सरकार की नीतियों का विरोध और अश्लीलता सत्ता की नजर में एक जैसे अपराध, जनवरी 2015 से सितम्बर 2022 तक 55607 वेबसाइटें ब्लॉक
जनवरी 2015 से सितम्बर 2022 के बीच सरकार ने 55607 वेबसाईट को ब्लॉक कराया, जिसमें से 47.6 प्रतिशत यानी 26474 साईट को बंद करने का आदेश इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के सेक्शन 67ए के तहत दिया गया था। इस सेक्शन के आदेश तहत देश की एकता, संप्रभुता, अखंडता पर हमले या फिर सुरक्षा बालों के मनोबल को कम करने का हवाला देकर किया जाता है....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Anything critical to government would be blocked; it is a clear-cut policy in VIKSIT BHARAT. केंद्र सरकार ने 12 मार्च 2024 को अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा देने के कारण 18 ओटीटी प्लेटफॉर्म, इससे सम्बंधित 10 ऐप, 19 वेबसाइट और 57 सोशल मीडिया को प्रतिबंधित कर दिया। इससे पहले सरकार ने फरवरी में ट्विटर यानी एक्स पर किसान आन्दोलन से जुड़े 177 अकाउंट को ब्लॉक करने का निर्देश दिया था।
जाहिर है, सरकार के विरुद्ध बोलना या फिर सरकारी नीतियों का विरोध केंद्र में बैठी सत्ता की नजर में अश्लीलता या यौन-उत्पीड़न जैसा ही अपराध नहीं, बल्कि इससे भी बड़ा अपराध है। कन्हैया कुमार के प्रश्न पर एक आरटीआई जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि वर्ष 2013 से 2023 के बीच केंद्र सरकार द्वारा यूआरएल यानी वेबसाइट को ब्लॉक करने के निर्देशों में 10 गुना वृद्धि दर्ज की गयी है। इनमें से अधिकतर प्रतिबंधित वेबसाइट्स और सोशल मीडिया एकाउंट्स ऐसे हैं, जिनमें सरकारी नीतियों का विरोध है।
सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर, इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2015 से सितम्बर 2022 के बीच सरकार ने 55607 वेबसाईट को ब्लॉक कराया, जिसमें से 47.6 प्रतिशत यानी 26474 साईट को बंद करने का आदेश इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के सेक्शन 67ए के तहत दिया गया था। इस सेक्शन के आदेश तहत देश की एकता, संप्रभुता, अखंडता पर हमले या फिर सुरक्षा बालों के मनोबल को कम करने का हवाला देकर किया जाता है।
मोदी सरकार अपनी नीतियों के आलोचकों पर शुरू से यही आरोप मढ़ती रही है। मोदी सरकार ने अपनी नीतियों की आलोचना को देश की संप्रभुता का पर्याय बना दिया है, और इसी का हवाला देकर अपने आलोचकों को खामोश कराती है। मार्च 2023 में लोकसभा में तत्कालीन इलेक्ट्रॉनिक्स एयर इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्टर ने वक्तव्य दिया था कि वर्ष 2018 से 15 मार्च 2023 के बीच आईटी एक्ट के सेक्शन 69ए के तहत 30310 वेबसाईट को प्रतिबंधित किया गया है। इतना तो स्पष्ट है कि वेबसाइट या सोशल मीडिया के अकाउंट को ब्लाक करने का उद्देश्य बेहतर समाज बनाना या अफवाह रोकना नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलना है।
पिछले कुछ महीनों से मोदी जी की गारंटियों का दौर चल रहा है, पर इनमें अभिव्यक्ति की आजादी की कोई गारंटी नहीं है। अलबत्ता, पिछले कुछ महीनों से सरकार यह साबित करने पर तुली है इस देश में केवल वही अभिव्यक्ति आजाद होगी जो मोदी जी, बीजेपी और संघ का गुणगान करेगी या उनका प्रचार करेगी। इनसे परे की अभिव्यक्ति पर पहरे लगा दिए जायेंगे। हाल में ही केंद्र सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या से सम्बंधित एक डॉक्यूमेंट्री को देश में दिखाए जाने से प्रतिबंधित किया है। कनाडा सरकार ने वैंकोवर में पार्किंग में हुई इस ह्त्या के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया पर सभी वीडियो शेयरिंग प्लेटफोर्म को आदेश दिया है कि इस डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक कर दिया जाए।
इस डॉक्यूमेंट्री को कनाडा के राष्ट्रीय नेटवर्क सीबीसी के फिफ्थ एस्टेट नामक चैनल ने बनाया है। कुल 43 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री का नाम है, कॉन्ट्रैक्ट टू किल। सीबीसी ने अपने वक्तव्य में बताया है कि नेटवर्क डॉक्यूमेंट्री टीम के साथ खड़ा है, इसे विस्तृत अनुसंधान के बाद बनाया गया है और पत्रकारिता के मानदंडों पर पूरी तरह से खरा उतरता है। सोशल मीडिया प्लेटफोर्म यूट्यूब और एक्स ने भारत सरकार के आदेश की पुष्टि की है, और कहा है कि आदेश को मानते हुए इस डॉक्यूमेंट्री को केवल भारत में ब्लॉक किया जा रहा है, पर भारत छोड़कर पूरी दुनिया में इसे देखा जा सकेगा। एक्स के बयान में कहा गया है कि डॉक्यूमेंट्री को केवल आदेश मानते हुए ब्लाक किया जा रहा है, पर वे भारत सरकार के आदेश से सहमत नहीं हैं और अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की आजादी का आदर करते हैं।
भारत सरकार विरोध की किसी आवाज से किस कदर डरती है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि लगभग एक वर्ष के भीतर ही यह दूसरी डॉक्यूमेंट्री है, जिसे केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित किया है। वर्ष 2023 के शुरू में इमरजेंसी कानूनों की मदद से गुजरात दंगों से सम्बंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'द मोदी क्वेश्चन' को केवल प्रतिबंधित ही नहीं किया गया था, बल्कि केन्द्रीय जांच एजेंसियां बीबीसी के कार्यालयों और कर्मचारियों की आनन-फानन में जांच करने लगी थीं।
इसी वर्ष फरवरी में कर्नाटक सरकार की अतिथि भारतीय मूल की प्रोफ़ेसर निताशा कौल को केंद सरकार के आदेश के अनुसार सुरक्षाकर्मियों ने बेंगलुरु के एयरपोर्ट से बाहर निकलने नहीं दिया और वहीं से अगले दिन ब्रिटेन वापस कर दिया। निताशा कौल लन्दन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टमिनस्टर में सेंटर फॉर स्टडी इन डेमोक्रेसी की अध्यक्ष हैं। निताशा कौल भारतीय मूल की हैं और ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ़ इंडिया की कार्ड धारक हैं, जिसके तहत भारत में कितने बार भी आ सकती हैं और अपनी मर्जी की अवधि तक रुक सकती हैं। उन्होंने कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना की थी, जाहिर है केंद्र सरकार ने उन्हें देश में आने नहीं दिया।
निताशा कौल ने कहा है कि एयरपोर्ट पर भी उन्हें खाने और पीने की आजादी नहीं दी गयी और बहुत संकरी जगह पर बंधकों की तरह रखा गया। उन्हें एयरपोर्ट के सुरक्षाकर्मियों ने रोकने का कोई कारण नहीं बताया, पर अनौपचारिक बात में दिल्ली से रोकने के आदेश का जिक्र सुरक्षाकर्मियों ने किया। आरएसएस की आलोचना के बाद जैसा कि बीजेपी और आरएसएस की चारित्रिक विशेषता है, उन्हें लगातार बलात्कार और ह्त्या की धमकी मिलती रही और भारत में उनके परिवार वालों को भी प्रताड़ित किया गया।
इससे पहले स्वीडन स्थित भारतीय मूल के शिक्षाविद अशोक स्वेन का केंद्र सरकार ने ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ़ इंडिया कार्ड रद्द कर दिया है। अशोक स्वेन भारत सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक रहे हैं। फरवरी 2024 के शुरू में फ्रांस की भारतीय मूल की पत्रकार वनेस्सा दौग्नाए को अपनी पत्रकारिता में मोदी सरकार की आलोचना के कारण भारत छोड़ना पड़ा है।
मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना को केंद्र सरकार शुरू से ही देश की संप्रभुता और एकता पर हमला बताती रही है और यही वनेस्सा दौग्नाए के साथ भी किया गया। वनेस्सा दौग्नाए पिछले 25 वर्षों से भारत में रह रही थीं और फ्रांस के दो अखबारों के साथ ही स्विट्ज़रलैंड और बेल्जियम के एक एक अखबार के लिए दक्षिण एशिया प्रमुख थीं। फरवरी में ही सोशल मीडिया प्लेटफोर्म एक्स ने खुलासा किया था कि सरकारी आदेश के कारण उसे किसान आन्दोलन से सम्बंधित सैकड़ों पोस्ट को ब्लाक करना पड़ा था।
मोदी सरकार के हरेक विषय से सम्बंधित आंकड़े हमेशा समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं, और यही वेबसाईट को प्रतिबंधित करने के आकड़ों के साथ भी है। तभी, इस सरकार के आंकड़े हमेशा संदेह के घेरे में रहते हैं। सबसे हास्यास्पद मामला 12 दिसम्बर 2018 का है जब संसद में इनफार्मेशन एंड टेक्नोलॉजी मंत्री ने वक्तव्य दिया था कि 31 दिसम्बर 2018 तक, यानि वक्तव्य के दिन से 20 दिनों बाद के दिन तक, कुल 2388 वेबसाइट प्रतिबंधित की गयी हैं।
ऐसे बदलाव वाले अनेक आंकड़े हैं। संसद में वर्ष 2021 में प्रतिबंधित वेबसाइट्स की संख्या एक बार 6118 और दूसरी बार 6096 बताई गयी। इसी तरह वर्ष 2022 में बंद वेबसाईट के आंकड़े भी 6935 और 6775 हैं। वर्ष 2019 के लिए आंकड़े 3635 और 3655 हैं, जबकि वर्ष 2017 के आंकड़े 1329 और 1385 हैं। मोदी सरकार में आंकड़े किसी चुटकुले से कम नहीं हैं।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में स्वघोषित विश्वगुरु यानि भारत कुल 180 देशों की सूची में 161वें स्थान पर पहुँच गया है। वर्ष 2022 में भारत 150वें स्थान पर था, यानी एक वर्ष में 11 स्थानों की गिरावट दर्ज की गयी है। दुनिया के केवल 19 देश ऐसे हैं जहां मीडिया की आजादी हमसे भी बदतर है।
हम इतिहास के उस दौर में खड़े हैं जहां मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में हम पाकिस्तान, रूस, चीन, बेलारूस, तुर्की, हंगरी, इजराइल को आदर्श मान कर उनकी नक़ल कर रहे हैं और स्वघोषित विश्वगुरु का डंका पीट रहे हैं। यह दरअसल देश के मेनस्ट्रीम मीडिया की जीत है, क्योंकि यह मीडिया ऐसा ही देश और ऐसी ही निरंकुश सत्ता चाहता है जिसके तलवे चाटना ही उसे समाचार नजर आता है। यही वास्तविक रामराज्य है।