इसलिए इस दौर को मानव दौर कहना उचित होगा। इसी कड़ी में एक नए अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2020 तक पृथ्वी पर मानव निर्मित वस्तुओं का भार सभी प्राकृतिक संसाधनों, वनस्पतियों और जन्तुवों से अधिक हो चला है। आज के दौर में दुनियाभर में अब तक उत्पादित प्लास्टिक का भार ही सभी स्थल और जीवों के सम्मिलित भार से अधिक है।

अब तक लोग यह समझते रहे थे कि पृथ्वी की क्षमता अनंत है और मनुष्य कितनी भी कोशिश कर ले, इसकी बराबरी नहीं कर सकता, पर अब यह धारणा बिलकुल गलत साबित हो रही है। कंक्रीट, धातुवों, प्लास्टिक, ईंटों और एस्फाल्ट का लगातार बढ़ता उपयोग पृथ्वी पर मानव का बोझ बढाता जा रहा है। अनुमान है कि दुनिया में एक सप्ताह में जितने भी पदार्थों का उत्पादन किया जाता है, उसका भार पृथ्वी पर फ़ैली पूरी आबादी के सम्मिलित भार से अधिक होता है।

इस नए अध्ययन को प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका 'नेचर' के दिसम्बर अंक में प्रकाशित किया गया है और इस अध्ययन को इजराइल के विजमैंन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के वैज्ञानिकों ने किया है। अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक रों मिले के अनुसार 20वीं सदी में पृथ्वी पर मनुष्य की छाप तेजी से बढी और यह प्रभाव हरेक 20 वर्ष में दोगुना हो जाता है। वैज्ञानिकों के दल ने मानव निर्मित उत्पादों के कुल वजन के साथ पृथ्वी पर कुल जीवित वनस्पतियों और जीवों के सम्मिलित वजन की तुलना वर्ष 1900 से अब तक के दौर की की है। 20वीं सदी के आरम्भ में मानव निर्मित उत्पादों का कुल वजन पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जीवन के सम्मिलित वजन का महज 3 प्रतिशत था। पर, वर्ष 2020 तक मानव निर्मित उत्पादों का वजन 1 टेराटन से अधिक हो चुका है, जो पृथ्वी पर फैले सभी प्रकार के जीवन के सम्मिलित वजन से अधिक है।

वैज्ञानिक लगातार बताते रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों से अधिकतर जीवन खतरे में है और मानव के प्रभाव से इनकी संख्या घट रही है। जाहिर है, पृथ्वी पर जीवित बायोमास का वजन कम होता जा रहा है तो दूसरी तरफ बिल्डिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निर्बाध बृद्धि के कारण मानव निर्मित उत्पादों का वजन बढ़ता जा रहा है। 1950 के दशक में ईंट से कंक्रीट पर बदलाव और 1960 के दशक से सड़क निर्माण में एस्फाल्ट के अंधाधुंध उपयोग ने मानव निर्मित पदार्थों का वजन तेजी से बढ़ा दिया। इस दौर से पहले जब दुनिया में व्यापक तौर पर खेती का चलन बाधा था तब पृथ्वी के कुल बायोमास का वजन आधा रहा गया था, क्योंकि तब बड़े पैमाने पर जंगलों को काटा गया था और पेड़ों का वजन कृषि फसलों की तुलना में बहुत अधिक होता है।

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इस अध्ययन के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मानव निर्मित उत्पादों का वजन 5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की औसत दर से बढ़ रहा है, पर युद्ध और आर्थिक मंदी के दौर में यह बृद्धि कम हो जाती है। आर्थिक मंदी के सबसे बड़े दौर, जिसे ग्रेट डिप्रेशन के नाम से जाना जाता है और 1979 के पेट्रोलियम क्राइसिस के दौर में मानव की गतिविधियों पर लगाम लगी थी और इसका असर उत्पादन पर भी पड़ा था।

अध्ययन के अनुसार वर्ष 1900 के बाद से पृथ्वी के बायोमास में लगातार कमी दर्ज की जा रही है, जबकि मानव निर्मित उत्पादन हाल के वर्षों में प्रतिवर्ष 30 गीगाटन की दर से बढ़ रहा है, और यदि यही दर रही तो वर्ष 2040 तक मानव निर्मित उत्पादों का वजन 3 टेराटन से भी अधिक होगा। जाहिर है, इस दौर में पृथ्वी पर हरेक जगह मानव की गहरी छाप है और यह निश्चित तौर पर मानव जाति के भविष्य के लिए अच्छी खबर नहीं है।

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