युवा मतदान कर सकते हैं, पर अपना भविष्य क्यों नहीं कर सकते तय?

कोविड 19 पर बहस से स्वास्थ्य विशेषज्ञ नदारद रहते हैं, और सरकार अपनी मर्जी से सारे निर्णय ले लेती है, जिस पर न्यायालय की मुहर लग जाती है...

Update: 2020-08-20 06:25 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

हाल में ही सर्वोच्च न्यायालय में फाइनल इयर की परीक्षाओं को लेकर बहस के दौरान जस्टिस भूषण ने कहा कि छात्रों के भविष्य का फैसला सरकारी संस्थाएं करेंगी, छात्र स्वयं अपने भविष्य का फैसला करने के योग्य नहीं हैं, सक्षम नहीं हैं।

यह वक्तव्य अजीब सा है, क्योंकि हमारे देश में मतदान की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है और स्नातक के अंतिम वर्ष के छात्र इससे अधिक उम्र के होते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि छात्र निष्पक्ष मतदान के माध्यम से तय कर सकते हैं कि देश में किसकी सरकार बनेगी, देश का भविष्य भी तय कर सकते हैं, पर इस कोविड 19 के दौर में परीक्षाएं होनी चाहिए या नहीं, यह तय नहीं कर सकते।

लाखों छात्रों का भविष्य अधर में है, यूजीसी लगातार बता रहा है कि परीक्षाएं 30 सितम्बर तक आयोजित करा लेनी हैं, पर सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया नहीं, बस सुरक्षित रख लिया है। क्या, यह लाखों छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं है?

कोविड 19 के दौर में जब जीवन का हरेक पहलू बिखर गया है, तब पता नहीं क्यों लगातार छात्रों पर ही सारे प्रयोग करने की कवायद चल रही है। इन सारे फैसलों से कोविड 19 के प्रभावों को हटा दिया गया है। नीट और जेईई के परीक्षाओं की तारीख घोषित कर दी गई है।

जिस दिन सर्वोच्च न्यायालय में बहस चल रही थी, उसी दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन बता रहा था कि वर्त्तमान में कोविड 19 का संक्रमण सबसे अधिक 20 से 40 वर्ष की आबादी फैला रही है। इस आबादी में जो संक्रमण हो रहा है, अधिकतर मामलों में वह मामूली लक्षण वाला या फिर बिना लक्षण वाला है।

ऐसे लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें संक्रमण भी है, और जाहिर है ऐसे लोग संक्रमण रोकने के लिए पर्याप्त सावधानी नहीं बरतते। इसीलिए बुजुर्गों, दूसरे रोगों से ग्रस्त या फिर दूसरे संवेदी वर्ग के लोगों को 20 से 40 वर्ष के अनभिज्ञ मरीज आसानी से संक्रमित कर देते हैं। ऐसा नहीं है कि बिना लक्षण वाले मरीज द्वारा फैले संक्रमण में सभी लोगों को बिना लक्षण वाला ही कोविड 19 हो। इनसे फैला संक्रमण दूसरों के लिए खतरनाक हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 24 फरवरी से 12 जुलाई के बीच दुनियाभर में कोविड 19 के लगभग 60 लाख मामलों का गहन अध्ययन किया और इसके अनुसार अब बच्चों, किशोरों और युवा में कोविड 19 का संक्रमण पहले से अधिक होने लगा है। इसके अनुसार 1 से 4 वर्ष के आयु वर्ग में पहले कोविड 19 के महज 0.3 प्रतिशत मामले थे, पर अब यह 2.2 प्रतिशत तक पहुँच गया है।

इसी तरह 5 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के पहले कोविड 19 के कुल मामलों में से 0.8 प्रतिशत थे, पर अब यह अनुपात 4.6 प्रतिशत तक पहुँच गया है, 15 से 24 वर्ष के आयु वर्ग में उसके मामले 4.5 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत तक पहुँच चुके हैं।

जाहिर है, छात्रों का आयुवर्ग तेजी से संक्रमित हो रहा है, और बड़ी आबादी को संक्रमित कर भी रहा है। जिन छात्रों की बात सर्वोच्च न्यायालय, यूजीसी, सोलिसिटर जनरल और विभिन्न राज्य कर रहे हैं, वे सभी 15 से 24 वर्ष वाले आयुवर्ग में आते हैं और इसी आयु वर्ग में संक्रमण इस समय तेजी से फ़ैल भी रहा है।

कोविड 19 के कारण परीक्षाएं अनियमित हो गईं, और इन्हीं परीक्षाओं पर लम्बी बहस चल रही है। पर आईसीएमआर या स्वास्थ्य मंत्रालय खामोश है और न तो कोई इन संस्थानों से सलाह ले रहा है। देश के स्वास्थ्य मंत्री, जो पेशेवर डॉक्टर भी हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, पर कोविड 19 से संबंधिक कोई बात नहीं करते। इस समय कोविड 19 से सम्बंधित अधिकतर निर्णय गृह मंत्रालय की तरफ से सामने आ रहे हैं। यूजीसी को भी परीक्षाएं आयोजित कराने की अनुमति गृह मंत्रालय ने ही दी है।

हमारा देश केवल पर्यटन मंत्रालय के लिए ही अतुल्य भारत नहीं है, हरेक विषय में यह देश अतुल्य है। कोविड 19 पर बहस से स्वास्थ्य विशेषज्ञ नदारद रहते हैं, और सरकार अपनी मर्जी से सारे निर्णय ले लेती है, जिस पर न्यायालय की मुहर लग जाती है। दूसरी तरफ, छात्र ईमानदारी से कराये गए चुनावों में सरकार बदल सकते हैं पर अपने भविष्य का फैसला लेने योग्य नहीं माने जाते, ऐसा अदालत कहती है। सरकार इन्ही छात्रों से मतदान का आह्वान तो करती है, पर इन्हें राजनीति से दूर रहने की सलाह देती है।  

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