कोरोना का आतंक फैलाकर रेलवे समेत तमाम सार्वजनिक संपत्तियों को तबाह कर रही है मोदी सरकार
सीपीआई के महासचिव डी राजा ने एक बयान में कहा है कि 'रेलवे एकमात्र ऐसा क्षेत्र नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार कॉर्पोरेट्स को सौंप रही है। सरकार ने कोयला खदानों, बैंकों, रक्षा, तेल, बीमा, बिजली, दूरसंचार, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को संभालने के लिए निजी क्षेत्र का मार्ग सुगम बना दिया है.....
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
डकैती और लूटपाट का यह सदियों से आजमाया हुआ तरीका है कि जब डाकुओं को कोई बड़ा खजाना लूटना होता है तो वे सबसे पहले लोगों में दहशत फैलाने का काम करते हैं, ताकि लूटपाट करते समय लोग घरों के अंदर कैद रहें और उनको किसी तरह की रुकावट का सामना नहीं करना पड़े। भारत की जीवन रेखा रेलवे सहित तमाम सार्वजनिक सम्पत्तियों को लूटने के लिए मोदी सरकार ने इसी हथकंडे को आजमाया है।कोरोना के नाम पर दहशत फैलाकर देश में मार्शल लॉं जैसी सख्त पाबंदी लागू कर उसने सबसे पहले अर्थव्यवस्था को पाषाणकाल में पहुंचा दिया और इसके साथ ही आम भारतीयों की आवाजाही के प्रमुख साधन रेल का परिचालन ठपकर पिछले दरवाजे से उसे तबाह करने की साजिश को अंजाम दिया है।
कोरोना का आतंक फैलाकर एक के बाद एक देश की राष्ट्रीय संपत्ति बेची जा रही है। मोदी सरकार का नवीनतम 'मास्टरस्ट्रोक' भारतीय रेलवे का निजीकरण है। 1 जुलाई, 2020 को रेल मंत्रालय ने घोषणा की कि 109 जोड़ी मार्गों में 151 ट्रेनें निजी क्षेत्रों द्वारा संचालित की जाएंगी। निजी क्षेत्र 30,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगा। केवल चालक और गार्ड रेलवे कर्मचारी होंगे; अन्य सभी कर्मचारी निजी कंपनी के होंगे, जो ट्रेन का संचालन करेंगे। निजी कंपनियां अपनी पसंद के किसी भी स्रोत से ट्रेन और लोकोमोटिव खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं।
अगर यह बात है तो रेलवे उत्पादन इकाइयों का क्या होगा? निजी ट्रेन का परिचालन अप्रैल 2023 तक शुरू हो जाएगा। एक बार निजी संस्थाएं निजी एयरलाइंस की तरह ही ट्रेनों का संचालन शुरू कर देंगी, निजी ट्रेन में यात्रा करने वाले लोगों को पसंदीदा सीटों, अतिरिक्त सामान और ऑन-बोर्ड सेवाओं आदि के लिए भुगतान करना होगा। रेलवे ने निजी ट्रेन ऑपरेटरों को यात्रियों से किराया वसूलने की स्वतंत्रता दी है।
घोषणा के तुरंत बाद, हमेशा की तरह मोदी के दासों ने यह कहकर सरकार के फैसले का स्वागत करना शुरू कर दिया कि 'निजी गाड़ियों का किराया प्रतिस्पर्धी होगा, निजी ऑपरेटरों का परिचय यह सुनिश्चित करेगा कि ट्रेनें माँग पर उपलब्ध हों, निजी ट्रेन में किराया प्रतिस्पर्धी होगा और निजी संस्था समय की पाबंदी सुनिश्चित करेगी।'
दुर्भाग्य से हमारे देश में मीडिया की मुख्यधारा बिना किसी डर के सच बोलने के बजाय, वर्तमान सरकार के लिए सिर्फ भोंपू की भूमिका निभा रही है। सरकार कॉर्पोरेट क्षेत्र के हितों के प्रति अपनी वफादारी का प्रदर्शन कर रही है और आम लोगों के हितों को बेरहमी के साथ कुचल रही है।
पिछले साल सरकार ने एक निर्णय लिया कि भारतीय रेलवे अपनी सभी सात उत्पादन इकाइयों और संबद्ध कार्यशालाओं जैसे आईसीएफ पेरम्बुर, आरसीएफ कपूरथला, मॉडर्न कोच फैक्ट्री, रायबरेली को भारतीय रेलवे रोल स्टॉकिंग कंपनी नामक एक निगम के अधीन कर देगी। सभी उत्पादन इकाइयाँ कुशलता से काम कर रही हैं, लेकिन फिर भी सरकार इन उत्पादन इकाइयों को सार्वजनिक उपक्रमों में बदलना चाहती है ताकि इनको बेचा जा सके।
रेलवे को तबाह करने की मोदी सरकार की साजिश के खिलाफ लोग आवाज बुलंद करने लगे हैं। सीपीआई के महासचिव डी राजा ने एक बयान में कहा है: 'रेलवे एकमात्र ऐसा क्षेत्र नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार कॉर्पोरेट्स को सौंप रही है। सरकार ने कोयला खदानों, बैंकों, रक्षा, तेल, बीमा, बिजली, दूरसंचार, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को संभालने के लिए निजी क्षेत्र का मार्ग सुगम बना दिया है। 30,000 करोड़ रुपये का निवेश करने वाली कोई भी निजी कंपनी अपने निवेश से भारी मुनाफा कमाना चाहेगी जिसके परिणामस्वरूप टिकट किराया में भारी वृद्धि होगी। ट्रेन जो आम आदमी का परिवहन है, अब आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाएगी।'
उन्होंने आरोप लगाया कि 'भाजपा सरकार को आम लोगों के लिए कोई चिंता नहीं है। सरकार के फैसले से रेलवे की नौकरी पाने का भारतीय युवाओं का सपना टूट जाएगा, जिनमें वे युवा भी शामिल हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर तबके से ताल्लुक रखते हैं।'
माकपा पोलित ब्यूरो ने कहा है: 'रेलवे एक सार्वजनिक सेवा है, न कि लाभ कमाने वाला उद्यम। इस तरह का निजीकरण आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की बुनियाद को कमजोर करता है। इस दावे के विपरीत कि इससे नौकरी सृजन को बढ़ावा मिलेगा, पिछले अनुभव से पता चला है कि इससे रेलवे के कर्मचारियों के लिए असुरक्षा की भावना पैदा होगी। " कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है: "रेलवे गरीबों के लिए जीवन रेखा है और सरकार इसे उनसे दूर कर रही है।'
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी सरकार के कदम का विरोध किया और सरकार के कदम की तीखी आलोचना की है। एआईआरएफ के उपाध्यक्ष राजा श्रीधर ने प्रतिक्रिया दी कि "यह रेलवे के सम्पूर्ण निजीकरण की शुरुआत है। प्रधान मंत्री मोदी, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे, ने एक सम्मेलन में कहा था कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर निजी परिवहन चल रहे हैं, आसमान में निजी एयरलाइंस के विमान उड़ रहे हैं, यदि ऐसा है तो रेलवे ट्रैक पर निजी कंपनियों को संचालन क्यों नहीं करना चाहिए, सरकार को रेल की पटरियों पर नियंत्रण क्यों करना चाहिए। "
निजीकरण के लिए सरकार द्वारा दिए जा रहे तर्कों में से एक यह है कि वर्ष 2018-19 के दौरान, 8.85 करोड़ यात्री प्रतीक्षा सूची में थे और भारतीय रेलवे इन प्रतीक्षा सूची के यात्रियों में से केवल 16 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने में सक्षम थी, और इसलिए क्षमता में वृद्धि करने के लिए निजी कंपनियों को रेलवे संचालित करने की अनुमति दी जा रही है।
लेकिन तथ्य क्या है? रेलवे ने 5.35 करोड़ सीटें बढ़ाई हैं; इनमें से 70 फीसदी एसी कोच में है और महज 30 फीसदी स्लीपर कोच के लिए है। सरकार आम आदमी की जरूरत का ख्याल नहीं रख रही है। केवल लाभ कमाना ही उसका लक्ष्य है।
17 जुलाई, 2019 को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रेलवे कोच निर्माताओं के साथ एक बैठक की और उन्हें बताया कि रेलवे को 2,150 ट्रेन सेटों की आवश्यकता है। इंटीग्रल कोच फैक्ट्री(आईसीएफ), पेरम्बूर ने 160 किमी प्रति घंटे की गति के साथ 98 करोड़ रुपये में ट्रेन -18 कोच का निर्माण किया है। यह सभी आवश्यक विनिर्देशों को पूरा करता रहा है। प्रधानमंत्री ने खुद ट्रेन -18 का नाम बदलकर 'वंदे भारत' रख दिया।
यह वास्तविक 'मेक इन इंडिया' था, लेकिन अब रेलवे बोर्ड ने आईसीएफ को दिए गए 45 ट्रेन -18 के उत्पादन के ऑर्डर को रोक दिया है। जो तेजस ट्रेन दिल्ली और लखनऊ के बीच आईआरसीटीसी के माध्यम से निजी क्षेत्र द्वारा संचालित की जा रही है, उसमें किराया 700 रुपये से 900 रुपये तक अधिक है। पहुंचने का समय केवल 10 मिनट कम है और एक स्टॉपेज अतिरिक्त है।
उसी ट्रेन में डायनेमिक किराया 4,700 रुपये तक जाता है। वर्तमान में 1,000 किमी के लिए रेलवे 700 से 900 रुपए लेता है। समान दूरी के लिए निजी कंपनी 2,200 रुपये वसूलेगी। यात्री को इसका भार उठाना पड़ेगा।
रेलवे द्वारा 109 मार्गों को निजी क्षेत्र को सौंपने की घोषणा के तुरंत बाद 2 जुलाई, 2020 को रेल मंत्रालय ने व्यय के युक्तिकरण के नाम पर एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि सुरक्षा को छोडकर नए पदों के सृजन पर रोक होगी। यह कहा गया कि अगर नए पदों पर भर्ती नहीं हुई है, तो नए पदों को खत्म करें। निजीकरण की तलवार अब रेलवे पर गिर गई है। रेलवे राष्ट्रीय संपत्ति है जो देश के लोगों से संबंधित है जो करदाता हैं।
सीपीआई के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सरकार के निर्णय को वापस लेने का आग्रह किया है। उन्होंने अपने पत्र में अपील की है कि 'इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि भारतीय रेलवे को अधिक निवेश और अपडेट करने की आवश्यकता है। हालांकि, एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवा के रूप में, जो देश के लोगों को जोड़ती है, इसका निजीकरण कोई समाधान नहीं है। सरकार को रेलवे क्षेत्र में खर्च बढ़ाना चाहिए और प्रभावी समाधान लागू करना चाहिए जो राष्ट्रीय संपत्ति की बिक्री पर निर्भर नहीं करता है। रेलवे के लाखों कर्मचारियों का जीवन और आजीविका आपकी कार्रवाई पर निर्भर है। इसलिए मैं आपसे इस फैसले को वापस लेने और रेलवे के सुधार में निजीकरण किए बिना निवेश करने का आग्रह करता हूं।'
एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में भारत के सबसे सम्मानित मेट्रो मैन ई श्रीधरन ने कहा: 'आईआरसीटीसी के अलावा मुझे कोई भी ट्रेन चलाने के लिए योग्य नजर नहीं आता। बहुत सारी अनिश्चितताएँ हैं। दो तरह का किराया और दो तरह की ट्रेनें भ्रम पैदा करेंगी। निजी कंपनियों के लिए रेलवे के साथ काम करना मुश्किल होगा और इसे बीच में ही छोड़ देना होगा। यह एक मूर्खतापूर्ण विचार है जो विफल हो जाएगा।'
एनएफआईआर के अध्यक्ष गुमान सिंह ने कहा: 'निजीकरण के चक्कर में मोदी सरकार रेलवे को नष्ट कर देगी और यात्रा को महंगा कर देगी। हम सरकार के इस कदम की निंदा करते हैं।'
सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, चाहे वह राज्य सड़क परिवहन निगम हो या भारतीय रेलवे देश के आम आदमी के लिए है। हम इन सार्वजनिक सेवा संगठनों को कैसे नष्ट कर सकते हैं? यूके जैसे देशों में जहां वर्ष 1990 के दौरान रेलवे का निजीकरण किया गया था, लोग अब निजी रेलवे से तंग आ चुके हैं और रेलवे के राष्ट्रीयकरण की मांग कर रहे हैं।