Osho (Rajneesh) Biography in Hindi | चंद्रमोहन जैन से ओशो बनने की पूरी कहानी, जिसने दुनिया को समाधि की आधुनिक परिभाषा दी

Osho (Rajneesh) Biography in Hindi | 'ओशो'। इस नाम से हम सभी परिचित हैं। इनका मूल नाम रजनीश है। इन्हें भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश या केवल रजनीश के नाम से भी जाना जाता है। रजनीश भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता थे।

Update: 2021-12-10 05:54 GMT

Osho (Rajneesh) Biography in Hindi | चंद्रमोहन जैन से ओशो बनने की पूरी कहानी, जिसने दुनिया को समाधि की आधुनिक परिभाषा दी

मोना सिंह की रिपोर्ट

Osho (Rajneesh) Biography in Hindi | 'ओशो'। इस नाम से हम सभी परिचित हैं। इनका मूल नाम रजनीश है। इन्हें भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश या केवल रजनीश के नाम से भी जाना जाता है। रजनीश भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता थे। वह रहस्यमय गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में ख्याति प्राप्त थे। वे धार्मिक रूढ़ियों के आलोचक और मानव कामुकता के प्रति खुला रवैया रखने के कारण भारत और पश्चिमी देशों में आलोचना के भी पात्र बने। लेकिन बाद में उनके विचारों को भारत और पश्चिमी सभ्यता दोनों ने स्वीकार किया। ओशो के जन्मदिवस पर आइए जानते हैं उनके संपूर्ण व्यक्तित्व के बारे में..

ओशो का शुरुआती जीवन

ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बरेली तहसील के कुचवाडा गांव में हुआ था। जन्म के वक्त उनका नाम चंद्रमोहन जैन था। अपने माता पिता की 11 संतानों में वे सबसे बड़े थे। उनके पिता का नाम बाबूलाल जैन था। वे कपड़ों के व्यापारी थे। माता का नाम सरस्वती जैन था। 7 वर्ष की उम्र तक वे अपने ननिहाल में रहे।

यहां उनका विकास स्वतंत्र उन्मुक्त वातावरण मे रूढ़िवादी शिक्षाओं से दूर हुआ। बचपन से ही वे गंभीर और सरल स्वभाव के थे। विद्यार्थी जीवन में रजनीश बगावती सोच रखते थे। उन्हें परंपरागत तरीके अच्छे नहीं लगते थे। किशोरावस्था तक आते-आते रजनीश नास्तिक बन चुके थे। उन्हें ईश्वर और ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं था।

विद्यार्थी जीवन से ही ओशो कुशल वक्ता और तर्कवादी थे। कुछ समय के लिए वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी शामिल हुए थे। उन्होंने अपनी किताब 'glimpses of my Golden Childhood (ग्लिम्प्स ऑफ माय गोल्डन चाइल्डहुड) में लिखा है कि उन्हें बचपन से ही दर्शन में रूचि हो गई थी। 'ओशो' शब्द कवि विलियम जेम्स की कविता 'ओश्निक एक्सपीरियंस' के शब्द 'ओशनिक' से लिया गया है। इसका का अर्थ है 'सागर में विलीन हो जाना'।

खुद ओशो के अनुसार शब्द ओश्निक अनुभव का वर्णन करता है। लेकिन अनुभवकर्ता यानी अनुभ करने वाले के बारे में क्या कहेंगे? इसके लिए हम खुद के लिए ओशो शब्द का प्रयोग करते हैं। ओशो का मतलब है 'सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला'।

दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर भी रहे ओशो

ओशो ने 1956 में सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में M.A. किया था। 1957 में रजनीश दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर रायपुर विश्वविद्यालय में नियुक्त हुए थे। लेकिन गैर परंपरागत सोच और जीवन यापन के उनके तरीकों को युवा छात्रों के लिए घातक मानते हुए कुलपति ने उनका ट्रांसफर जबलपुर विश्वविद्यालय में करा दिया था। साल 1957 से 1966 तक जबलपुर विश्वविद्यालय में वो दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे।

इस दौरान उन्होंने पूरे देश का दौरा किया। और अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू किया। वह लोगों को अपना खुद का दर्शन समझाने लगे थे। वह 10-10 दिन का ध्यान शिविर भी आयोजित करते थे। जल्दी ही उन्हें आम समाज में आचार्य रजनीश के तौर पर पहचाना जाने लगा।

1966 में नौकरी छोड़कर उन्होंने नव संन्यास आंदोलन की शुरुआत की। वह 20 से 50 हजार लोगों को एक साथ संबोधित करते थे। बड़े शहरों में उन्हें सुनने के लिए बड़ी भारी मात्रा में भीड़ इकट्ठा होती थी। इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया।

पुणे में आश्रम की स्थापना

साल 1970 में वे कुछ समय के लिए मुंबई रुके और अपने अनुयायियों को नव संन्यास की शिक्षा दी। और एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। यहीं से एक महिला लक्ष्मी कुरवा जो बाद में मां योगा लक्ष्मी बन गई थी। वही रजनीश की सचिव बन गई और मुंबई में स्थापित होने के लिए फंड इकट्ठा करना शुरू कर दिया। 1974 में रजनीश पुणे आ गए और यहां उन्होंने कोरेगांव पार्क इलाके में भव्य आश्रम की स्थापना की। जिसके बाद उनके अनुयायियों में विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी। इस आश्रम को आज 'ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट' के नाम से जाना जाता है।

अमेरिका प्रवास और रजनीशपुरम की स्थापना

तत्कालीन जनता पार्टी के साथ मतभेदों और शारीरिक अस्वस्थता के चलते ओशो 1980 में अमेरिका चले गए थे। स्वस्थ होने के बाद 1981 में वहां उन्होंने ओरेगॉन संयुक्त राज्य की वास्को काउंटी में रजनीशपुरम की स्थापना की। जो 64000 एकड़ में फैला था। यह भूमि 60 लाख डॉलर में खरीदी गई थी। यहां रजनीश मंदिर का शानदार सभागृह बनाया गया था। जिसमें 25000 लोगों के एक साथ बैठने की व्यवस्था थी। इसके अलावा रजनीशपुरम में सुख सुविधाओं से लैस होटल, जैन उद्यान अपनी पुलिस ,अपना न्यायालय, और अपना अस्पताल भी था। यहां शॉपिंग मॉल और हवाई अड्डा भी बनाया गया था।

यहां उनके अनुयाई खेती भी करते थे। इस बंजर जगह को उनके अनुयायियों ने एक पूरे सुख सुविधाओं से लैस शहर में तब्दील कर दिया था। यहां करीब 7000 लोग रह रहे थे। उनके शिष्यों ने इस आश्रम को रजनीशपुरम नाम से शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा था। परंतु स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। उनके शिष्यों में विदेशी और भारतीय धनी और ग्लैमरस जीवन जीने वाले लोग शामिल थे।

दुनिया की सबसे महंगी रॉल्स रॉयस की 90 कारें

ओशो का दर्शन पारंपरिक भारतीय विचारधारा से दूर भोग और ऐश्वर्य का जीवन जीने का उपदेश देता था। इसलिए उनके अनुयायियों में विदेशी धनी, और ग्लैमरस जीवन जीने वाले लोग शामिल थे। रजनीश के ऐसे समर्थकों ने उन्हें महंगे तोहफे चढ़ावे के तौर पर दिए गए। उनके पास दुनिया की सबसे महंगी कारों में से एक कही जाने वाली रॉल्स रॉयस की संख्या भी 90 थी। हालांकि वे ज्यादातर किसी एक कार में ही सफर किया करते थे।

जब वह कार से सफर कर रहे होते तो उनके पीछे पूरी लंबी पंक्ति में बाकी की रॉल्स रॉयस कारें चल रही होतीं थीं। रजनीश को इस पर खासा गर्व था। वे कहते थे कि उनके भक्त चाहते हैं ,कि उनके पास 365 रॉल्स रॉयस कारें हों और वह हर दिन अलग-अलग कार में बैठे। इससे उनके भक्तों को सुख मिलता है और वह उनका सुख नहीं छीनना चाहते। वे महंगी घड़ियों, डिजाइनर कपड़ों, लक्जरी लाइफ और रॉल्स रॉयस कारों की वजह से वह हमेशा चर्चा में रहे। उस समय के सुपर स्टार विनोद खन्ना और परवीन बाबी उनके भक्तों में से एक थे। सुपर स्टार विनोद खन्ना ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 4 साल संन्यासी बन उनके ओरेगॉन स्थित आश्रम में माली का कार्य करते हुए और लोगों के जूठे बर्तन धोते हुए बिताया था।

आश्रम में हर तरह की आजादी

रजनीशपुरम जो किसी विकसित शहर की तरह था। यहां रह रहे 7000 लोगों में ज्यादातर कॉलेज के छात्र थे। इस आश्रम में मिली दैहिक स्वतंत्रता के कारण उनके अनुयाई लगातार बढ़ते जा रहे थे। यहां सेक्स और नशे की स्वतंत्रता थी। किसी पर भी किसी प्रकार का बंधन नहीं था। उनकी शिष्या रही ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक गैरेट के अनुसार, वहां ख्वाबों का संसार था। वहां हंसी, आजादी स्वार्थहीनता, सेक्सुअल आजादी, प्रेम और दूसरी तमाम चीजें थी। वहां शिष्यों से कहा जाता था कि वे अपने मन की करें। वह भी जो सामान्य समाज में वे भी नहीं कर सकते थे।

संभोग से समाधि की ओर

ओशो ने कहानी कविता और पत्रों के अलावा कभी कुछ भी नहीं लिखा। उन्होंने अपना सारा ज्ञान रिकॉर्ड करवाया था। जो किताबें बाजार में उपलब्ध हैं वह उनके रिकॉर्डिंग ऑडियो के आधार पर लिखी गई हैं। वे पारंपरिक संतों की तरह नहीं थे। वे धार्मिक कर्मकांड या व्रत पूजा नहीं करवाते थे ना ही कोई चूर्ण बेच रहे थे।

वे उन विषयों पर बोल रहे थे, जिन पर पहले कभी किसी ने नहीं बोला था। वह कहते थे 'जीवन ही है प्रभु और ना खोजना इसे कहीं '। वह संन्यासी उसे कहते थे जो धर्म और धार्मिक भावनाओं से ना जुड़ा हो। धर्म मनुष्य के यौन भावनाओं के दमन की कोशिश करता है। यौनभावना पाप पूर्ण घिनौना कार्य नहीं है।

ओशो के अनुसार, इस संसार में मनुष्य को समाधि का पहला अनुभव सेक्स से ही प्राप्त हुआ है। ऐसे में उनके आश्रम में सेक्स करने या ना करने की कोई बाध्यता नहीं थी। बल्कि जो नया सदस्य आता था उसका एचआईवी टेस्ट अनिवार्य था। उनके शिष्य अपने पार्टनर अपनी इच्छा अनुसार बदल सकते थे। 'संभोग से समाधि की ओर' पुस्तक के पब्लिश होने के बाद लोगों के बीच वे सेक्स गुरु के नाम से भी जाने जानें लगे।

ओशो ने अपनी इस पुस्तक में सेक्स को एक अनिवार्य कृत्य बताया है। उनका मानना था कि मुक्ति की शुरुआत सेक्स से तृप्ति और उस त्रिष्णा को शांत करने के बाद ही शुरू होती है। रजनीश कहते थे कि जितना आतुरता के साथ तुम सेक्स में उतरोगे, उतनी जल्दी तुम्हें इससे छुटकारा मिलेगा'।

जब अमेरिका की FBI ओशो के पीछे लगी

रजनीश 1981 से 1985 तक अमेरिका में रहे। राजनीशपुरम की भव्यता और अनुयायियों की बढ़ती संख्या देख स्थानीय प्रशासन हिल गया था। और उनके कान खड़े हो गए थे। तत्कालीन ओरेगॉन की रोनाल्ड रीगन सरकार के लिए यह एक खतरा था। सरकार ने रजनीशपुरम का दमन शुरू कर दिया। वे अपने स्वतंत्रता पर खतरा देख रजनीश के शिष्यों ने स्थानीय लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। सरकारी अधिकारियों के कत्ल की साजिश की और कानूनों का उल्लंघन किया। सालमोनेला नामक जहरीले बैक्टीरिया पर तरह-तरह के प्रयोग किए गए। जिससे 750 लोग फूड पॉइजनिंग के शिकार हो गए।

इसके बाद एफबीआई ने राजनीशपुरम की जांच की। 1985 में अमेरिकी सरकार ने ओशो पर प्रवास नियमों के उल्लंघन के तहत और नशीले पदार्थ रखने के साथ-साथ 35 अन्य आरोप के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया। और उन पर चार लाख अमेरिकी डॉलर की पेनाल्टी लगाई गई। साथ ही उन्हें देश छोड़ने और 5 साल तक वापस ना आने की सजा हुई। 21 देशों में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध था। इनमें ग्रीस, इटली, स्विट्जरलैंड, कनाडा ,जर्मनी, स्पेन, ग्रेट ब्रिटेन मुख्य थे।

14 नवंबर 1985 को रजनीश अमेरिका से भारत आ गए। भारत में भी उन पर दबाव बनाया गया, कि उनके सारे विदेशी अनुयाई यहां पर नहीं आ सकते। उसके बाद वे नेपाल चले गए। उन्होंने अपने नाम से भगवान शब्द हटा लिया। 14 सितंबर को रजनीश की निजी सचिव मां आनंद शीला गायब हो गईं। उनके खिलाफ हत्या का प्रयास, आगजनी, फोन टैपिंग जैसे आरोप थे। बाद में उन्हें जर्मनी में गिरफ्तार कर 20 वर्ष की सजा सुनाई गई। 1987 में ओशो नेपाल से अपने भारत स्थित पुणे आश्रम में वापस लौट आए। वह 10 अप्रैल 1989 तक 10000 शिष्यों को प्रवचन देते रहे।

ओशो का निधन

अमेरिकी जेल अधिकारियों ने जेल प्रवास के दौरान उन्हें थेलियम नामक धीमा जहर दे दिया था। उन्हें रेडियोधर्मी तरंगों से लैस चटाई पर सुलाया गया। जिसकी वजह से वह धीरे धीरे मृत्यु के नजदीक जाते रहे। सुप्रसिद्ध लेखिका सूं एपलटन ने अपनी पुस्तक 'दिया अमृत पाया जहर ' में अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार द्वारा जहर दिए जाने का रोमांचक और वास्तविक वर्णन प्रस्तुत किया है।

अमेरिका में दिए गए जहर का असर 6 माह में ही दिखाई देने लगा था। परंतु वे लगभग 5 वर्ष तक जीवित रहे। वह बहुत कमजोर हो गए थे। धीरे-धीरे उनके सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। 19 जनवरी 1990 में हार्ट अटैक की वजह से उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी समाधि पर लिखा है : न पैदा हुए न मरे। 11 दिसंबर 1931 से 19 जनवरी 1990 तक धरती पर अवतरित हुए।

ओशो की वसीयत और ट्रेडमार्क

आश्रम की संपत्ति हजारों करोड रुपए है। किताबों और अन्य चीजों से 100 करोड़ रुपए से ज्यादा रॉयल्टी मिलती है। ओशो इंटरनेशनल का ओशो की विरासत पर नियंत्रण है। उनके अनुसार यह विरासत उन्हें वसीयत में मिली है। वहीं, ओशो इंटरनेशनल ने यूरोप में ओशो नाम का ट्रेडमार्क ले रखा है। उनके अनुसार, वे ओशो के विचारों को शुद्ध रूप में उनके चाहने वालों तक पहुंचाते हैं। ओशो ने कभी खुद ही कहा था- 'कॉपीराइट वस्तुओं और चीजों का तो हो सकता है ,विचारों का नहीं'

मौत के दिन क्या हुआ था ?

ओशो की मौत पर 'हु किल्ड ओशो' Who Killed Osho किताब के लेखक अभय वैद्य के अनुसार, 19 जनवरी 1990 को ओशो के आश्रम में डॉक्टर गोकुल गोकडी को उनके लेटर हेड और इमरजेंसी किट के साथ बुलाया गया, परंतु उन्हें ओशो के पास जाने नहीं दिया गया। कई घंटों बाद उन्हें ओशो की मौत की जानकारी दी गई और डेथ सर्टिफिकेट मांगा गया।

मौत के समय पर भी विवाद है। ओशो के आश्रम में संन्यासी की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाया जाता था। लेकिन उनकी खुद की मृत्यु के 1 घंटे के अंदर ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनकी मां भी उसी आश्रम में रहती थी, उन्हें भी बेटे की मौत की सूचना देर से दी गई। ओशो की जिंदगी जितनी रहस्यमई थी। मौत उससे भी ज्यादा रहस्यमई थी। साल 2018 में नेटफ्लिक्स पर डॉक्यूमेंट्री 'वाइल्ड वाइल्ड कंट्री' में ओशो के आश्रम के बारे में दिखाया गया है।

ओशो की शिक्षाएं

  • जिसके पास जितना कम ज्ञान होगा, वह अपने ज्ञान के लिए उतना ही हठी होगा।
  • प्रेम लक्ष्य है, जीवन यात्रा। सितारों को देखने के लिए एक निश्चित अंधकार की जरूरत पड़ती है।
  • मनुष्य नहीं जानता कि जीवन क्या है? इसलिए मैं मृत्यु सिखाता हूं। जब जीवन अज्ञात हो तो मौत का ज्ञान कैसे हो सकता है?
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