मोदीराज में सबसे ज्यादा विकास संसद में, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को जय संविधान पर आपत्ति और जय हिन्दू राष्ट्र पर बिखेरते हैं कुटिल मुस्कान !
संसद में विकास का आलम यह है कि वर्ष 2009 में महज 58 प्रतिशत सांसद करोड़पति थे, वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी की आंधी में करोड़पति सांसदों की संख्या 82 प्रतिशत तक पहुँच गयी। इसके बाद नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़े जाने लगे – वर्ष 2019 की संसद में 88 प्रतिशत सदस्य करोड़पति थे, जबकि 2024 में यह आंकड़ा 93 प्रतिशत तक पहुँच गया....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Just open your eyes, and you will find development flowing in the air, in the water, over the soil and over the Himalayas. बचपन से हम पढ़ते आये हैं कि पहले चुनाव होते हैं, फिर सबसे बड़े दल के या गठबंधन के जीते उम्मीदवारों की बैठक होती है और एक नेता चुना जाता है। अब तो एक नेता प्रधानमंत्री बनकर और दूसरे नेता मंत्री बनकर ही चुनाव प्रचार करते हैं, सामाजिक ध्रुवीकरण करते हैं, चुनाव लड़ते हैं और प्रधानमंत्री और मंत्री ही बने रहते हैं।
इस तरीके से देखें तो शायद ऐसा पहली बार हो रहा होगा कि एक आदमी के प्रधानमंत्री या मंत्री पद पर कोई विराम ही नहीं लगा। चुनावों के बाद जब नतीजे आते हैं तब वे केवल नतीजे ही होते हैं और संसद में शपथ लेने के बाद ही तकनीकी तौर पर सांसद का पद मिलता है। सांसद की शपथ लिए बिना प्रधानमंत्री या मंत्रियों ने अपने पदों की शपथ भव्य जलसे में ले ली और अपने कार्यालयों में जाकर विकास को नए सिरे से गढ़ना शुरू कर दिया। यह ठीक वैसा ही है, जैसे आप किसी प्रतियोगी परीक्षा के महज रिजल्ट के आधार पर कार्यालय में बिना ज्वाइन किये ही फाइलें देखने लगें।
अब तो सांसद में शपथ लिए बिना ही प्रधानमंत्री और मंत्री अपने-अपने कार्यालयों में पहुँच जाते हैं और फाइलें देखने लगते हैं, विकास की नदियाँ बहने लगती हैं और मीडिया दिनभर बताता है कि प्रधानमंत्री ने पहली फ़ाइल किसान सम्मान निधि की क्लियर की है। मीडिया के लिए किसानों की गरीबी ही किसानों का विकास है, क्योंकि महज 500 रुपये महीने की सम्मान निधि 9 करोड़ से अधिक किसानों को देना ही मीडिया और सत्ता को छोड़कर किसानों की दयनीय स्थिति दर्शाता है।
मीडिया और सत्ता के लिए विकास की परिभाषा ही बदल गयी है। देश में लोग गर्मी और बाढ़ से मर रहे हैं और सत्ता के साथ ही मीडिया विकास का राग अलापने लगती है। हवाई अड्डों की हिस्से रोज गिर रहे हैं और सत्ता हमें हवा में उड़ते विकास को दिखा रही है। हरेक परीक्षा के पेपर बाजार में बिक रहे है और सरकार इसे तकनीक का विकास बता रही है। अयोध्या में सड़कें गड्ढों में तब्दील हो रही हैं और मंदिर में पानी टपक रहा है पर यह विकास भगवान् का आशीर्वाद बताया जा रहा है।
आतंकवाद जम्मू तक पहुँच गया है और हमें विकास दिखाया जा रहा है। आदिवासियों को नक्सलियों के नाम पर मारा जा रहा है और प्राकृतिक सम्पदा पूंजीपतियों के हवाले की जा रही है। विकास तो अब इतना भारी हो गया है कि बिहार में नदियों पर बने पुल इसके बोझ से नदियों में ही समाते जा रहे हैं। विकास तो संसद में भी दिखता है, लोकसभा अध्यक्ष जय संविधान पर आपत्ति उठाते हैं और जय हिन्दू राष्ट्र पर अपनी कुटिल मुस्कान बिखेरते हैं।
विकास ऐसा है कि बेदर्दी से देशभर में सत्ता की छत्रछाया में पेड़ काटे जा रहे हैं और प्रधानमंत्री जी माँ के नाम पर वृक्ष लगाने की और धरती माँ को संरक्षित करने का प्रवचन दे रहे हैं। नदियों से अब पानी गायब हो गया है, केवल विकास बह रहा है। हिमालय से बर्फ का आवरण गायब हो गया है, विकास का आवरण पड़ा है। चारों तरफ विकास का साम्राज्य है। जहां जहां आपने पहले पेड़ देखे थे, पर अब वीरान है वहीं विकास है। बहती नदियाँ जो अब रेत की चादर में लिपटीं हैं वही विकास है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बड़े तामझाम से उदघाटन किये गए एक्सप्रेसवे पर जो आपन गड्ढ़े देख रहे हैं वही विकास है, रोज दरकते पहाड़ तो विकसित भारत में विकास की पराकाष्ठा हैं।
विकास आपको देखना है तो अरबपतियों की संपत्ति देखिये, जो पूरे देश की संपत्ति से भी अधिक है। विकास तो किसानों का भी हुआ है, पर पता नहीं क्यों हम लोगों को दिखता नहीं। इस बार संसद में जीतकर पहुंचे सांसदों में से लगभग 37 प्रतिशत सांसदों ने अपना व्यवसाय कृषि बताया है, और नव-निर्वाचित सांसदों की औसत संपत्ति 46.34 करोड़ रुपये है। जाहिर है, कम से कम आंकड़ों में तो किसान समृद्ध हुए ही हैं, यह अलग बात है कि एक भी सांसद किसान जैसा नजर नहीं आता।
संसद में विकास का आलम यह है कि वर्ष 2009 में महज 58 प्रतिशत सांसद करोड़पति थे, वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी की आंधी में करोड़पति सांसदों की संख्या 82 प्रतिशत तक पहुँच गयी। इसके बाद नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़े जाने लगे – वर्ष 2019 की संसद में 88 प्रतिशत सदस्य करोड़पति थे, जबकि 2024 में यह आंकड़ा 93 प्रतिशत तक पहुँच गया।
जब आप बेरोजगारी की बात करेंगे, सरकार विकास की बात करेगी; महंगाई में भी विकास है; 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज में भी विकास है, बाढ़ और गर्मी से मरते लोगों में भी विकास है – दरअसल लोग विकास पचा नहीं पा रहे हैं और मरते जा रहे हैं। विकास और समृद्धि की पराकाष्ठा के दौर के अमृतकाल के हम साक्षी हैं। यदि आपको विकास नजर नहीं आता तो निश्चित ही आप देशद्रोही हैं, भारत को बदनाम करना चाहते हैं, माओवादी और नक्सली हैं। अब तो गारंटियों में भी विकास ही विकास है।