लॉकडाउन के बाद अब लैंगिक समानता की छद्म आस, देश में महिलाओं की हालत बेहद खराब

देश में 81 प्रतिशत से अधिक महिलायें अपने घरों का हर काम स्वयं करती हैं, जबकि लगभग 26 प्रतिशत पुरुष घर के काम में महिलाओं की मदद करते हैं। अधिकतर घरों में महिलायें ही अपने घरों के सबसे भारी सामान भी उठाती हैं.....

Update: 2020-10-03 09:26 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

कोविड 19 के दौरान लॉकडाउन के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्था जब पटरी पर लाने के प्रयास किये जा रहे हैं, तब मानवाधिकार संगठनों को उम्मीद थी कि अब अर्थव्यवस्था पर्यावरण अनुकूल और सामाजिक समरसता और लैंगिक समानता वाली होगी, पर तथ्य यह है कि आज के दौर में देश इन विषयों पर चर्चा भी नहीं कर रहे हैं।

हाल में ही संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान और फिर बाद में भी अधिकतर देश महिलाओं और बालिकाओं के हितों की अनदेखी करते रहे हैं। यू एन वीमेन ने एक ग्लोबल जेंडर ट्रैकर का आरम्भ किया है जिसमें कोविड 19 के दौर में कुल 206 देशों में महिला हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार के निर्णयों का आकलन किया गया है। यह आकलन महिलाओं पर हिंसा, घरेलू काम करने वाली महिलाओं को मदद और महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा से सम्बंधित सरकारों द्वारा लिए गए निर्णयों के सन्दर्भ में किया गया है।

इन 206 देशों में से 42 देश ऐसे हैं, जिनमें महिलाओं के विकास के लिए कोई नीति नहीं हैं, जबकि 25 देशों में आधी-अधूरी नीतियाँ हैं। शेष देशों में नीतियाँ तो महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा, लैंगिक बराबरी और विकास के लिए पर्याप्त हैं, पर अलग-अलग देशों में इनका पालन सरकारें पूरी तरह से या फिर आंशिक तौर पर कर रही हैं।

भारत में घरेलु कार्य करने वाली महिलाओं से सम्बन्षित नीतियों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है, जबकि ब्रिटेन में महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। लगभग 135 देशों में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं द्वारा शिकायत के लिए हेल्पलाइन है और कुछ देशों में हिंसा की शिकार महिलाओं को अलग रखने का प्रबंध भी है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लॉकडाउन के दौरान कुल 31 नीतिगत निर्णय लिए गए, जिसमें से महिलाओं से सम्बंधित 16 निर्णय थे। भारत में महिलाओं पर हिंसा को रोकने के लिए कुल 9 निर्णय लिए गए, महिलाओं की आर्थिक समृद्धि से सम्बंधित 5 निर्णय थे और महिलाओं द्वारा की जाने वाली घरेलू अवैतनिक सेवा से सम्बंधित 1 निर्णय था।

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हमारा देश भले ही नीतिगत निर्णय लेने में आगे रहता हो पर तथ्य तो यह है कि महिलाओं और बालिकाओं की स्थिति हमारे देश में बहुत ही खराब है। सबसे बड़ा मसला, महिलाओं और बालिकाओं पर लगातार बढ़ते यौन हिंसा का है, दुखद यह है कि ऐसे मामलों को लगातार सरकारें और प्रशासन दबाने का काम करता है।

यदि, मामला जनता के सामने आता भी है तो सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया पीड़ित महिला या बालिका का ही चरित्र हनन करने लगता है और सरकारें और प्रशासन इन अफवाहों और भ्रामक खबरों को रोकने के बदले हवा देने में लगे होते हैं।

हाल में ही नॅशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार महिलायें घरों के काम में प्रतिदिन औसतन 243 मिनट व्यतीत करती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह औसत 25 मिनट का है। वर्ष 2019 के दौरान देशभर के 1,38,000 परिवारों के सर्वेक्षण के बाद इन आंकड़ों की जानकारी प्राप्त हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलायें शहरी क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा काम करती हैं।

भारतीय जनमानस में वैसे भी यही माना जाता है कि घर का काम महिलाओं का है, और इसके लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता। वर्ष 2019 के दौरान जितने समय महिलायें घर का काम अवैतनिक तौर पर करती थीं, लॉकडाउन के दौरान इससे कहीं अधिक काम करना पड़ा होगा, क्योंकि पति, बच्चे और घर के अन्य सदस्य लगातार घर के अन्दर ही रहते थे। अधिकतर घरों में पति और लडके अपनी फरमाइश पूरी कराने के अतिरिक्त कोई काम नहीं करते, जबकि प्रायः लडाकिन को शुरू से ही घर के कामों में लगा दिया जाता है।

घर के कामों के अतिरिक्त, बीमारों की तीमारदारी का जिम्मा भी महिलायें ही अपने कंधे पर उठाती हैं। सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि 60 वर्ष की उम्र के बाद महिलायें घर का काम कुछ कम करने लगती हैं, जबकि पुरुषों में ठीक इसका उल्टा होता है। देश में 81 प्रतिशत से अधिक महिलायें अपने घरों का हर काम स्वयं करती हैं, जबकि लगभग 26 प्रतिशत पुरुष घर के काम में महिलाओं की मदद करते हैं। अधिकतर घरों में महिलायें ही अपने घरों के सबसे भारी सामान भी उठाती हैं।

इस वर्ष अगस्त में संयुक्त राष्ट्र का आकलन था कि इस वर्ष के अंत तक गरीबी में 9।1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जायेगी और इसका सर्वाधिक प्रभाव महिलाओं पर ही पड़ेगा। जुलाई में मैकिन्से ग्लोबल इंस्टिट्यूट के आकलन के अनुसार दुनियाभर में लॉकडाउन के बाद आर्थिक मंदी के दौर में एक पुरुष के बदले 1.8 महिलाओं की नौकरी छिन जायेगी, जबकि संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि यदि सभी महिलाओं के रोजगार मिल जाए तो अगले दशक के अंत तक दुनिया की जीडीपी में 13 खरब डॉलर की बृद्धि हो जायेगी।

दुनिया के 61 देशों जिनमें भारत शामिल नहीं है, में घरेलू सेवा कार्यों में महिलाओं की भागीदारी नियंत्रित करने से सम्बंधित क़ानून हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अध्यक्ष के अनुसार यही समय है जब लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय का समन्वय नीतियों में किया जाए।

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